मेरा नाम गुलाम दीन है। मेरी उम्र के लिहाज से यह नाम बहुत बड़ा था। क्योंकि मैं तो अभी 19 साल का एक लड़का था। मगर हालात ऐसे थे कि बचपन का सहारा लेने का वक्त भी नहीं मिला। गुरबत ने इस कदर जकड़ रखा था कि ना खेल कूद का मौका मिला ना बचपन के ख्वाब देखने की फुर्सत रही। हमारा घर कच्ची मिट्टी का बना हुआ था। जिसकी छत पर पुराने बोसीदा टाट के टुकड़े डाले गए थे। बारिश हो तो छत टपकती थी और गर्मी हो तो अंदर जैसे आग बरसने लगती थी। बूढ़ी मां ही मेरे लिए सब कुछ थी। वही मेरी मां थी और वही बाप भी। क्योंकि बाप तो बहुत पहले इस दुनिया से रुखसत हो चुका था। हमारे पास ना जमीन थी, ना जायदाद और ना ही कोई आसरा। सिर्फ एक पुरानी सी लकड़ी की रेहड़ी थी, जिस पर मेरा मुस्तकबिल और मां का सहारा टिका हुआ था। आज सुबह-सवेरे मां ने दाल और चावल पकाए। उनके हाथ कांप रहे थे। मगर फिर भी बड़ी मोहब्बत से खाना बनाया और कहा बेटा यह बेचना इंशा अल्लाह रिज़्क मिलेगा। उनकी आंखों में उम्मीद थी और मेरे दिल में एक अनकाहा सा डर क्योंकि यह मेरा पहला दिन था। मैं रेहड़ी लेकर निकल पड़ा। सूरज अभी पूरी तरह चमका भी नहीं था। मगर गर्मी का ऐसा जोर था, जैसे आसमान से आग बरस रही हो। पसीने की बूंदे मेरे कपड़ों को भिगो रही थी, फिर भी मैं चलता रहा। थोड़ी दूर एक बड़ा सा दरख्त नजर आया। मैंने सोचा उसके नीचे साया है। जरा रुक लूं, सस्ता भी लूं और साथ ही खरीदारों का इंतजार भी करूं। दरख्त वाकई बहुत घना था। उसके नीचे खड़े होकर एक लम्हे को सुकून सा महसूस हुआ। मगर वक्त गुजरता गया और कोई एक बंदा भी मेरे पास ना आया। लोग आते जाते रहे। कुछ एक नजर देखकर आगे बढ़ गए। मेरा दिल बैठने लगा। करीब ही एक बड़ी फैक्ट्री थी। मैंने सोचा कि जैसे ही छुट्टी होगी मजदूर बाहर आएंगे। जरूर भूखे होंगे तब मैं सारा खाना बेच डालूंगा। वक्त आया फैक्ट्री की घंटी बजी। मजदूर बाहर निकले। मेरा दिल खुशी से धड़कने लगा। मगर यह खुशी चंद लम्हों में मायूसी में तब्दील हो गई क्योंकि वह सब भी मेरे पास से ऐसे गुजर गए जैसे मैं वहां था ही नहीं। मुझे कुछ समझ में ना आया। मैं परेशानी में रेहड़ी के साथ खड़ा था कि दूर से एक आदमी ने मुझे आवाज दी। मैं रेहड़ी घसीटता हुआ उसके करीब गया। वो बोला बेटा अगर तुम यहां खड़े रहे तो कोई तुम्हारे पास नहीं आएगा। मैंने हैरानी से पूछा क्यों? तो वह कहने लगा यह जो बड़ा दरख्त है ना लोग कहते हैं कि इस पर भूतों का बसेरा है। कोई इसके नीचे रुकता नहीं। ना बैठता है या ना कुछ खाता पीता है। मैं हक्का-बक्का रह गया। फौरन रेहड़ी साइड पर कर ली। मगर तब तक देर हो चुकी थी। धूप तेज हो चुकी थी। खाना गर्म होकर खराब होने लगा। शाम तक पूरा दिन इंतजार किया मगर कोई ना आया। आज ना सिर्फ कुछ कमाया नहीं बल्कि सारा खाना झाया करके लाया। घर गया तो मां के चेहरे पर फिक्र और आंखों में नमी थी। मगर मैंने हिम्मत नहीं हारी। खुद को समझाया पहला दिन है। किस्मत आजमाई जारी रखूंगा। मैंने सर उठाकर देखा तो वही सात आठ लड़कियां आती दिखाई दी। वही रंग बिरंगे कपड़े वही खिलखिलाहट जैसे हवा उनके साथ खेल रही हो। वो करीब आई और एक ने हमेशा की तरह मुस्कुरा कर कहा, एक-एक प्लेट लगा दो। मेरे दिल में खुशी की लहर दौड़ गई। मैंने फौरन उनके लिए प्लेटें तैयार कर दी। मगर आज कुछ अलग था। उन्होंने खाना शुरू किया तो एक प्लेट खत्म होते ही हर लड़की ने दूसरी प्लेट मांग ली। मैं हैरान रह गया। यह लड़कियां देखने में इतनी दुबबली पतली थी जैसे हवा का झोंका लगे तो उड़ जाएंगी। दो-दो प्लेटें खा गई और खाने के बाद भी ऐसा लग रहा था जैसे उनके पेट अभी भी भरे नहीं। मैं सोचता रहा कि आखिर यह इतना खाना कैसे खा लेती हैं? मैंने कभी ऐसे ग्राहक नहीं देखे जो इस तरह भूख से भर कर खाएं। खाने के बाद