अध्याय 3
भय का आतंक
बचपन का वह समय तनु के लिए किसी अनजाने बोझ की तरह था। घर की चारदीवारी उसके लिए कभी सुरक्षित पनाहगाह नहीं लगी, बल्कि जैसे किसी घने साए से ढकी हुई जगह थी। आँगन की धूप भी उसे पूरी तरह उजली नहीं लगती थी। लगता था जैसे दीवारों के बीच कोई अदृश्य साया हर वक्त घूम रहा हो— ऐसा साया जिसे सिर्फ वह महसूस कर पाती थी।यह केवल कल्पना भर नहीं थी, बल्कि घर का भारी वातावरण ही उसकी मासूम चेतना को बार-बार कुरेदता था। जब भी बड़ा भाई घर में होता, तनु को लगता मानो पूरा माहौल बदल जाता हो। उसकी उपस्थिति भर से हवा में एक तरह का तनाव घुल जाता। कदमों की आहट तक में तनु को डर महसूस होता— जैसे कोई भूतिया छाया उसके पीछे-पीछे चली आ रही हो।घर में आठ भाई-बहन थे। तनु से बड़े भाई का स्वभाव पढ़ाई-लिखाई में तेज़ था, और तनु भी उसी राह पर थी। अक़्सर दोनों में प्रथम आने की होड़ रहती। कभी बड़ा भाई आगे निकल जाता, कभी तनु। यह प्रतिस्पर्धा तनु के भीतर गर्व भी भरती थी और भय भी जगाती थी। क्योंकि वह जानती थी— जीतने पर भी शांति नहीं, हारने पर तो बिल्कुल भी नहीं। सबसे बड़े भाई का गुस्सा किसी को चैन से बैठने नहीं देता।बीच के दोनों भाई पढ़ाई में कभी मन लगाते ही नहीं। हर साल वही कक्षा दोहराना उनका नियम-सा बन गया था। उनकी असफलता घर का तनाव और बढ़ा देती। छोटे भाई-बहनों के बीच तो छोटी-छोटी बातों पर झगड़े होना आम था— कभी नहाने की बारी को लेकर, कभी खाने की थाली को लेकर।घर का माहौल अक्सर युद्धभूमि-सा हो जाता। बाबूजी का स्वभाव तो मानो बारूद था— ज़रा-सा चिंगारी मिलते ही फट पड़ते। एक बार झगड़ा इतना बढ़ा कि बाबूजी ने कपड़े धोने की थापी उठा ली और सबकी बुरी तरह पिटाई कर दी। उस दिन छोटे भाई का हाथ टूट गया। अस्पताल जाकर प्लास्टर चढ़ाना पड़ा। पूरे घर में उस दिन चीखें, सिसकियाँ और डर ही डर था। तनु ने कोने में सिमटकर यह सब देखा और भीतर से हिल गई।उस घटना के बाद उसके लिए घर और भी डरावना हो गया। उसे लगता जैसे हर दीवार पर गुस्से की परछाई लिखी हो। बाबूजी की डाँट और भाइयों के झगड़े ने घर की हँसी कहीं छीन ली थी। माँ भी चुप रहतीं, जैसे सारी दुनिया का बोझ उनके मौन में समा गया हो। उनकी चुप्पी तनु को और ज़्यादा डराती— क्योंकि उसमें अनकही तकलीफ़ छिपी रहती थी।तनु का मन भीतर से बहुत कोमल था। वह बच्ची होते हुए भी हर घटना को गहराई से महसूस करती। दूसरों के आँसू उसकी आँखों में उतर आते, दूसरों का डर उसके भीतर घर बना लेता। सहेलियाँ जब अपने घर की खुशियों, मिठाइयों और पिकनिक की बातें करतीं, तो तनु सिर्फ चुपचाप सुनती रहती। उसके मन में कसक उठती— काश उसका घर भी ऐसा होता जहाँ हँसी-खुशी का राज होता।पर उसके घर में तो डर ही डर था। कभी बाबूजी के गुस्से का, कभी भाइयों की मारपीट का, कभी उस साए का जो उसकी कल्पना में हर वक्त मंडराता रहता। तनु ने जल्दी ही समझ लिया था कि उसे खुद को बचाने के लिए अपने भीतर एक गुप्त दुनिया बनानी होगी। वही दुनिया उसका सहारा बन गई।उस गुप्त दुनिया में किताबें थीं। पन्नों की सरसराहट में उसे एक अलग ही सुकून मिलता। उसे लगता, पढ़ाई ही वह चाबी है जो इस घर के ताले को खोलकर बाहर की दुनिया दिखा सकती है। शायद पढ़ाई ही उसे इन दीवारों की कैद से आज़ाद करेगी। यही वजह थी कि तमाम तनावों के बीच तनु और उसका बड़ा भाई पढ़ाई में डूबे रहते।पर तनु का अनुभव अलग था— वह संवेदनशील थी, गहराई से महसूस करने वाली। जब भाई केवल प्रथम आने की खुशी मनाता, तनु अपने परिणामों को आँसुओं और सपनों के साथ जोड़ लेती। वह सोचती— “अगर मैं आगे बढ़ी, तो शायद माँ मुस्कुरा देंगी। अगर मैं बड़ा नाम करूँगी, तो बाबूजी का गुस्सा थोड़ा कम हो जाएगा।”फिर भी, यह मासूम सोच हर बार टूट जाती। क्योंकि बाबूजी की अपेक्षाएँ कभी पूरी नहीं होती थीं। वे केवल अनुशासन और कठोरता में विश्वास रखते। उनके लिए बच्चों की भावनाएँ शायद महत्वहीन थीं।तनु के भीतर एक और आदत घर कर गई— आसमान को ताकना। छत पर जाकर वह खुले आकाश को देखती और सोचती, “काश मैं भी इन परिंदों की तरह उड़ पाती।” कभी-कभी उसे लगता कि चाँदनी उसकी सहेली है, जो उसकी सारी बातें सुन लेती है।उसके सपनों की यह गुप्त दुनिया ही उसे बार-बार संभालती रही। नहीं तो घर का वातावरण उसकी आत्मा को तोड़ डालता।धीरे-धीरे तनु समझने लगी कि उसका बचपन किसी सुरक्षित झूले की तरह नहीं, बल्कि काँटों भरे रास्ते की तरह बीत रहा है। डर, अनुशासन और संघर्ष उसकी नस-नस में बस चुके थे। यही डर और संघर्ष आगे चलकर उसके व्यक्तित्व को गढ़ने वाले थे।उसकी मासूमियत का एक हिस्सा खो गया था, पर उसी के साथ एक अदृश्य ताक़त भी जन्म ले चुकी थी। तनु ने मन ही मन ठान लिया था— उसे इस अंधेरे से बाहर निकलना है। पढ़ाई ही उसका दीपक बनेगी और यही दीपक उसके आगे के जीवन का रास्ता दिखाएगा।---🌸 रूह-स्पर्श टिप्पणी:यह अध्याय केवल तनु के बचपन की पीड़ा नहीं, बल्कि हर उस बच्चे का आईना है जो घर की दीवारों के बीच दबे-सहमे बड़े होते हैं।