पढ़ाई पूरी करना।
सुबह खेत का काम,
दिन में भाई के साथ हिसाब-किताब,
और रात में किताबें।
कभी-कभी अक्षर धुंधला जाते,
कभी सवाल उलझा देते,
तो जहान माथे पर हाथ रख लेता।
उसकी आँखों में हार मानने का डर झलकता।
पर भाई तुरंत उसके पास बैठ जाता—
“घबराना मत बेटा,
आज नहीं समझा तो कल समझ जाएगा।
तेरी मेहनत कभी बेकार नहीं जाएगी।”
एंजल अक्सर ऑफिस से लौटकर
उन दोनों को पढ़ते देखती।
वो चुपके से मुस्कुराती,
कभी जहान की कॉपी में नोट लिख देती—
“तुम्हारे सपनों की उड़ान बस शुरू हुई है।”
धीरे-धीरे जहान का आत्मविश्वास लौटने लगा।
वो अब सिर्फ पढ़ता नहीं,
बल्कि सवाल पूछता,
किताबों में खुद जवाब ढूँढता।
उसकी आँखों में फिर से वही चमक थी,
जो कभी समाज की बेरहमी ने बुझा दी थी।
गाँव के लोग अब फुसफुसाते थे—
“अरे, ये वही जहान है?
जो पागल हो गया था?
देखो कैसे पढ़ रहा है।”
जहान उनकी बातों को अनसुना कर देता,
पर भीतर से उसका दिल गर्व से भर उठता।
क्योंकि अब वो जानता था—
वो अकेला नहीं है।
भाई उसका सहारा है,
और एंजल उसकी प्रेरणा।
किताबों में डूबे महीनों ओबीत गए।
जहान अब पढ़ाई में इतना रम गया था
कि समय का पता ही नहीं चलता।
भाई और एंजल को देखकर उसका हौसला और
बढ़ता।
एक शाम भाई ने उसकी कॉपियों को ध्यान से देखा।
हर सवाल सही था
हर पन्ना मेहनत की कहानी कह रहा था।
भाई की आँखें भर आईं।
उसने जहान से कहा—
“बेटा, अब वक्त आ गया है
कि तू अपनी मेहनत को आज़मा कर देखे।
तू कॉलेज प्रवेश परीक्षा दे।
जहान के हाथ काँप गए।
उसने घबराकर कहा—
“भाई… अगर मैं हार गया तो?
अगर सब मज़ाक उड़ाएँ तो?”
भाई ने उसका सिर सहलाया—
“हारने वाला वही है जो कोशिश ही नहीं करता।
तू कोशिश करेगा, यही तेरी जीत होगी।”
एंजल भी पास आई।
उसने जहान की किताबों के बीच एक छोटा-सा कागज़ रखा।
उस पर लिखा था—
“सपने डर से नहीं,
मेहनत से पूरे होते हैं।”
उस रात जहान की नींद नहीं आई।
वो बार-बार पन्ने पलटता,
फिर आँखें बंद कर खुद से कहता—
“मुझे करना है… भाई के लिए,
एंजल के लिए… और अपने लिए।”
परीक्षा का दिन आया।
जहान सफेद शर्ट पहनकर,
हाथ में कलम पकड़कर
परीक्षा केंद्र पहुँचा।
दिल जोर-जोर से धड़क रहा था।
भाई बाहर खड़ा था,
उसकी आँखों में वही भरोसा था
जो एक पिता की आँखों में बेटे के लिए होता है।
जहान ने गहरी साँस ली और खुद से कहा—
“अब मैं पीछे नहीं हटूँगा।”
वो अंदर गया और अपनी ज़िन्दगी की पहली
बड़ी लड़ाई शुरू कर दी।
परीक्षा ख़त्म हुई।
जहान ने जैसे ही कलम रखी,
उसका दिल जोर से धड़कने लगा।
वो बाहर आया तो भाई और एंजल दोनों खड़े थे।
भाई ने उसकी आँखों में झाँका—
“कैसा हुआ?”