जब मैंने हिसाब लगाया तो लगा शायद इन्होंने पैसे गलत दिए हैं क्योंकि रकम जरूरत से ज्यादा थी। मैंने एक लड़की को आवाज दी और कहा आपने ज्यादा पैसे दे दिए हैं तो वह मुस्कुरा कर बोली खाना बहुत मजेदार था। इनाम समझ कर रख लो और उसने मेरे हाथ में ₹3000 थमा दिए। मैंने बार-बार मना किया। मगर वह सब हंसती-हंसती वहां से चली गई। उस दिन जब मैं पैसे लेकर घर पहुंचा और मां के हाथ पर रखे तो उसकी आंखों में जो खुशी की चमक थी वो देखने लायक थी। वो बोली बेटा अब तो लगता है किस्मत का दरवाजा खुल गया है। मां ने अगले दिन के लिए और ज्यादा मेहनत से खाना तैयार किया और मैं भी दिल ही दिल में खौश था क्योंकि अब कारोबार चलने लगा था। वो लड़कियां अब रोज मेरी रेहटी पर आने लगी। दिन चढ़ता तो मैं उनके इंतजार में लग जाता और जब वह आती तो ऐसा लगता जैसे किस्मत खुद चलकर मेरे पास आ रही हो। एक लड़की कभी-कभी तीन-तीन प्लेट खा जाती। कभी चार-चार भी और वह भी इतनी जल्दी कि देखकर लगता जैसे कई दिनों से भूखी हो। उन्हें देखकर मेरे दिल में तरस भी आता। मैं सोचता सारा दिन कहां-कहां भटकती होंगी। कुछ खाने को नहीं मिलता होगा। इसलिए मेरे पास आकर इतना खा जाती हैं। मगर फिर दिल में एक सवाल भी उठता कि यह शक्लों से तो बिल्कुल गरीब नहीं लगती। साफ सुथरे कपड़े, महंगे जेवर और उनके जिस्म से आती खुशबू लेकिन उनकी भूख का आलम। ऐसा कि लगता जैसे दिन भर कुछ खाया ही ना हो। खैर मैंने इन बातों को नजरअंदाज कर दिया क्योंकि अब मेरी आमदनी अच्छी हो रही थी। मां भी खुश थी और मैं भी। वो आठों लड़कियां मिलकर रोज इतना खाना खा लेती थी कि अक्सर मेरा सारा खाना दोपहर से पहले ही खत्म हो जाता था। बाकी दिन मैं बस यूं ही फारग बैठा रहता था। उस दिन भी यही हुआ। दोपहर से पहले ही सारा खाना खत्म हो गया। तो मैंने रेड़ी बंद की और सोचा कि थोड़ी देर अपने पुराने दोस्त के पास जा बैठता हूं। मेरा दोस्त पास की एक दुकान पर काम करता था। मैं वहां पहुंचा तो वो मुझे देखकर बोला अच्छा हुआ तू आ गया। तुझे एक बहुत अजीब बात बतानी है। मैंने पूछा क्या हुआ? तो उसने मोबाइल निकाला और कहा तेरा नाम आज हर तरफ चल रहा है। मैं हैरान हुआ। वो कहने लगा तेरी एक वीडियो वायरल हो गई है। मैं चौंक गया मेरी वीडियो वायरल मगर मैंने तो कोई अजीब हरकत नहीं की। उसने कहा यही तो बात है। देख यह वीडियो और जब उसने मुझे मोबाइल दिखाया तो मैं सन्न रह गया। वीडियो में वही जगह नजर आ रही थी जहां मैं रोज खड़ा होता था। मेरी रेहड़ी सामने का पार्क सब कुछ वैसा ही था। वक्त भी पहचान में आ रहा था क्योंकि बैकग्राउंड में दोपहर की अजान की आवाज आ रही थी। वही वक्त जब मेरी रेहड़ी पर वो आठों लड़कियां आई थी और मैं उन्हें प्लेट प्लेट भर के खाना दे रहा था। मगर वीडियो में सब कुछ देखकर मेरे कदमों के नीचे से जमीन निकल गई क्योंकि उस वीडियो में वो लड़कियां कहीं थी ही नहीं। वीडियो में सिर्फ मैं था। मैं रेहडी के पीछे खड़ा था और बार-बार प्लेट में खाना निकाल कर ऐसे आगे बढ़ा रहा था जैसे किसी को दे रहा हूं। कभी दाई तरफ, कभी बाई तरफ, कभी आगे बढ़कर ऐसे जैसे किसी के हाथ में प्लेट रख रहा हूं। मगर वहां कोई नहीं था। सिर्फ खाली हवा थी। जैसे मैं किसी को देख भी नहीं रहा और दे भी नहीं रहा। वीडियो पर एक कैप्शन भी लिखा हुआ था जिसे देखकर मेरा खून खौल उठा। बेचारा गरीब लड़का गुरबत के हाथों मजबूर होकर खाना बेचने की एक्टिंग कर रहा है। मैंने दोस्त की तरफ देखा तो वो मुझे गुस्से और हैरानी से घूर रहा था। उसने कहा गुलाम दीन यह क्या है? क्या तू पागल हो गया है? अगर तेरे पास ग्राहक नहीं आ रहे तो खाना बेचने की ऐसी एक्टिंग कौन करता है? मैंने फौरन कहा, "मैं पागल नहीं हूं और ना ही मैं कोई एक्टिंग कर रहा हूं।" मेरे पास वाकई