मेले की घटना के बाद अर्जुन का मन और अधिक दृढ़ हो गया था। उसे अब समझ आने लगा था कि ब्रह्मचर्य का मार्ग केवल किताबों का ज्ञान नहीं, बल्कि हर रोज़ के प्रलोभनों में अपने आप पर विजय पाने का नाम है।
फिर भी उसके भीतर एक प्रश्न बार-बार उठता –
“क्या मैं अकेले इस मार्ग पर चल पाऊँगा? मेरी शक्ति कितनी है? क्या यह संकल्प जीवन भर निभाया जा सकता है?”
इन्हीं उलझनों के बीच एक सुबह वह गुरुजी स्वामी वेदानंद के आश्रम पहुँच गया। सूरज अभी निकला ही था। ओस की बूँदें घास पर चमक रही थीं, चिड़ियों का कलरव वातावरण को मधुर बना रहा था। आश्रम की शांति ऐसी थी मानो प्रकृति भी ध्यान में बैठी हो।
अर्जुन ने देखा – गुरुजी पीपल के पेड़ के नीचे आसन लगाकर बैठे हैं। आँखें बंद, साँसें धीमी, चेहरा शांत। उनके चारों ओर जैसे कोई दिव्य आभा थी।
अर्जुन ने झुककर प्रणाम किया –
“गुरुदेव, आपकी शरण में आया हूँ।”
गुरुजी ने आँखें खोलीं। उनकी दृष्टि में ममता और करुणा थी।
“आओ बेटा अर्जुन। आज तुम्हारे मन में कौन-सा प्रश्न है?”
अर्जुन थोड़ी देर झिझका, फिर बोला –
“गुरुदेव, मैंने ब्रह्मचर्य का संकल्प लिया है। पहली परीक्षा में मैं स्थिर रहा, लेकिन मन में अभी भी भय है। अगर आगे और कठिन परीक्षाएँ आईं तो? कहीं मैं हार न जाऊँ? कृपया मुझे मार्ग दिखाइए।”
गुरुजी ने मुस्कुराकर कहा –
“अर्जुन, डरना स्वाभाविक है। जो मार्ग कठिन हो, वहीं सच्ची साधना होती है। आओ, आज मैं तुम्हें ब्रह्मचर्य की गहराई समझाता हूँ।”
गुरुजी ने अपने पास पड़े एक दीपक को दिखाया।
“देखो बेटा, यह दीपक जल रहा है क्योंकि इसकी लौ एकाग्र है। अगर इसमें हवा तेज़ हो तो लौ डगमगाने लगेगी और बुझ भी सकती है। मनुष्य का जीवन भी ऐसा ही है। जब उसकी ऊर्जा इधर-उधर की इच्छाओं में बिखर जाती है, तब उसका प्रकाश बुझ जाता है। लेकिन जब वह ऊर्जा ब्रह्मचर्य से सुरक्षित रहती है, तब उसका जीवन दीपक की तरह तेजस्वी हो उठता है।”
अर्जुन ध्यान से सुन रहा था।
गुरुजी आगे बोले –
“लोग समझते हैं कि ब्रह्मचर्य का मतलब केवल स्त्री से दूर रहना है। यह आधा सच है। असली ब्रह्मचर्य है – अपने मन की कामनाओं को संयमित करना।
👉 जब भूख लगे, तो संयमित भोजन करना।
👉 जब क्रोध आए, तो वाणी को शांत रखना।
👉 जब मोह जगाए, तो उसे ज्ञान से जीतना।
अगर इन सब पर विजय पा ली तो मनुष्य में अपार शक्ति जाग्रत होती है।”
अर्जुन ने धीरे से कहा –
“गुरुदेव, क्या सचमुच ब्रह्मचर्य से शक्ति मिलती है?”