जहान बस हल्की-सी मुस्कान दे सका।
“भाई… पता नहीं। कुछ सवाल अच्छे हुए,
कुछ में उलझ गया।”
भाई ने उसका कंधा थपथपाया।
“तेरी मेहनत ही सबसे बड़ी जीत है।
अब चिंता छोड़।”
लेकिन सच तो यह था कि
जहान के अंदर तूफ़ान चल रहा था।
वो हर पल सोचता—
“अगर मैं पास न हुआ तो?
भाई का सपना टूट जाएगा,
एंजल की उम्मीदें बिखर जाएँगी।”
एंजल उसकी बेचैनी को समझती थी।
वो अक्सर उसकी कॉपी में लिख देती—
“विश्वास रखो,
फूल हमेशा वक़्त पर खिलते हैं।”
दिन हफ्तों में बदले।
गाँव वाले ताना मारते—
“अरे, पढ़ाई-लिखाई से क्या होगा?
ये तो बस वक्त बर्बाद कर रहा है।”
जहान सुनकर चुप रहता,
लेकिन भीतर से डर और बढ़ जाता।
वो रात को देर तक जगकर
उत्तर-पत्र याद करता,
गलतियों को गिनता।
भाई उसे देखता और मन ही मन कहता—
“काश मैं तुझे दिल से समझा पाता,
कि तेरी मेहनत ही तेरा रिज़ल्ट है।”
एंजल अब एक बड़ी पोलिस ऑफिसर बन चुकी थी।
उसकी मेहनत, संघर्ष और हिम्मत ने उसे वहाँ पहुँचा
दिया जहाँ पहुँचने का सपना बहुतों का टूट जाता है।
लोग उसकी इज़्ज़त करते, उसका नाम आदर से लेते।
पर दूसरी तरफ़…
ज़हन अब भी अपनी अधूरी पढ़ाई पूरी कर रहा था।
रात-दिन किताबों में डूबा रहता, पर उसके दिल में एक
डर, एक अहसास बार-बार काटने को दौड़ता—
“क्या अब मैं एंजल के काबिल हूँ?
वो आसमान छू चुकी है… और मैं?
मैं तो अभी ज़मीन पर ही लड़खड़ा रहा हूँ।”
कभी-कभी आईने में खुद को देखकर सोचता—
“कहाँ वो बड़ी ऑफिसर… और कहाँ मैं, जो बस पढ़ाई फिर से शुरू कर पाया हूँ।
क्या एक दिन मैं भी उसके बराबर खड़ा हो पाऊँगा?
या फिर हमेशा उसके पीछे छुपी परछाई ही बना रहूँगा?”
ये ख्याल उसे तोड़ते भी थे और आगे बढ़ने की आग भी जगाते थे।
जब उसने कॉलेज प्रवेश परीक्षा पास की तब कही जाकर उसे तोड़ा सा भरोसा हुआ।
लेकिन उसका डर उस पर अपनी जेड जमाने लगा था।
उसे लगता, “अगर मैंने मेहनत नहीं की, तो एक दिन वो दूर चली जाएगी…
और मैं बस उसका नाम पुकारते-पुकारते रह जाऊँगा।”
इसी अहसास ने ज़हन को और भी जुनूनी बना दिया।
अब उसके लिए हर किताब, हर इम्तिहान, हर रात-
जागी पढ़ाई सिर्फ़ एक मकसद था—
एंजल के काबिल बनना।
रात गहरी हो चुकी थी।
ज़हन अपने कमरे की मेज़ पर किताबें फैलाए बैठा था, पर शब्द धुँधले लग रहे थे।
उसके मन में बार-बार वही सवाल घूम रहा था—
“क्या मैं एंजल के लायक हूँ?
कहीं ऐसा तो नहीं कि जब वो मुझे देखे, तो उसके मन में निराशा आ जाए?
