Brahmchary ki Agnipariksha - 6 in Hindi Short Stories by Bikash parajuli books and stories PDF | ब्रह्मचर्य की अग्निपरीक्षा - 6

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ब्रह्मचर्य की अग्निपरीक्षा - 6

मोह और अकेलेपन की परीक्षा पार करने के बाद अर्जुन का आत्मबल बढ़ चुका था। वह अब शांत, संयमी और आत्मविश्वासी हो गया था। लेकिन साधना का मार्ग कभी सरल नहीं होता। अगली चुनौती और भी गहरी थी – क्रोध की अग्नि।
गाँव में एक आदमी था – भुवन। वह स्वभाव से अहंकारी और कटु भाषी था। उसका काम था दूसरों को तंग करना और अपमानित करना।
जब उसने देखा कि गाँव में लोग अर्जुन की साधना और शांति की सराहना करने लगे हैं, तो उसके भीतर जलन की आग भड़क उठी।

भुवन ने सोचा –
“ये लड़का अभी छोटा है, और लोग इसे संत समझने लगे हैं। अगर यह आगे बढ़ गया, तो मेरी कोई इज्ज़त नहीं बचेगी। मुझे इसे सबके सामने नीचा दिखाना होगा।”


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एक दिन भुवन ने गाँव की चौपाल पर सबके सामने अर्जुन को बुलाया।
वह ज़ोर से बोला –
“ओ अर्जुन! तू तो बहुत बड़ा साधु बना फिरता है न? तो बता, तेरी साधना ने तुझे क्या दिया है? तू क्या कर लेगा अपने ब्रह्मचर्य से? ये सब ढोंग है, ताकि लोग तुझे सम्मान दें।”

लोग हँसने लगे।
अर्जुन चुप खड़ा रहा।

भुवन ने फिर ताना मारा –
“तेरी आँखों में संताई दिखती है, लेकिन अंदर से तू भी हमारे जैसा ही है। अभी अगर मैं तुझे गाली दूँ, तो क्या तू सहन कर लेगा? या फिर तेरे भीतर का क्रोध फट पड़ेगा?”

अर्जुन का दिल धड़कने लगा। वह संयमित रहने की कोशिश कर रहा था, परंतु भुवन की कठोर बातें उसके दिल में आग लगाने लगीं।
अचानक भुवन ने धक्का देकर अर्जुन को गिरा दिया।
गाँव वाले दंग रह गए।
भुवन हँसते हुए बोला –
“अब बता! तेरी साधना कहाँ है? उठ और दिखा कि तू कितना शांत है।”

अर्जुन के भीतर जैसे ज्वालामुखी फट पड़ा। उसके हाथ मुट्ठी में बंध गए, आँखें लाल हो गईं।
उसका मन चीखा –
“अगर मैं इसे सबक न सिखाऊँ, तो मेरा नाम अर्जुन नहीं!”

वह उठ खड़ा हुआ और भुवन को गुस्से से घूरने लगा।

तभी उसके मन में गुरुजी की आवाज़ गूँज उठी –
“अर्जुन! याद रख, साधना का असली शत्रु क्रोध है। क्रोध इंसान की बुद्धि को जला देता है, और उसे वही बनाता है जिससे वह भाग रहा है। अगर तू क्रोध में जीत गया, तो साधना में आगे बढ़ेगा। अगर हार गया, तो अब तक की सारी तपस्या व्यर्थ हो जाएगी।”

अर्जुन काँपने लगा। उसके अंदर दो आवाज़ें लड़ रही थीं –
एक कह रही थी – “भुवन को सबक सिखा, नहीं तो सब तुझे कायर समझेंगे।”
दूसरी कह रही थी – “अगर तूने हिंसा की, तो तेरी आत्मा हार जाएगी।”

गाँव वाले चुपचाप तमाशा देख रहे थे। सबको लग रहा था कि अब अर्जुन भुवन को मार देगा।

लेकिन तभी अर्जुन ने गहरी साँस ली, आँखें बंद कीं और धीरे से कहा –
“भुवन भाई, तुम जो चाहो कहो। अगर तुम मुझे गिराकर संतोष पाते हो, तो गिराओ। लेकिन मैं अपने संकल्प को नहीं गिरने दूँगा।”

