Lucifer - The Prince of Darkness in Hindi Short Stories by Bikash parajuli books and stories PDF | लूसिफ़र - अँधेरों का शहज़ादा

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लूसिफ़र - अँधेरों का शहज़ादा

अध्याय 1: रौशनी का दूत

बहुत समय पहले स्वर्ग के साम्राज्य में एक फ़रिश्ता था – लूसिफ़र।
वह सबसे सुंदर, सबसे बुद्धिमान और सबसे चमकदार था। उसकी आवाज़ से संगीत बहता था, उसके पंखों से रौशनी निकलती थी।
बाक़ी फ़रिश्ते उसकी ओर देखते और कहते –
“यह ईश्वर की सबसे अद्भुत रचना है।”

लेकिन धीरे-धीरे उसके दिल में एक सवाल उठने लगा –
“मैं इतना महान हूँ, तो क्यों हमेशा किसी और के आदेश मानूँ?”

अध्याय 2: अहंकार की शुरुआत

लूसिफ़र ने अपने जैसे कुछ और फ़रिश्तों को अपने पक्ष में कर लिया।
वह बोला –
“हम अपना खुद का स्वर्ग बनाएँगे। हम भी देवता बन सकते हैं।”
लेकिन ईश्वर सब जानता था।

ईश्वर ने कहा –
“तेरे पंख रौशनी के हैं, लेकिन तेरे दिल में अंधेरा भर गया है। अब तेरा यहाँ कोई स्थान नहीं।”

और उसी पल लूसिफ़र व उसके साथी स्वर्ग से गिरा दिए गए।

अध्याय 3: नरक का साम्राज्य

लूसिफ़र आग और अंधकार से भरे गड्ढे में गिरा।
यही जगह बाद में नरक कहलायी।
उसने वहाँ अपने दानव बनाए, अपने अनुयायी खड़े किए और कहा –
“अगर मुझे स्वर्ग नहीं मिला, तो मैं इंसानों की आत्माओं पर राज करूँगा।”

वह अब नरक का राजा था।

अध्याय 4: धरती पर पहला कदम

कई सालों तक नरक में रहकर लूसिफ़र ऊब गया।
वह धरती पर आया और इंसानों के बीच रहने लगा।
उसे यह देखकर हैरानी हुई कि इंसान कमज़ोर होते हुए भी बेहद मज़बूत हैं।

कोई भूखा रहकर भी अपने परिवार के लिए मेहनत करता है।

कोई दर्द में रहकर भी दूसरों को हँसाता है।

कोई गिरकर भी बार-बार उठ खड़ा होता है।

लूसिफ़र सोचने लगा –
“यह कैसी शक्ति है, जो स्वर्ग में भी नहीं मिलती?”

अध्याय 5: प्यार की आहट

धरती पर उसे एक लड़की मिली – अनाया।
अनाया मासूम, नेकदिल और सच्चे विश्वास वाली थी।
लूसिफ़र उसके करीब आया, लेकिन उसने कभी सोचा नहीं था कि वह इंसानों से प्यार कर बैठेगा।
धीरे-धीरे लूसिफ़र का दिल बदलने लगा।
अनाया कहती –
“तेरे भीतर अंधेरा है, पर मैं उसमें भी रौशनी देखती हूँ।”

अध्याय 6: असली पहचान

एक रात लूसिफ़र ने अपना असली रूप दिखाया – जलते हुए पंख, आँखों में आग, और चेहरे पर अंधेरे की छाया।
अनाया डर गई, पर भागी नहीं।
उसने उसका हाथ पकड़कर कहा –
“अगर तू चाहे, तो तेरा दिल फिर से रौशनी पा सकता है।”

ये शब्द लूसिफ़र के दिल को छू गए।

अध्याय 7: स्वर्ग का क्रोध

स्वर्ग के फ़रिश्तों को खबर मिली कि लूसिफ़र का दिल बदल रहा है।
उन्होंने सोचा –
“अगर उसने इंसानों का साथ दिया, तो संतुलन बिगड़ जाएगा।”
उन्होंने उसे रोकने के लिए धरती पर हमला किया।

अध्याय 8: युद्ध

फ़रिश्तों और दानवों के बीच युद्ध छिड़ गया।
धरती काँप उठी, आसमान लाल हो गया।
अनाया बीच में खड़ी हो गई और चिल्लाई –
“रुको! यह दुनिया युद्ध से नहीं, प्यार से बच सकती है।”

उसकी प्रार्थना ने ईश्वर का ध्यान खींचा।
अध्याय 9: दूसरा मौका

ईश्वर ने कहा –
“लूसिफ़र, तुझे अहंकार के लिए दंड मिला था। पर अगर तेरे भीतर परिवर्तन है, तो तुझे एक और मौका दिया जाएगा।
तू न पूरी तरह नरक का होगा, न पूरी तरह स्वर्ग का।
तुझे धरती पर रहना होगा, इंसानों की तरह।”

अध्याय 10: अँधेरे और रौशनी के बीच

लूसिफ़र अब इंसानों की तरह धरती पर जीने लगा।
कभी वह अपनी पुरानी आदतों से लड़ता, कभी इंसानों के दुख देखकर उनके साथ खड़ा हो जाता।
अनाया उसका सहारा बनी रही।

उसका श्राप यही था –
वह हमेशा अँधेरे और रौशनी के बीच भटकेगा।

उपसंहार

आज भी कहा जाता है कि लूसिफ़र कभी-कभी इंसानों के बीच आता है।
कभी वह किसी को गलत राह दिखाता है, तो कभी किसी को बचा भी लेता है।

लूसिफ़र की कहानी हमें यह सिखाती है –
 अहंकार हमें गिरा देता है।
 पर प्यार और क्षमा हमें फिर से उठा सकते हैं।