कहाँ वो एक बड़ी ऑफिसर… और कहाँ मैं, जो अब भ कुछ नहीं।
उसकी आँखें भर आईं।
इतने में दरवाज़ा धीरे से खुला।
एंजल का भाई अंदर आया।
उसने ज़हन को देखा—थका हुआ, पर आँखों में तूफ़ान लिए बैठा हुआ।
धीरे से पास जाकर बोला,
“ज़हन, ये उदासी क्यों?”
ज़हन ने सिर झुका लिया, फिर टूटी आवाज़ में बोला—
“भाई…
डरता हूँ ।
कि कहीं एंजल मुझे छोटा न समझ ले।
वो इतनी बड़ी ऑफिसर है… और मैं तो बस अपनी पढ़ाई पूरी कर रहा हूँ।
क्या मैं उसके काबिल हूँ?”
भाई ने उसकी बात सुनी, फिर उसके कंधे पर हाथ रखा और गहरी आवाज़ में कहा—
“ज़हन, सुनो…
काबिलियत सिर्फ़ पद या पैसे से नहीं होती।
काबिलियत दिल से होती है, मेहनत से होती है।
तुम्हारी लगन, तुम्हारी सच्चाई—यही तुम्हें एंजल के लायक बनाती है।
तुम्हें पता है, एंजल ने जो भी हासिल किया है,
वो सिर्फ़ उसकी दुआ और उसकी मेहनत की वजह से है।
जो अब तुम कर रहे हो।
मेरा यकीन करो,
उसने कभी तुम्हें अपने से छोटा नहीं माना।
और मैं भी अपने दिल से कहता हूँ—
एक दिन तुम उससे भी आगे निकलोगे।”
ज़हन की आँखें भर आईं।
उसने भाई के पैर पकड़ लिए और रोते हुए बोला—
“भाई… अगर आप न होते तो मैं कब का टूट चुका होता।”
भाई ने उसे उठाया और गले से लगा लिया।
उस पल ज़हन के अंदर का डर पिघलने लगा…
और उसकी जगह एक नई हिम्मत जन्म लेने लगी।
भाई ने ज़हन को अपने पास बिठाया।
उसकी आँखों में आँसू अब भी चमक रहे थे,
लेकिन
दिल में थोड़ा सुकून उतर आया था।
भाई ने गहरी साँस ली और बोला—
“ज़हन, तुम क्यों सोचते हो कि तुम्हें बस एंजल के
बराबर होना है?
क्यों नहीं सोचते कि तुम्हें उससे भी आगे जाना है?”
ज़हन ने चौंककर उसकी ओर देखा—
“भैया… उससे भी आगे?”
भाई ने मुस्कुराकर कहा—
“हाँ!
एंजल ने अपना मुकाम हासिल किया है, और मैं उस पर गर्व करता हूँ।
लेकिन तुम दोनों की कहानी अलग है।
एंजल ने अपने दर्द को ताक़त बनाया, और तुम…
तुमने उस दर्द को सहते हुए भी उससे निकलना सीखा है।
ये तुम्हें और भी बड़ा बनाता है।
सोचो ज़हन, अगर तुम अपनी पढ़ाई पूरी करके देश के सबसे बेहतरीन अफसर बनो…
तो न सिर्फ़ एंजल को बल्कि मुझे, और उन सबको भी गर्व होगा जिन्होंने कभी तुम्हारा मज़ाक उड़ाया था।
ज़हन की साँसें तेज़ हो गईं।
उसके दिल में जैसे एक बिजली-सी दौड़ गई हो।
वो हकलाते हुए बोला—
“क्या सच में… मैं इतना बड़ा बन सकता हूँ?”