ग्राहक आते हैं और मैं उन्हें खाना खिलाता हूं। यह वही वक्त है जब वह आठ लड़कियां मेरे पास आई थी और मैंने उन्हें खाना दिया था। मैंने कहा गौर से सुन पीछे अजान की आवाज आ रही है। यह दोपहर का वक्त है। मैं अच्छी तरह जानता हूं। उस वक्त वो लड़कियां मेरे पास मौजूद थी। दोस्त ने दोबारा मोबाइल देखा और कहा, तो फिर इस वीडियो में क्यों नहीं दिखाई दे रही? कौन थे तेरे ग्राहक? कहां गए? मैंने कहा, "आठ लड़कियां थी। सब बहुत खूबसूरत और साफसथरी वही जो रोज आती हैं। वह कहने लगा गुलाम्दीन यहां तो एक लड़की भी नजर नहीं आ रही। ना किसी का साया ना कोई आवाज ना कोई कदमों की चाप सिर्फ तू है और तेरा खाना। मैं सक्ते में खड़ा रह गया। मेरे पास कहने को कुछ ना था। लेकिन मैंने जिद करते हुए कहा कल तुम खुद मेरे साथ चलो और छुप कर देखो। वो जरूर आएंगी और तुम खुद देख लेना। मैं झूठ नहीं बोल रहा। उसने कहा, ठीक है मैं कल तेरे साथ चलूंगा और देखूंगा कि यह लड़कियां कौन है और कितनी खूबसूरत हैं जैसे तू कहता है। मैंने हामी में सर हिलाया क्योंकि हम दोनों इस नतीजे पर पहुंच चुके थे कि शायद किसी ने यह वीडियो एडिट कर दी है और लड़कियों को उसमें से गायब कर दिया है। लेकिन मेरे दिल के किसी कोने में एक अजीब सा खौफ भी जन्म ले चुका था जिसे मैं खुद भी समझ नहीं पा रहा था। अगला दिन आया मैं सुबह सवेरे ही जाग गया। मां ने हमेशा की तरह दाल और चावल तैयार किए। लेकिन इस बार वह भी खनिज थी क्योंकि कई दिनों से मैं अच्छा कमा रहा था। मैंने रेहड़ी तैयार की और दिल ही दिल में सोच रहा था कि आज मेरा दोस्त भी साथ होगा और फिर सब कुछ साफ हो जाएगा। हम दोनों सच साबित कर देंगे कि वो वीडियो झूठी थी। मैंने रेहड़ी संभाली और निकल पड़ा। मेरा दोस्त पहले से ही सड़क के कोने पर मेरा इंतजार कर रहा था। उसने कहा आज जो भी होगा मैं खुद देखूंगा और जब वो लड़कियां आएंगी तो मैं छुप जाऊंगा ताकि उन्हें कोई शक ना हो। मैंने कहा ठीक है तुम बस वही करना जो तय किया है। हम दोनों उस जगह पहुंचे जहां मैं रोज रेहड़ी लगाता था। धूप तेज थी मगर मेरे दिल में एक अजीब सा जोश था कि आज सब कुछ साबित हो जाएगा। दोपहर करीब आई और मेरा दिल तेजी से धड़कने लगा। वही वक्त था जब वो लड़कियां आया करती थी और जैसे ही मस्जिद से अजान की आवाज गूंजी मुझे दूर से वही पुरानी खिलखिलाहट सुनाई दी। मैंने नजरें उठाई तो देखा वही सात आठ लड़कियां आ रही हैं। रंग बिरंगे कपड़े पहने हुए खुशबुओं से महकती हुई जैसे हवा उनके साथ खेल रही हो। मैंने अपने दोस्त को इशारा किया कि देख वो आ गई मगर उसने कोई जवाब नहीं दिया। शायद उसने इशारा समझा नहीं। मैंने ज्यादा गौर नहीं किया क्योंकि मैं नहीं चाहता था कि उन लड़कियों को एहसास हो कि कोई और भी यहां छुपा हुआ है। मैं सीधा खड़ा हो गया और उनके इस्तकबाल के लिए तैयार हो गया। वह करीब आई और हमेशा की तरह एक ने आगे बढ़कर कहा, कैसे हो भाई? हम तो बिल्कुल ठीक हैं। जल्दी करो, हमें खाना दे दो। हमें बहुत भूख लगी है। मैंने हंसते हुए कहा, हां हां देता हूं। मैंने जल्दी-जल्दी प्लेटों में दाल और चावल भरने शुरू कर दिए और उन्हें पकड़ाने लगा। कोई एक प्लेट ले रही थी, कोई दो-दो उठा रही थी। मैंने पलट कर एक नजर अपने दोस्त की तरफ डाली। वह झुक कर किसी चीज में मशगूल था। फिर मैंने गौर से देखा तो पाया कि वह मेरा मोबाइल से वीडियो बना रहा था। यह देखकर मेरे दिल को तसल्ली हुई कि अच्छा है यह सब रिकॉर्ड हो रहा है। कल जब हम यह वीडियो दिखाएंगे तो सबको पता चल जाएगा कि पहली वीडियो झूठी थी। आज भी वह लड़कियां खूब खा रही थी। किसी ने तीन प्लेट खाई, किसी ने चार और कुछ ही देर में मेरे दोनों बड़े पटेल करीब-करीब खाली हो गए। बस दो प्लेट का खाना बचा था। वो भी मैंने तैयार करके