(आद्या की नाग शक्ति जगाने के लिए पूजा की योजना बनाई जाती है, लेकिन वह डर और असहाय महसूस करती है। वह और अतुल्य नागधरा से भागने की कोशिश करते हैं, पर विराट उन्हें रोक लेता है और आद्या को सम्मोहित कर अपने पास रखता है। बाद में विराट विवाह का प्रस्ताव देता है, जिसे आद्या शांति से स्वीकार करती है। नाग गुरु चैतन्य और नाग रानी विवाह और शक्ति पर मतभेद जताते हैं। अतुल्य वनधरा जाकर नाग रानी से मदद मांगता है, ताकि वह अपनी बहन को मुक्त कर सके। विराट उसकी चालों को पहचानकर उसे बंदीगृह में डाल देता है। कहानी में नागधरा और वनधरा के बीच शक्ति संघर्ष और रोमांच जारी रहता है। अब आगे)
विवाह का निर्णय
आद्या अपने कक्ष में बैठी थी। चारों ओर गहरा सन्नाटा था, लेकिन उसके भीतर एक तूफान उठ रहा था। "कुछ करना होगा... पर क्या?"
तभी सामने विराट खड़ा था — वही घिनौनी मुस्कान। "तुम्हारे लिए एक उपहार है... खास तुम्हारे लिए।" उसने बढ़ते हुए कहा।
"नहीं चाहिए। जाइए।"
विराट ने उसका हाथ पकड़ना चाहा — आद्या ने झटके से हाथ पीछे खींचा और बोली,"दीजिए... अगर दे ही रहे हैं तो।"
"मेरे साथ चलो।"
आद्या कुछ क्षणों तक उसे घूरती रही —फिर धीरे से उसके पीछे चल पड़ी। वह थोडी देर में बंदीगृह के पास थे। मन ही मन कहा —"अगर ये मुझे बंदी बना रहा है तो अच्छा है — इससे शादी करने से तो बेहतर है।"
लेकिन आगे जो था, वह कल्पना से परे था।
बंदीगृह। वहाँ अतुल्य, उसका भाई, लोहे की बेड़ियों में जकड़ा हुआ था।
"भैया!" वह दौड़कर उससे लिपट गई।
"छोड़ो उसे! क्या बिगाड़ा हमने तुम्हारा? तुम जानवर हो!"
विराट की आँखों में पागलपन उतर आया।
"अभी तुमने मेरा जानवर रूप देखा नहीं है, पर अब देखोगी। मेरा प्यार तुम सह नहीं पा रही, ठीक है। अब यह नहीं बचेगा। गर्दन धड़ से अल" —"
"रुको!" आद्या अचानक विराट के पास आई — और उसके होंठों पर अपने होंठ रख दिए।
एक पल को सारे सैनिक स्तब्ध।
"आद्या, नहीं!" अतुल्य चीख पड़ा।
आद्या झट से पीछे हटी, विराट उसकी ओर देखने लगा — "बस यही चाहिए था मुझे... तुम मेरी हो जाओ।"
आद्या ने हाथ जोड़कर कहा - "तुम जो चाहते हैं, मैं करूंगी। बस मेरे भैया को जाने दो।"
विराट मुस्कुरा दिया। उसने आद्या को अपनी बांहों में उठा लिया और आद्या को देख बोला "इस नाग को मुक्त करो!" सैनिक आदेश मान गए।
अतुल्य चिल्ला रहा था —"आद्या! क्या कर रही हो? रूक जाओ।"
लेकिन आद्या जानती थी — भाई की जान बचाने के लिए उसे खुद को कुर्बान करना होगा।
विराट उसे लेकर अपने कमरे में बढ़ते हुए आदेश दिया, "प्रहरी, कोई भीतर न आए।" और दरवाज़े बंद हो गए।
विराट अब एक उन्मादी नाग था —उसने आद्या को ज़ोर से भींचा, होंठों पर प्यास लिए पागलों की तरह चूमना शुरू किया।
आद्या न तो रोई, न चीखी। वह पत्थर सी चुप खड़ी रही।
फिर... उसकी नज़र सामने लगे आइने पर पड़ी। आइने में उसकी आँखें नीली हो गई थीं। हाथों में चमकता नाग चिह्न। वो चौक गई। ये क्या था?
विराट अब भी बेसुध होकर उसे चूम ही रहा था। लेकिन आद्या के भीतर कुछ बदल चुका था। उसके चेहरे पर अब हैरानी थी। थोड़ी देर में विराट ने उसे छोड़ा और आद्या अपने कमरे में लौट गयी। उसने सामने अतुल्य को नहीं देखा।
"अब तुम मेरी हो..." विराट ने कहा और बाहर चला गया।
सैनिकों ने अतुल्य को पकड़ रखा था। सैनिकों के सामने खड़े होकर उसने आदेश दिया — "इसे छोड़ दो।" वह फिर भीतर लौट आया। अंदर आइने में खुद को देखा।
उसकी त्वचा सुनहरी नीली हो गई थी —चेहरे पर वहशी हँसी।
"तो... तुम हो मेरी शक्ति का स्रोत, आद्या!" उसने कहा और पागलों की तरह हँसने लगा।
...