भाई ने उसके कंधे थामे और दृढ़ स्वर में कहा—
“ज़हन, अगर तुम ठान लो तो तुम्हें कोई रोक नहीं सकता।
अब से तुम्हारा लक्ष्य सिर्फ़ पढ़ाई पूरी करना नहीं है…
बल्कि कुछ बनना भी है।
याद रखो, मेहनत करने वाला कभी छोटा नहीं होता।”
ज़हन की आँखों में आँसू थे, पर इस बार वो आँसू कमजोरी के नहीं बल्कि नई उम्मीद और जुनून के थे।
उसने भाई का हाथ कसकर पकड़ते हुए कहा—
“भाई मैं वादा करता हूँ…
एक दिन मैं ऐसा मुकाम हासिल करूँगा ,
कि आप मुझे गर्व से पूरी दुनिया के सामने अपना बेटा कहेंगे।”
उस दिन के बाद ज़हन ने, कभी भी पीछे मुड़कर नहीं देखा ।
वो अब पूरी तहत से पढ़ाई में लग गया ।
अब ज़हन का हर दिन एक जंग बन गया था।
सुबह सूरज की पहली किरण के साथ ही वो किताबों में डूब जाता।
रात को जब पूरा गाँव सो जाता, तब भी उसकी आँखों
में नींद नहीं, सिर्फ़ पन्नों की खड़खड़ाहट होती।
कभी-कभी थकान इतनी बढ़ जाती कि उसकी कलम हाथ से गिर पड़ती।
आँखें बोझिल हो जातीं, और दिमाग़ सुन्न।
ऐसे पलों में वो अपने आप से बुदबुदाता—
“नहीं… रुकना नहीं है…”
फिर भाई की वो बातें याद आतीं—
"लोग तुझे गिराकर हँसेंगे, तब ही तेरा असली सफ़र शुरू होगा…
तू सिर्फ़ गाँव में ही नहीं, बल्कि पूरे देश "में अपना नाम रोशन करेगा।"
बस, यही शब्द उसके दिल में बिजली की तरह दौड़ जाते।
वो सिर उठाकर फिर से किताबों पर झुक जाता।
गाँव वाले अक्सर उसके कमरे की खिड़की से झाँकते।
रात के अंधेरे में मिट्टी के दीये की रोशनी, और उस रोशनी के सामने बैठा ज़हन—
पसीने से तर, आँखों में जलन, पर होंठों पर दृढ़ता।
कुछ लोग अब भी ताना कसते—“पढ़-लिखकर क्या कर लेगा?
आखिर है तो पागल।”
लेकिन इस बार ज़हन के कान बहरे थे।
वो बस सुनता था पन्नों की सरसराहट और अपने दिल की धड़कन।
हर परीक्षा में, हर मॉक टेस्ट में, उसने अपनी पूरी जान लगा दी।
भाई उसे रोज़ दूध-रोटी देकर कहता—
“ज़हन, शरीर भी संभाल, वरना दिमाग़ कैसे चलेगा।”
और ज़हन मुस्कुरा कर कह देता—
“भाई, जब तक मैं तुम्हारे सपने पूरे न कर दूँ, मेरा शरीर थकेगा नहीं।”
दिन बीतते गए।
थकान, भूख, नींद—सब उसके लिए छोटी चीज़ें बन चुकी थीं।
उसके सामने अब सिर्फ़ एक सपना था—उसे एंजल के लायक बना था।
____________
आख़िर वो दिन आ गया।
रिज़ल्ट आने वाला था।
गाँव भर की नज़रें जहान पर थीं।
कुछ लोग मज़ाक बनाने को तैयार थे,
तो कुछ चुपचाप देख रहे थे।
जहान का दिल इतना जोर से धड़क रहा था
जैसे सीने से बाहर आ जाएगा।
भाई और एंजल उसके साथ खड़े थे।
तीनों की साँसें थमी हुई थीं।
रिज़ल्ट के दिन की सुबह आई।
जहान का दिल धड़क रहा था,
जैसे हर धड़कन में सवाल था—
“क्या मैं सफल हुआ? क्या भाई की मेहनत व्यर्थ गई?”
भाई ने उसकी पीठ थपथपाई।
“जो भी हो, मैं तेरा साथ हूँ।
तू ने पूरी मेहनत की,
बस यही काफी है।
एंजल उसकी आँखों में देख कर मुस्काई।
“तुम डरो मत, जहान।
तेरी मेहनत रंग लाएगी।
जहान ने कंप्यूटर खोला,
रिज़ल्ट देखने के लिए स्क्रीन पर नजरें टिकाईं।
और जैसे ही रिज़ल्ट आया…
जहान टॉप पर था!