दिया। तो वह हंसने लगी और एक ने कहा हमें तो अब तुम्हारे हाथ के खाने की आदत हो गई है। हमें तो लत लग गई है। अगर तुम्हारे दाल चावल ना खाएं तो सुकून ही नहीं आता। यह सुनकर मैं खुश हो गया। दिल में फक्र महसूस हुआ कि मेरा खाना इतना पसंद किया जा रहा है। वो हमेशा की तरह हंसती हुई मुझे ज्यादा पैसे देकर रुखसत हो गई। मैंने खुशी-खुशी उन्हें हाथ हिलाकर अलविदा कहा और रेहड़ी समेटने लगा। जब सब कुछ खत्म हो गया तो मैं अपने दोस्त के पास गया। वो साइड में खड़ा था। उसके चेहरे का रंग उड़ा हुआ था और वह कांप रहा था। मैंने कहा, क्या हुआ? तू क्यों इस तरह खड़ा है? वह घबराहट में बोला, गुलाम्दीन तू पागल हो गया है। तेरा मीटर घूम गया है। खुर्बत ने तुझे पागल कर दिया है। मैं हैरान रह गया। क्या मतलब? खुर्बत ने मुझे पागल कर दिया है। साफ-साफ बता, क्या हुआ? उसने थरथराते हाथों से मोबाइल आगे बढ़ाया और कहा, "यह देख, यह देख। मेरे दिल की धड़कन रुक सी गई। क्योंकि मुझे अंदाजा हो गया था कि इस वीडियो में कुछ ऐसा है जो मेरे लिए नाकाबिल यकीन होगा। स्क्रीन पर उन लड़कियों का कहीं नामो निशान तक ना था। स्क्रीन में सिर्फ मैं था और मेरी रेहड़ी थी और मेरे हाथ थे जो लगातार हवा में प्लेटें बढ़ा रहे थे। जैसे मैं किसी नजर ना आने वाली भीड़ में कुछ तकसीम कर रहा हूं। कभी मैं दाई तरफ हाथ बढ़ा रहा था। बाई तरफ कभी प्लेट अपने सामने रोक कर किसी को देने का इशारा करता था। मगर वहां कोई भी मौजूद ना था। मैंने स्क्रीन से नजरें उठाई तो दोस्त के चेहरे पर खौफ और गुस्सा दोनों सवार थे। उसने कांपती हुई आवाज में कहा, तूने मुझे पता नहीं क्या इशारा किया था। मैं समझ नहीं सका और फिर तू अचानक प्लेटें भरने लगा। तू ऐसे हाथ बढ़ाता रहा जैसे सामने कोई खड़ा हो। मैंने सोचा यह सब रिकॉर्ड कर लूं ताकि तुझे दिखा सकूं कि तू किससे बातें कर रहा था और किसे खाना खिला रहा था। तेरी आंखों के सामने कोई भी ना था। मेरी जुबान सूख गई। मैंने गहरी सांस ली और जेब से वह रकम निकाली जो अभी-अभी उन्होंने मुझे दी थी। मैंने नोट उसके हाथ पर रखे और कहा, "यह देख यह वही पैसे हैं जो उन्होंने दिए हैं।" दोस्त ने हंठ भी कर कहा, "यह तेरे अपने पैसे हैं। तू मुझे बेवकूफ बना रहा है। मुझे डरा रहा है। तू पागल हो गया है।" मैंने घबराकर पटेलों की तरफ इशारा किया। ढक्कन उठाकर दिखाया। देख यह सब उन्होंने खाया है। उसने सख्त लहजे में कहा, हो सकता है तू घर से ही खाली पतेले लाकर लाया हो। हो सकता है तू रोज यही ड्रामा करता हो। मैंने चीखने जैसी दबती हुई आवाज में कहा। मुझे कौन सी बीमारी लग गई है कि मैं दिन दहाड़े सड़क पर खाना खिलाने की एक्टिंग करूंगा। मैंने उन लड़कियों को अपनी आंखों से देखा है। उनकी हंसी सुनी है। उनके हाथों से प्लेटें ली है। दोस्त ने गर्दन हिलाकर कहा, कोई लड़कियां नहीं थी। अगर होती तो वीडियो में देखती। वह एक कदम पीछे हटा। उसकी आंखों में ऐसी दहशत थी जैसे मैं अचानक उस पर टूट पड़ूंगा। उसने मेरा कंधा झटक कर कहा, तेरी मां पर क्या गुजरेगी जब उसे मालूम होगा कि उसकी आखिरी उम्मीद उसका बेटा पागल हो गया है। यह काम छोड़ दे। कोई और काम कर ले। मजदूरी कर ले। यहां ना आया कर। फिर उसने नजरें इधर-उधर दौड़ाई। जैसे किसी से बच रहा हो। वो पलटा और बिना अलविदा कहे तेजी से दूर निकल गया। मैं वहीं खड़ा रह गया। धूप में लहरें सी उठती दिखाई दे रही थी। सड़क सुनसान थी। दूर कहीं कोई मोटरसाइकिल गुजरी और आवाज थोड़ी देर में गुम हो गई। पार्क के दरख्तों में एक कोआ बैठा काव कर रहा था। मेरी रेहड़ी के पहियों के साए लंबे होकर सड़क पर फैल गए थे और मुझे लगा जैसे उन सायों के अंदर कोई और साए सांस ले रहे हो। मेरे बदन पर कंप्पी दौड़ गई। मैंने तेजी से पतेले समेटे। ढक्कन कसकर रखे