उसने हाथ जोड़कर भुवन को प्रणाम किया और वहाँ से चला गया।

गाँव वाले स्तब्ध रह गए।
कुछ लोग फुसफुसाने लगे –
“वाह! ये लड़का सचमुच साधक है। जिसने अपमान और धक्का सह लिया, वह साधारण इंसान नहीं।”

भुवन को भी अजीब-सी चोट लगी। उसे लगा जैसे उसने लड़ाई जीतकर भी हार खाई हो।

उस रात अर्जुन का मन बेचैन था। वह सोच रहा था –
“मैंने क्रोध को दबाया, लेकिन क्या सचमुच जीत पाया? भीतर तो आग अब भी जल रही है। मुझे तो भुवन से नफरत होने लगी है।”

अगली सुबह वह गुरुजी के पास पहुँचा और सारी बात बता दी।

गुरुजी मुस्कुराए और बोले –
“बेटा, तूने बहुत बड़ा काम किया है। तूने अपने हाथों को हिंसा से रोका। लेकिन अभी तेरे मन में क्रोध की ज्वाला बाकी है। याद रख – क्रोध को दबाना भी ठीक नहीं, उसे समझना और शांत करना ज़रूरी है।”

अर्जुन ने पूछा –
“गुरुदेव, मैं उसे शांत कैसे करूँ?”

गुरुजी ने कहा –
“जब भी कोई तुझे अपमानित करे, तो सोच – वह व्यक्ति तेरा शिक्षक है। वह तुझे यह दिखाने आया है कि तेरे भीतर कितना धैर्य है। भुवन तेरा शत्रु नहीं, तेरा शिक्षक है। उसका आभार मान, क्योंकि उसने तुझे तेरे भीतर की कमजोरी से परिचित कराया।”
अर्जुन को गहरी समझ मिली।
उसने आँखें बंद करके मन ही मन कहा –
“भुवन, तेरा धन्यवाद। तूने मुझे अपमानित करके दिखाया कि मेरे भीतर अभी भी क्रोध है। अब मैं जानता हूँ कि मुझे किस पर विजय पानी है।”

उस दिन से अर्जुन ने क्रोध को दुश्मन नहीं, बल्कि गुरु मानना शुरू किया।
जब भी उसे गुस्सा आता, वह गहरी साँस लेता और सोचता –
“यह मेरी साधना की परीक्षा है। मैं इसे धन्यवाद देकर शांत कर दूँगा।”

धीरे-धीरे उसका स्वभाव इतना शांत हो गया कि गाँव वाले हैरान रह गए।
अब चाहे कोई उसे कुछ भी कहे, अर्जुन बस मुस्कुराकर उत्तर देता।
कुछ महीनों बाद भुवन बीमार पड़ गया। सब लोग उससे दूर हो गए क्योंकि वह हमेशा सबको अपमानित करता था।
लेकिन अर्जुन रोज़ उसके घर जाकर उसकी सेवा करने लगा – पानी लाता, दवा देता, और नम्रता से हालचाल पूछता।

भुवन की आँखों में आँसू आ गए।
वह बोला –
“अर्जुन, मैंने तुझे बहुत अपमानित किया, धक्का दिया, फिर भी तू मेरी सेवा कर रहा है। तू सचमुच साधक है। मुझसे बड़ी गलती हुई।”

अर्जुन मुस्कुराया और बोला –
“भुवन भाई, गलती नहीं हुई। आपने मुझे क्रोध पर विजय पाना सिखाया। इसके लिए मैं आपका आभारी हूँ।”

भुवन का हृदय पिघल गया।
उसने अर्जुन से माफी माँगी और दोनों के बीच सच्ची मित्रता हो गई।
उस रात अर्जुन ने अपने मन में लिखा –
“आज मैंने सीखा कि क्रोध को जीतना केवल दूसरों को न चोट पहुँचाने में नहीं है, बल्कि मन से भी द्वेष मिटाने में है। जब तक दिल में नफरत है, तब तक क्रोध जीवित है। लेकिन जब दिल में करुणा आ जाती है, तब क्रोध की आग अपने आप बुझ जाती है।”
इस तरह अर्जुन ने अपनी छठी कठिनाई – क्रोध की अग्नि – पर विजय पा ली।
अब उसकी साधना और भी गहरी हो चुकी थी।