पूरा गाँव चौंक गया।
जो लोग मज़ाक उड़ाते थे,
अब उनके चेहरे पर हैरानी और चुप्पी थी।
भाई ने खुशी से चिल्लाया—
“ये है तेरी मेहनत का फल!
और तेरी लगन ने इसे मुक़म्मल किया!”
एंजल की आँखों में आँसू थे।
वो दौड़ कर जहान को गले लगाना चाहती थीं पर अभी ये ठीक नहीं था।
“मैं जानती थी, तुम कर सकते हो मुझे तुम पर गर्व है।
जहान ने राहत की साँस ली।
उसने भाई और एंजल की ओर देखा।
“आप दोनों की वजह से ही मैं यहाँ हूँ।
अगर आप नहीं होते, तो मैं हार जाता।”
“सच्ची मेहनत और लगन कभी व्यर्थ नहीं जाती।”
भाई ने चुपचाप मुस्कुराते हुए कहा—
“अब असली काम शुरू होता है।
तू ने पढ़ाई पूरी की,
अब अपनी ज़िंदगी बनानी है।
और मैं हमेशा तेरे साथ हूँ।”
“अब तू मेरा सच्चा बेटा है।
हम तुमरे साथ हैं,और हर मुश्किल में तुम्हारा साथ देगे।
जहान ने दिल से ठाना—
“अब मैं कभी हार नहीं मानूंगा।
भाई की मेहनत और एंजल के विश्वास के लिए मैं हर मंज़िल पा लूंगा।”
कुछ सालों की मेहनत के बाद जब कॉलेज का रिज़ल्ट आया,
ज़हन का नाम टॉपर लिस्ट में था।
ये ख़बर सुनकर भाई की आँखों से आँसू निकल पड़े।
वो दौड़कर ज़हन को गले लगा लिया—
“मेरे छोटे… तूने मेरे सपनों को फिर से जिंदा कर दिया।”
भाई ने उसी शाम पूरे गाँव को दावत दी।
आँगन में लाइटें टाँगी गईं, ढोल-नगाड़े बजने लगे।
बच्चे ख़ुशी से नाच रहे थे।
लोग आते, हाथ मिलाते—
“वाह! ये तो हमारे गाँव का नाम रौशन करेगा।”
पर भीड़ में कुछ चेहरे अलग थे।
वो लोग जिन्हें ज़हन की सफलता काँटे की तरह चुभ रही थी।
कोई धीमे स्वर में बोला—
“हूँह… एक पढ़ाई से क्या होता है?
दूसरा कह उठा—
“देखना, ज़्यादा पढ़-लिखकर ये कल को गाँव वालों से मुँह फेर लेगा।”
तीसरा हँसते हुए बोला—
“पढ़ाई से रोटी नहीं मिलती।
इसके भाई ने खेतों में पसीना बहा कर ,
इसको पढ़ाया है।
देखना एक दिन ये उसे धोखा देकर निकल जाएगा।
तुम याद नहीं इसके बाप ने क्या किया था।
ये है तो यह मुखिया का बेटा ।
जाने भाई ने इसमें क्या देखा
इसने अपना पूरा परिवार बर्बाद कर दिया ।
अब कभी एंजल और भाई को बर्बाद न कर दे।
ये शब्द भाई के कानों तक पहुँचे।
वो सब सुनकर भी मुस्कराया और मन ही मन बोला—
“जलते रहो… लेकिन अब मैं अपने बेटे को उड़ान दूँगा।
अब कोई रोक नहीं पाएगा।”
और जिस दिन मेरा छोटा अपने दम पर पूरे देश में अपना परचम लहराएगा,
उस दिन में बात करूंगा।
________
दूसरी तरफ
स्टेज पर ज़हन ने गाँव वालों के सामने सिर झुकाकर कहा—
“अगर आज मैं यहाँ हूँ, तो सिर्फ़ अपने भाई की वजह से।
उसने अपनी ज़िंदगी कुर्बान करके मेरी पढ़ाई कराई।”
तालियाँ गूँज उठीं,
लेकिन अंधेरे कोनों में कुछ आँखें अब भी ईर्ष्या से चमक रही थीं…
मानो किसी आने वाले तूफ़ान का इशारा दे रही हों।
लेकिन उसी भीड़ में कुछ लोग कानाफूसी करने लगे।
किसी ने हँसकर कहा—
- “अरे, ये वही ज़हन है न?