कपड़ा झाड़ा और रेहड़ी खींचता हुआ घर की तरफ चल पड़ा। गलियों में गर्द उड़ रही थी। दुकानें आहिस्ता-आहिस्ता बंद हो रही थी। मेरे कदमों की छाप मुझे खुद अजनबी लग रही थी। घर पहुंचा तो मां ने दरवाजा खोला। उसने मेरी शक्ल देखी तो फौरन पूछा, "पेशान क्यों है?" मैंने चौंक कर नजरें चुरा ली और कहा, कुछ नहीं। मैंने आज की कमाई उसके हाथ पर रख दी। मां ने हथेली की रहट से पसीना पोंछा। पैसे देखे और उन्हें दुपट्टे के कोने में बांधने लगी। फिर एकदम रुक गई। वह पलट कर मुझे देखने लगी। उसकी आंखों में तशवीश का साया था। मां ने आहिस्ता से कहा, बेटा एक बहुत अजीब बात हो रही है। कई दिन से सोच रही हूं कि तुझे बताऊं मगर हर बार भूल जाती हूं या डर लगने लगता है। मैंने कहा क्या बात है? मां ने किचन की तरफ इशारा किया और बोली जिस कनस्तर से मैं दाल और चावल निकाल कर बनाती हूं ना उसमें दाल खत्म नहीं होती और चावल भी नहीं खत्म होते। मैंने गहरा सांस लेकर कहा खत्म नहीं होते। मां बोली कल भी मैंने बीच में डुई डाली और चावल निकाले तो चावल आते चले गए। हमने बहुत पहले सिर्फ 2-2 किलो ही खरीदा था। इतने दिनों में तो खत्म हो जाना चाहिए था। मैं कुछ समझे बगैर किचन में चला गया। किचन में एक अजीब सी ठंडक बसी हुई थी। जैसे दीवारों ने किसी और मौसम को अंदर कैद कर रखा हो। मां ने चूल्हा एक तरफ किया। अलमारी खोली और दो बड़े बर्तन निकाले। एक में चावल थे और एक में दाल। मैंने उन बर्तनों की मोटी-मोटी दीवारें छुईं। लकड़ी की तार के निशान हथेली में महसूस हुए। उन बर्तनों की गुंजाइश नजर से ही समझ आ रही थी। 2 किलो से थोड़ा ज्यादा बस। मां ने फर्श पर दो बड़ी परातें रख दी। चांदी सी चमक लिए परातें जैसे दरिया का किनारा हो। मां ने बर्तन के अंदर डुई डाली। चावल परात में बहने लगे। दाने सूखे थे और खुशबूदार। आवाज हल्की-हल्की बरसती बारिश जैसी थी। कुछ ही देर में परात का पिदा ढक गया। तो मां ने हाथ रोकने के बजाय फिर डूई डाली। चावल और आए फिर और आए। मैंने घबरा कर कहा बस करें। मगर मां के चेहरे पर उलझन और हैरत दोनों एक साथ थी। चावल परात की आधी ऊंचाई तक भर चुके थे। मां ने बर्तन की तह को चम्मच से टटोला तो नीचे फिर दाने मौजूद थे। उसने फिर निकाला। परात अब मुंह तक भर गई थी। मैंने हाथ लगाकर वजन महसूस किया। कम से कम 5 से 7 किलो जरूर होंगे। फिर मां ने दाल वाले बर्तन की बारी दी। उसने डुई डाली। पीली दाल परात में फैलती गई। खुशबू ने किचन के अंदर एक गर्म लहर दौड़ा दी। मैं फर्श पर बैठ गया और परात के किनारे थाम लिया। दाल लगातार उतरती रही। मां ने बर्तन की तह फिर खुरची। अंदर फिर दाल मौजूद थी। हम दोनों की सांसे सुस्त पड़ गई। दीवार पर टंगी घड़ी की सुइयों की टिकटिक अचानक बहुत ज्यादा सुनाई देने लगी। मैंने आहिस्ता से कहा, "यह मुमकिन नहीं। इतने छोटे बर्तन से इतनी मिकदार कैसे निकल सकती है?" मां ने कमजोर आवाज में कहा, मैं तो खरोच समझ नहीं पा रही। जब भी पकाती हूं, यह कम नहीं होते। जैसे कोई उन्हें भर देता हो। जैसे कोई अंदर से दामन फैलाकर दाने वापस डाल देता हो। मैंने कान लगाकर घर की खामोशी सुनी। गली से गुजरने वाली रेहड़ी की चरचाहट आकर मिट गई। छत के ऊपर से परिंदे उड़े तो पर्दा हिला। मुझे उस दरख्त की बात याद आ गई जिसके बारे में लोग कहते थे कि उस पर भूत बसेरा करते हैं। मुझे वह लड़कियां जो वीडियो में नजर नहीं आती थी मगर मेरी आंखों के सामने खाती थी। मेरी पीठ में एक ठंडी लहर दौड़ गई। मैंने जल्दी से दाल और चावल वापस बर्तनों में डालने शुरू किए। एक-एक खुरचन भी झाया ना होने दी। अजीब बात यह हुई कि जितनी परातों में भरी हुई थी, वह सब उन्हीं दो छोटे बर्तनों में समा गई। ना ऊपर तक लबरेज हुए, ना बाहर गिरे। जैसे बर्तनों के अंदर कोई ऐसी जगह हो