गुरुजी ने हँसते हुए उत्तर दिया –
“हाँ बेटा। यह शक्ति केवल शारीरिक नहीं, बल्कि मानसिक और आत्मिक होती है। इतिहास देखो – महर्षि व्यास, आद्य शंकराचार्य, स्वामी विवेकानंद – ये सब ब्रह्मचर्य के बल से ही युगों तक लोगों को प्रेरणा देते हैं।
👉 ब्रह्मचर्य से स्मरण-शक्ति तीव्र होती है।
👉 वाणी में प्रभाव आता है।
👉 और सबसे बड़ी बात – आत्मा की शांति मिलती है।”
अर्जुन के मन में जैसे नया प्रकाश फैल गया। उसने दृढ़ स्वर में कहा –
“गुरुदेव, मैं यह मार्ग अवश्य अपनाऊँगा। चाहे कितनी भी कठिनाई आए।”
गुरुजी ने उसकी पीठ थपथपाई।
“शाबाश! लेकिन याद रखो अर्जुन, केवल संकल्प लेना काफी नहीं। अभ्यास भी जरूरी है। मैं तुम्हें कुछ साधनाएँ बताता हूँ।”
उन्होंने अर्जुन को योग और प्राणायाम की विधि समझाई –
1. प्राणायाम – प्रतिदिन प्रातःकाल नदी किनारे बैठकर गहरी श्वास लेना और छोड़ना।
2. ध्यान – मन में किसी एक बिंदु पर ध्यान टिकाना, चाहे वह ओम का स्वर हो या श्वास की गति।
3. संयम – भोजन सरल रखना, अधिक न खाना, और रात्रि को जल्दी सोना।
गुरुजी ने कहा –
“ये साधनाएँ तुम्हारे मन और शरीर दोनों को संतुलित रखेंगी। इससे तुम्हारी कामनाएँ धीरे-धीरे शांत होंगी और आत्मबल बढ़ेगा।”
अर्जुन ने दोनों हाथ जोड़कर प्रणाम किया –
“गुरुदेव, आपके शब्द मेरे लिए अमृत हैं। कृपया मुझे आशीर्वाद दें कि मैं कभी डगमगाऊँ नहीं।”
गुरुजी ने उसके सिर पर हाथ रखा और कहा –
“बेटा, मेरा आशीर्वाद तुम्हारे साथ है। याद रखो, जब भी मन विचलित हो, आँखें मूँदकर अपनी आत्मा से बात करना। आत्मा कभी धोखा नहीं देती।”
उस दिन अर्जुन देर तक आश्रम में रहा। वह गुरुजी के साथ नदी किनारे गया। वहाँ वे दोनों मौन साधना में बैठे। नदी की लहरों की मधुर आवाज़, हवा की सरसराहट और पक्षियों का गीत – सब मानो ध्यान में लीन हो गए।
अर्जुन को लगा कि उसका मन हल्का होता जा रहा है। भीतर की उलझनें धीरे-धीरे मिट रही हैं।
गुरुजी ने कहा –
“अर्जुन, ब्रह्मचर्य केवल त्याग नहीं, बल्कि शक्ति का रूपांतरण है। जब तू अपने भीतर की कामना को दबाएगा नहीं, बल्कि उसे साधना की ओर मोड़ेगा, तब तेरा जीवन बदल जाएगा।”
अर्जुन ने आँखें बंद कीं और मन ही मन कहा –
“हे प्रभु, मैं आज से केवल साधारण अर्जुन नहीं, बल्कि आत्मबल का साधक बनना चाहता हूँ। कृपया मुझे इस मार्ग पर स्थिर रखो।”
शाम ढलने पर वह घर लौटा। माँ ने देखा कि उसके चेहरे पर अजीब-सी चमक है।
“अर्जुन, आज तो तू अलग ही लग रहा है। क्या हुआ?”
अर्जुन ने बस इतना कहा –
“माँ, आज मुझे गुरुजी का आशीर्वाद मिला है। अब मुझे अपने मार्ग पर कोई संदेह नहीं।”
माँ ने स्नेह से उसके सिर पर हाथ रखा और आशीर्वाद दिया –
“बेटा, तेरा मार्ग कठिन है, पर मुझे विश्वास है तू सफल होगा।
उस रात अर्जुन ने ध्यान किया तो उसे भीतर गहरी शांति मिली। उसने अनुभव किया कि उसके संकल्प को अब गुरुजी के आशीर्वाद की शक्ति भी मिल गई है।
उसने मन ही मन कहा –
“अब चाहे कैसी भी आँधी आए, मैं डगमगाऊँगा नहीं। ब्रह्मचर्य ही मेरा धर्म है, यही मेरा जीवन।”
इस तरह अर्जुन ने गुरुजी से ब्रह्मचर्य की गहराई समझी और साधना का मार्ग पाया। उसके जीवन में यह एक नया मोड़ था, क्योंकि अब वह अकेला साधक नहीं, बल्कि गुरु के आशीर्वाद से समर्थ साधक बन चुका था।