- जो गलियों में पागल की तरह एंजल-एंजल
- पुकारता फिरता था?”
दूसरा बोला—
“हाँ… याद है न, जब इसे अस्पताल से पागलखाने ले जाया गया था?
लोग मज़ाक उड़ाते थे कि अब ये कभी ठीक नहीं होगा।”
तीसरा धीरे से हँस पड़ा—
“आज अफ़सोस हो रहा है
… जिसे हम पागल कहते थे,
वो आज टॉपर बनकर खड़ा है।”
ज़हन ये सब सुन रहा था।
उसकी आँखें भीग गईं,
दिल में याद गूंज उठी—
"काश… मेरे पिता यहां होते तो देखते,
ज़हन अब पागल नहीं रहा।"
दावत पूरे शबाब पर थी।
ढोल-नगाड़ों की थाप पर बच्चे उछल रहे थे,
लोग मिठाइयाँ खा रहे थे और तालियाँ बजाकर ज़हन की तारीफ़ कर रहे थे।
लेकिन ज़हन…
स्टेज पर बैठा सब सुन रहा था,
चेहरे पर मुस्कान थी पर आँखें नम थीं।
भीड़ में अचानक एक आवाज़ गूँजी—
“अरे, याद है न सबको?
यही ज़हन कभी गलियों में ‘एंजल-एंजल’ चिल्लाता फिरता था।
पगला गया था पूरी तरह।”
लोगों ने ठहाका लगाया।
ज़हन की पलकों में आँसू भर आए,
लेकिन उसने सिर झुका लिया।
तभी किसी और ने कहा—
“हाँ, और जब इसकी हालत बिगड़ गई थी,
तो मुखिया जी ने खुद अपने आदमियों से इसे
पकड़कर पागलखाने भेजा था।
उस दिन तो पूरा गाँव तमाशा देख रहा था।”
एक तीसरा बोला—
“और उसके बाद?
किसी ने इसकी ख़बर तक नहीं ली।
कितना बेबस हो गया था बेचारा।”
कुछ देर की चुप्पी के बाद वही आदमी फिर बोला—
“असल में उसी किस्से के बाद ही तो मुखिया का पूरा परिवार गाँव छोड़कर शहर चला गया।
लोग कहते हैं, उन्हें शर्मिंदगी झेलनी पड़ी थी।”
ये सुनकर भीड़ में फुसफुसाहट फैल गई।
लोग हँस भी रहे थे, कुछ अफ़सोस भी जता रहे थे।
लेकिन किसी ने ज़हन की तरफ़ गौर नहीं किया—
वो वहीं बैठा आँसू पोंछता रहा।
भाई दूर से ये सब देख रहा था।
उसकी मुट्ठियाँ भींच गईं,
दिल में आग सी जल उठी—
“लोग सिर्फ़ ताने मार सकते हैं…
पर अब मैं इन सबको दिखाऊँगा कि मेरा भाई किसी से कम नहीं।”
खुशियों के बीच अचानक खामोशी का एक ठंडा तूफ़ान आया।
ढोल-नगाड़ों की थाप जैसे रुक-सी गई। एक बुजुर्ग गाँववाला उठ खड़ा हुआ
वही जो पहले ज़हन को ताने मारता और मुखिया के हुक्म में चलने वाला माना जाता था।
उसकी आवाज़ में व्यंग्य था, और शब्द तलवार की तरह।
“देखो तो सही,” उसने ऊँची आवाज़ में कहा, “हम सब खुश हैं, पर सच भी क्या है?