जो नजर नहीं आती मगर सब कुछ अपने अंदर जगह बना लेती है। मैंने ढक्कन लगा दिए। मैंने कंडी चढ़ा दी। मैंने किचन की बत्ती बंद कर दी। मैंने मां का हाथ थामा। उसके हाथ में हल्की सी कम कंपाहट थी। मैंने आहिस्ता मगर सख्त लहजे में कहा। आप यह बात किसी को ना बताना। ना हमसाए को ना जानने वाले को ना उस दोस्त को। जब तक हमें समझ ना आ जाए कि यह सब क्या है, हम खामोश रहेंगे। मां ने खौफा आंखों से इशारे में हामी भरी। मैंने दरवाजे की चटकनी फिर टटोली। खिड़की की सलाखों से बाहर झांका। गली सुनसान थी। आसमान पर सूरज ढल रहा था और रोशनी दीवारों पर रेंगती हुई किचन की दहलीज तक आकर रुक गई थी। मैंने दिल में फिर दोहराया। आप यह बात किसी को ना बताना। यह सुनकर मां ने कहा, ठीक है। मैं किसी को कुछ नहीं बताऊंगी। लेकिन बेटा यह बात मेरे दिल को अजीब सी लग रही है। मैंने कहा मां बस खामोश रहो और किसी को मत बताओ। अगले दिन मैं फिर उसी जगह गया क्योंकि मुझे यकीन था कि वो लड़कियां आएंगी और वो आई भी वो बिल्कुल उसी तरह आई जैसे रोज आती थी। मैंने उन्हें सलाम किया। उन्होंने भी खुशी-खुशी सलाम का जवाब दिया और कहा जल्दी करो भाई। आना दे दो तुम्हें भूख लगी है। मैंने फिर से प्लेटें भर-भर कर उनके सामने रखी। वो खाने लगी। और मैं सोच रहा था कि आज मेरा दोस्त नहीं है। आज कोई मुझे पागल नहीं कह सकता कोई मुझे गलत साबित नहीं करेगा। मैंने सोचा क्यों ना आज मैं खुद अपनी वीडियो बना लूं ताकि सबको दिखा सकूं कि यह लड़कियां हकीकत में है। मैंने मोबाइल निकाला रिकॉर्डिंग शुरू की। मगर जब मैंने मोबाइल की स्क्रीन पर देखा तो वहां भी कोई लड़की नहीं थी। सिर्फ मैं था और मैं खाली प्लेटों में खाना डालकर किसी को आगे बढ़ा रहा था। मेरे हाथ कांपने लगे। पसीना बहने लगा। दिल जोर-जोर से धड़कने लगा। मैंने खाने की तरफ देखा। वो लड़कियां प्लेटों में खा रही थी। हंस रही थी। मगर मोबाइल की स्क्रीन पर कोई नहीं था। मैंने जल्दी से मोबाइल बंद किया और दिल में कहा, शायद मोबाइल का कोई मसला है। वो लड़कियां खा के उठी और हमेशा की तरह मुझे पैसे देकर चली गई। मैंने पैसे जेब में डाले और उनके जाने के बाद जब जेब से निकाल कर देखा तो वह पैसे मिट्टी में बदल चुके थे। मेरी सांस रुक गई। मैंने इधर-उधर देखा सड़क बिल्कुल सुनसान थी। दूर-दूर तक कोई बंदा नजर नहीं आ रहा था। मैंने जल्दी से पतेले उठाए और घर आ गया। मां ने पूछा इतनी जल्दी आ गए? मैंने कहा बस काम खत्म हो गया और सीधा अपने कमरे में चला गया। रात को नींद नहीं आ रही थी। मां आकर बोली बेटा आज फिर दाल और चावल के बर्तन भरे हुए हैं। तुमने फिर ज्यादा सामान तो नहीं खरीदा। मैंने कहा नहीं मां मैंने कुछ नहीं खरीदा। मां बोली तो फिर यह कैसे हो रहा है बेटा? कहीं कोई गड़बड़ तो नहीं? मैंने कहा मां आप खामोश रहो। यह बात किसी को मत बताना। उसी रात मैंने ख्वाब देखा कि वह आठों लड़कियां मेरे घर में बैठी हैं और मेरे किचन में दाल और चावल के बर्तनों से खा रही हैं और हंस रही हैं। मैंने ख्वाब में चीखना चाहा मगर आवाज नहीं निकली। जब मेरी आंख खुली तो किचन से हंसने की आवाजें आ रही थी। मगर मेरे अंदर इतनी हिम्मत नहीं थी कि उस तरफ जाकर देखता। मैंने खुद को दोबारा सोने पर मजबूर किया। सोचता रहा कि कैसा अजीब ख्वाब था और दिल ही दिल में अपने आप को यकीन दिलाने लगा। यह सब बस एक वहम है। शायद दिन भर की थकन और जहनी दबाव ने मेरे दिमागों को कमजोर कर दिया है और इसीलिए मैं ऐसे ख्वाब देखने लगा हूं। लेकिन जितनी बार भी अपने आप को समझाने की कोशिश करता उतनी ही बार उस रात का मंजर आंखों के सामने घूम जाता। जब वो सब मेरे सामने खड़ी थी। उनके कदमों की हल्की सी छाप तक याद थी मुझे। और उनकी आंखों में जो रोशनी थी वह आम इंसानों जैसी नहीं थी