अतुल्य तमतमाकर बोला, "आद्या, ये तूने क्या किया? पागल हो गई है क्या? मैं तुझे यहां से निकालने का रास्ता खोज ही रहा था..."
आद्या चुपचाप आइने में अपनी नीली आँखों को घूर रही थी —बिल्कुल निर्जीव, निर्विकार।
"छोड़ दो भैया," वह बुदबुदाई।
"बहुत देर हो चुकी है... वो मुझे भी अपनी शक्ति से नागिन बना चुका है।" अतुल्य का चेहरा स्याह पड़ गया।
"तू इंसान है, प्यारी बहना। तू..."उसकी आवाज काँप रही थी।
"इंसान?" आद्या ठंडी हँसी हँसी,
"तुम भी तो इंसान थे भैया। लेकिन उस तांत्रिक ने तुम्हें नाग बना दिया। अब मेरी बारी है शायद। अगर मैं नागिन बन गई तो कम से कम हम दोनों एक ही दुनिया में तो होंगे।"
अतुल्य ने झपटकर उसका चेहरा अपने हाथों में लिया।
"और माँ? निशा आंटी का क्या?" उसकी आँखों में आँसू थे।
आद्या की आँखें पथरीली थीं —"शायद माँ भी नागिन हो। क्या पता?"
"बस!" अतुल्य गुस्से से गरजा, "अगर एक शब्द और बोली न, तो चांटा मार दूंगा तुझे। तू मेरी वही बहन है जिसने मुझे ढूंढने के लिए डर के बावजूद भी नागधरा में कदम रखा था। अब तू ऐसी बातें कर रही है?"
आद्या ने थककर सिर झुका लिया। "मैं हार गई हूँ भैया।"
वह बिस्तर पर जा लेटी। "अब कोई उम्मीद मत दिलाओ।
अगर वनधरा की रानी को मदद करनी होती —तो हम आज वनधरा में होते, यहाँ नहीं।"
कुछ पल के लिए कमरे में सन्नाटा छा गया।
अतुल्य सिर्फ खड़ा रहा — अपनी बहन को धीरे-धीरे बिखरते हुए देखता हुआ।
...
राजमहल की हर दीवार, हर दरवाज़ा, हर छत — सब कुछ जैसे उत्सव के जादू में रंगा था। सफ़ेद-नीली पुष्पमालाएँ, मोमबत्तियों की लौ और नाग प्रतीकों से सजा हुआ सिंहद्वार...जैसे कोई देवी विवाह के लिए आ रही हो।
अतुल्य और आद्या धीरे-धीरे महल के गलियारों में चल रहे थे।पीछे कुछ नाग सेवक विनम्र भाव से मौन थे।
"भैया..."आद्या की आवाज में अजीब सा सूनापन था।
"मेरी शादी के बाद माँ को ये खुशखबरी जरूर सुनाना। ...क्या पता, इस झटके से ही वह कोमा से बाहर आ जाए।"
अतुल्य ठिठक गया। उसने ऐसे देखा जैसे आद्या कोई और बन चुकी हो।
"तू क्या कह रही है? क्या सच में... तू उस विराट से शादी करने जा रही है?"
आद्या मुस्कुराई, वो मुस्कान जो खुशी की नहीं, हार की होती है।
"हां भैया।"
"नहीं! मैं ऐसा नहीं होने दूँगा।" अतुल्य का चेहरा तपने लगा, उसकी मुट्ठियाँ भिंच गईं।
"सच को स्वीकार करना सीखिए,"आद्या का स्वर बहुत शांत था,
"मैं अब यहाँ से बाहर नहीं जा सकती। आप कम से कम खुद को तो इस दलदल से बाहर निकालिए। वापस जाइए... माँ का ध्यान रखिए। दादी और बुआ को कहना कि मैं यहां रानी बनकर रह रही हूं।"
अतुल्य का कंठ भर आया, पर शब्द नहीं निकले। आद्या मुड़ी और बिना पीछे देखे अपने कक्ष की ओर चल दी। उसकी चाल में कोई डर नहीं था, पर कोई आस भी नहीं। जैसे एक युद्ध हार चुकी योद्धा...जो अब सिर्फ अपने अंतिम दिन की प्रतीक्षा कर रही हो।
1. क्या नाग रानी आद्या को बचाने आएगी?
2.क्या अतुल्य आद्या को बचा पाएगा?
3.क्या आद्या विराट् से शादी कर लेगी?
जानने के लिए पढ़ते रहिए "विषैला इश्क"