ये वही लड़का है जो कभी गलियों में पागल की तरह घूमता था।
आज पढ़-लिखकर चमक रहा है, पर क्या ये सब उसकी अपनी मेहनत से नहीं—
ये तो भाई मेहरबानी ओर भीख के पैसों हैं।
अगर भाई ने दया न की होती तो, अभी उसी पागलखाने में सड़ता।
सभी लोग
वह ठहाका मारकर हस रहे
“दूसरी के दम पर पालने वाला, अपने दम पर कुछ नहीं कर पाएगा।”
शब्द हवा में गूँज उठे।
कुछ लोग सहमति से हँसे,
कुछ ने आँखें झुका लीं।
कोई-किसी के कानों में फुसफुसाकर कहने लगा—
हाँ, यही तो है,भाई का पैसा और नाम, वरना क्या कर पाता?”
ज़हन वहीँ बैठा रहा।
चेहरा का रंग बदल रहा था
शर्म, गुस्सा, और एक ठंडी सी पीड़ा उसके भीतर से उठ रही थी।
भीड़ की हर हँसी उसके सीने में छुरी बनकर उतरती गई।
उसने किसी से कोई जवाब नहीं दिया।
उसकी जुबान सूख चुकी थी, गला बस चलता रहा:
उसने मुंह खोला” पर आवाज़ टूट कर रह गई।
मंडप की रोशनी उसकी आँखों में अटक गई
जहाँ लोग खुशियाँ बाँट रहे थे, वहीँ उसके लिए अब ताने की दुनिया उघड़ी हुई थी।
उसने अपने मुट्ठी भीचने की कोशिश की, पर हाथ कांप रहे थे।
उसकी छाती में हल्का-स तेज़ दर्द- उठ रहा था —
जैसे हर शब्द ने उसे दोहराकर चोट दी हो।
भाई ने दूर से यह सब देखा।
उसके होंठ कटे हुए थे, लेकिन उसने भीड़ में जाकर किसी को थप्पड़ नहीं मारा
पर उसकी आँखों में आग थी;
दिल में एक संकल्प पनपने लगा।
ये अपमान वह कभी सहन नहीं होने देगा।
ज़हन अचानक उठ खड़ा हुआ —
कदम लड़खड़ाए, और बिना किलसी को देखे मंडप से निकल गया।
भीड़ के बीच उसकी पीठ पर लोग अभी भी बातें करते रहे,
पर ज़हन के कदमों के साथ वहाँ की आवाजें भी पीछे छूटती गईं।
वह छत पर चढ़ा, खुले आसमान के नीचे बैठ गया और सिर उस घुटनों पर रख लिया।
उसकी साँसें फटने लगीं और आंखों से बेरोक-टोक आँसू बहने लगे —
पर यह रोना किसी कमजोरी का नहीं था; यह एक
गहरी जलन थी जो भीतर से कुछ नया जन्म दे रही थी।
वो रोया —ओर बहुत देर तक रोया।
उस तरह रोया जैसे बच्चा अपने कीमती हिलाने के लिए रोता है।
वह घंटों तक रोता रहा ।
दिल कॉर्ड कम नहीं हुआ ,दर्द जो हर सेकेंड बढ़ता जा रहा था।
नीचे, भीड़ में कुछ लोग अभी भी ताने मारते रहे, पर कुछ चेहरे चुप बैठे हुए थे —
किसी की जिज्ञासा, किसी की शर्म, और किसी की
सोच कि अभी जो दिख रहा है,
उसका पूरा सच शायद वे नहीं जानते।
उस रात ज़हन के दिल पर जो चोट लगी थी, वह केवल अपमान की नहीं थी —
उस चोट ने उसे भीतर से हिलाकर रख दिया।
पर साथ ही,
उसी चोट में कहीं एक ठंडी सी आवाज़ भी गूँजी:
“इसी अपमान से उठकर दिखाना है।”
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