बल्कि जैसे अंधेरे में जुगनू चमक रहे हो। मेरा दिल जोर-जोर से धड़क रहा था और सांसे तेज हो रही थी लेकिन मैंने खुद को जबरदस्ती सोने पर मजबूर किया। शायद यह सोचकर कि अगर जागता रहा तो पागल हो जाऊंगा। दोबारा आंख लगी तो मुझे फिर से एक ख्वाब आने लगा। इस बार ख्वाब भी ऐसा था कि मेरी रूह कांप उठी। मैंने देखा कि मैं अपने कमरे में चारपाई पर सीधा लेटा हुआ हूं और कमरे की दीवारें आहिस्ता-आहिस्ता स्याह होने लगती हैं जैसे धुआं अंदर भर रहा हो और अचानक वही आठों लड़कियां मेरे चारों तरफ खड़ी हो जाती हैं। उनके कपड़े इस बार अलग थे। काले रंग के लंबे लिबास जिन पर हल्की सी नीली चमक थी। मैंने दिल ही दिल में कहा यह भी ख्वाब होगा और चीखने की कोशिश की। मगर आवाज गले में अटक गई। फिर हिम्मत करके जोर से चिल्लाया कि हां तो आवाज निकली और मैं उठकर बैठ गया। मगर वह सब फिर भी मेरे सामने खड़ी थी। इस बार वो पहले से ज्यादा करीब थी। मैंने अपने गाल पर जोर से थप्पड़ मारा। फिर अपने हाथ को जोर से चुटकी भरी। यहां तक कि दर्द से आंखों में आंसू आ गए। मगर ख्वाब टूटा नहीं। यह हकीकत थी। मैं बुरी तरह कांपने लगा। मेरा बदन पसीने में भीग गया और दिल चाहा कि भाग जाऊं। मगर कदम हिलने से इंकार कर गए। मैंने बड़ी मुश्किल से हकलाती हुई आवाज में कहा, कहा कौन हो तुम सब? मेरी आवाज इतनी कांप रही थी जैसे कोई मरीज आखिरी सांसे ले रहा हो। मेरे हाथ कांप रहे थे और आंखों के सामने अंधेरा छा रहा था। उसी वक्त वो एक दूसरे की तरफ देखकर हंसने लगी। मगर वो हंसी आम इंसानों जैसी ना थी। जैसे किसी गहरे कुएं से कोई आवाज आ रही हो। एक लड़की आगे बढ़ी और बोली, डरो मत। हम तुम्हारा नुकसान नहीं करेंगे। हम तो तुम्हारी मदद करने के लिए आए थे। हम सब इंसान थे कभी। मगर अब हम सब जिन जाद यहां और यह हमारी टोली है। हम एक दूसरे की दोस्त हैं और हमने तुम्हें मुंतखब किया है। क्योंकि उस दिन जब तुम उस दरख्त के नीचे खड़े होकर दिल से मदद मांग रहे थे। वो दरख्त हमारा घर है। तुम्हें मालूम नहीं। हम सदियों से वहीं रहते हैं। हम किसी इंसान के मामले में दखल नहीं देते। ना किसी के लिए दुआ या बद्दुआ करते हैं। मगर जब तुमने दिल से पुकारा तो तुम्हारे अंदर कुछ ऐसा अच्छा था जिसने हमें मजबूर कर दिया कि तुम्हारी मदद करें। मैं चुपचाप उनकी बातें सुनता रहा। दिल चाह रहा था कि चीख कर भाग जाऊं। मगर जुबान जैसे पत्थर हो गई थी। वह बारी-बारी से बोल रही थी। एक कहने लगी तुम्हें शुक्र अदा करना चाहिए कि हमने तुम्हें रुसवाई से बचाया। दूसरी बोली, मगर अब तुम शक में पड़ गए हो। तुम बार-बार वीडियो बनाते हो। लोगों को बताने का सोचते हो। अगर तुमने ऐसा किया तो हम तुम्हारी मदद नहीं कर सकेंगे बल्कि तुम्हें नुकसान होगा। तीसरी ने कहा हम अपनी गलती मानते हैं। हमें ज्यादा होशियार होना चाहिए था। मगर अब हम सब कुछ संभाल लेंगे। किसी को तुम्हारे बारे में कुछ याद नहीं रहेगा। बस्तानता था हम उसकी याददाश्त मिटा देंगे और खुद को सबकी नजरों से निकाल देंगे। एक और बोली, "हें तुम्हारे पास आकर खाना खाने की आदत हो गई है। तुम्हारे हाथ के दाल चावल अब हमारी कमजोरी बन चुके हैं। हमें बस यही चाहिए कि तुम हमें खाना खिलाते रहो। और बदले में तुम्हारे घर में दाल चावल कभी खत्म नहीं होंगे। हमने तुम्हें इतनी बड़ी मदद दी है और तुम डरते हो। क्या तुम हमें खाना खिलाया करोगे? ना। मैंने डरते-डरते सिर हिलाया। जैसे बस यही एक काम रह गया हो जो मैं कर सकता हूं। मैंने आंखें बंद कर ली। शायद इस उम्मीद पर कि जब दोबारा खोलूंगा तो यह सब खत्म हो जाएगा। मैं अकेला पसीने में भीगा चारपाई पर बैठा था। मैं चारपाई पर भीगा हुआ कांपता हुआ उन सारी बातों को याद कर रहा था जो उन्होंने की थी। मेरा दिल जोर-जोर से धड़क रहा