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रात्री के भोजन के उपरांत सारा सोने के लिए सज्ज हो रही थी तभी उसके द्वार को किसी ने खटखटाया। सारा चौंक गई, सावध हो गई।
‘इस समय? मेरे पास कौन आ सकता है? मैं तो किसी को जानती नहीं हूँ। विजेंदर तो ऐसे आ नहीं सकता। तो कौन होगा?’
आगंतुक ने पुन: द्वार खटखटाया। सारा ने अपनी रिवॉल्वर संभाली।
“कौन है?”
कोई उत्तर नहीं आया।
“किसका काम है?”
“हमें सारा उलफ़त से मिलना है।” किसी स्त्री का स्वर सारा ने सुना।
“क्यों? इस समय?”
“आप चिंता न करें। हम आपके दोस्त हैं, दुश्मन नहीं। आपको हमसे कोई भय नहीं है।”
“आप हैं कौन?”
“सब कुछ बता दूँगी। आप पहले दरवाजा तो खोलिए। मैं आपको कोई हानी नहीं पहुंचाऊँगी। मेरा विश्वास कर सकती हो, सारा।”
उस स्वर ने सारा को विश्वास करने के लिए मना लिया। उसने द्वार खोल दिया।
द्वार पर एक स्त्री तथा एक पुरुष थे।
“आपने नहीं बताया कि आपके साथ कोई पुरुष भी है।”
सारा के इस प्रश्न का उत्तर दिए बिना ही दोनों ने सारा के कक्ष में प्रवेश कर लिया। सारा असहाय सी उसे देखती रही और वह दोनों ने कुर्सियों पर आसन ग्रहण कर लिए।
“सारा, बैठो ना।” सारा बैठ गई।
सारा ने प्रथम उस स्त्री को देखा। वह एक ही रंग, काले रंग, की साड़ी में थी। साड़ी सुंदर तरीके से पहनी हुई थी। बाल खुले थे। आँखों में गाढ़ा काजल लगाया हुआ था। ललाट पर गोल बड़ी बिंदी काले रंग की लगाई हुई थी। होंठों पर हल्की सी लिपस्टिक थी।
पुरुष ने कुर्ता तथा जींस पहना हुआ था। बाल लंबे थे। आँखों में कुछ नशा सा था। किसी कलाकार जैसा लग रहा था।
“सारा जी। भारत में आपका स्वागत है।” पुरुष ने कहा।
“किन्तु आप लोग हैं कौन?”
“हम आपके हितेच्छु हैं।”
“अपना अपना परिचय दें।”
“आप हैं प्रोफेसर निहारिका।”
“और आप हैं शिल्पकार सपन।”
“आप दोनों मुझसे क्या चाहत रखते हो?”
“हमने कहा ना कि हम आपके हितैषी हैं।”
“वह कैसे?”
“हम आपको एक ऐसी बात बताने आए हैं जिसे जानकार आप जिस घटना का अन्वेषण करने के लिए पाकिस्तान से यहाँ आई हो उस घटना पर से रहस्य हट जाएगा और आप उस रहस्य को शीघ्र ही पा लोगे।”
“उससे क्या होगा?”
“जो काम भारत के पुरुष अधिकारी नहीं कर पाएंगे वह काम आप एक दो दिन में कर लोगी तो सोचो कि कितना बड़ा ;आभ होगा आपको?”
“और उससे आपको क्या लाभ?”
“भारत की पुलिस की विफलता और पाकिस्तानी स्त्री की सफलता का हम पूरा लाभ उठायेंगे। भारत को विश्व स्तर पर बदनाम करने का हमें अवसर मिल जाएगा। इस प्रकार हम सरकार को घेरेंगे। जनता के बीच उसके विरुद्धध प्रचार करेंगे। सोचो ऐसे में सरकार कितनी शर्मनाक स्थिति में आ जाएगी!”
“किन्तु यह सरकार तो आम जनता की लोकप्रिय सरकार है।”
“यही तो। हम उसकी लोकप्रियता को घटाने का प्रयास कर रहे हैं।”
“क्यों?”
“यदि ऐसा करते रहेंगे तो आनेवाले चुनाव में हम उसे हरा सकते हैं।”
“सारा, इसमें तुम्हारा भी लाभ है। तुम जब अपने देश जाओगी तब तुम्हारे साथी, जो तुमसे अनुचित व्यवहार कर रहे हैं, भी तुम्हारी सफलता पर तुम्हें प्रताड़ित नहीं करेंगे, उल्टा तुम्हारी प्रशंसा करेंगे।”
“क्या तुम ऐसा नहीं चाहती कि तुम्हारा सम्मान हो? साथी पुलिस अधिकारी तुम्हें सम्मान दे?”
“हाँ। मैं ऐसा अवश्य चाहती हूँ। किन्तु यह कहो कि मैं आप दोनों पर भरोसा क्यों करूँ?”
“क्यों नहीं कर सकती?”
“मैं किसी अज्ञात व्यक्तियों पर भरोसा नहीं कर सकती, विशेष रूप से जब वह दुश्मन देश भारत से हो।”
“हम आपको विश्वास दिलाते हैं। आप हमारा विश्वास कर सकती हो।”
“वह कैसे?”
“हम भारत के वामपंथी हैं।”
“हम सेकुलर हैं।”
“हम नास्तिक हैं।”
“हम बुद्धिजीवी हैं।”
“हम कलाकार हैं।”
“हम अवॉर्ड वापसी गैंग के सदस्य हैं।”
“और सबसे महत्वपूर्ण बात, हम jnu, जे एन यू से हैं।”
“क्या अब भी आप हमारा विश्वास नहीं कर सकती?”
“अब जब आपमें इतने सारे गुण हैं तो मुझे आप पर कोई संदेह करने का कारण नहीं है।”
“आपका धन्यवाद। सारा जी।”
“कहिए, क्या योजना है?”