था। ऐसा लग रहा था जैसे अभी पसलियां तोड़ देगा। मेरी सांसे इतनी तेज हो रही थी जैसे कोई दौड़ने के बाद सांस ले रहा हो। मैंने अपने कमरे में इधर-उधर नजरें दौड़ाई। हर कोना अंधेरा सा लग रहा था। हालांकि कमरे में बत्ती जल रही थी। मगर फिर भी लगता था हर कोना स्याह हो और वहां कोई छुपा हो। मैंने फिर से अपने बिस्तर के पास देखा जहां वो आठों लड़कियां खड़ी थी और यह सोचकर कांप गया कि वह अभी भी यहीं होंगी या नहीं। मेरा दिमाग बार-बार उनके अल्फाज़ दोहरा रहा था। हम जिनजादियां हैं हमने तुम्हारी मदद की है। तुमने हमें क्यों शक में डाला? क्यों वीडियो बनाई? क्यों दूसरों को बताने लगे? मैंने यह सोचते हुए अपने सर को दोनों हाथों से पकड़ लिया। सर झुका कर बैठ गया। जैसे यह सब कुछ अब मुझसे बर्दाश्त नहीं हो रहा हो। मैंने अपने आप को यकीन दिलाने की कोशिश की कि अब सब ठीक हो जाएगा। वह चली गई हैं। अब मुझे परेशान नहीं करेंगी। मगर फिर उनकी वह बात याद आ गई। हमने उन सबकी याददाश्त मिटा दी है और हम तुम्हारे पास आते रहेंगे। खाना खिलाते रहना। मेरा दिल चाहा कि चीख कर सब कुछ मां को बता दूं। मगर फिर यह सोच कर रुक गया कि मां को बताने का क्या फायदा होगा। वह पहले ही इतनी बूढ़ी और कमजोर है। अगर उसे पता चला कि मैं ऐसे किसी काम में उलझा हूं तो वह सदमा बर्दाश्त नहीं कर पाएगी। और दूसरा यह भी कि अगर मैंने किसी को बताया तो वह शायद मुझे दिमागी मरीज समझेंगे या फिर वह सब जिन जातियां सच में नाराज हो जाएंगी और वह सब कुछ खत्म हो जाएगा जो वो कर रही हैं। मैंने यह सोचकर फैसला कर लिया किसी को कुछ नहीं बताना और सिर्फ खामोश रहना है। मैंने मां के पास जाकर झूठ बोला कि वो मैं ही दाल और चावल लाया था। मैंने ही उन बर्तनों में डाल दिया था। लेकिन याद नहीं रहा। मां ने मेरी बात मान ली और कहा ठीक है बेटा। वैसे भी अब मैं इतनी बूढ़ी हो गई हूं कि बहुत सी बातें मेरी समझ से बाहर हो जाती हैं। मैंने उन्हें मुतमिन कर दिया और कमरे में आकर लेट गया। मगर नींद कहां आने वाली थी। मेरे जहन में हर तरफ वो आठ चेहरे घूम रहे थे। उनकी आंखों का सुरख रंग और उनके चेहरों पर वो पुरसकून मगर अजीब सी मुस्कुराहट लिए हुए तासुरात मैं आज भी महसूस कर रहा था। जैसे वह सामने बैठी हूं और मुझे घूर रही हो। मैंने फैसला कर लिया था कि अब कोई सवाल नहीं करूंगा। ना कोई वीडियो बनाऊंगा ना किसी को बताऊंगा। मैं बस यह सब कुछ सहकर चुप रहूंगा। अगले दिन जब मैं उठा तो सब कुछ पहले जैसा लग रहा था। ना कोई गैर मामूली बात ना कोई अजीब वाक्या। लेकिन अंदर से मैं बदल चुका था। अब मैंने बाहर काम पर जाना शुरू कर दिया था और वापस आकर मां को पैसे देता था। और रात को जब सब सो जाते तो मैं चुपके से उन बर्तनों में देख लेता था। कभी दाल, कभी चावल, कभी आटे का डिब्बा और हर बार वह भरा होता था। जैसे किसी ने उसे दोबारा भर दिया हो। मैं यह सब देखकर कांप जाता मगर जबान पर कुछ ना लाता ना ही किसी को कुछ बताता। और धीरे-धीरे मेरे अंदर एक खौफ बैठ गया था। एक ऐसा डर जो शायद सारी जिंदगी मेरे साथ रहेगा। क्योंकि अब मेरा यह यकीन पक्का हो चुका था कि वो आठ लड़कियां जिनजादियां हैं वो यहां आती हैं और मुझे और मेरी मां को खाना देकर जिंदा रखती हैं और बदले में बस खाना मांगती हैं। मैंने ऐसे बहुत से कस्से कहानियां सुनी थी अपनी दादी और नानी से कि जिनमें वो यही सुनाया करती थी कि हवाई चीजें आती हैं और खाना मांगती हैं। वो रोज मेरे पास आती थी। शुरू में जब मैंने उन्हें देखा और उनकी हकीकत के बारे में जाना तो दिल में अजीब सा खौफ बैठ गया था। जब वह मेरे पास आती तो मैं डरा डरा खड़ा रहता। मेरा दिल तेज धड़कता और टांगे कांपती रहती। ऐसा लगता जैसे जमीन मेरे कदमों के नीचे से खिसक रही हो। उनके सामने खड़े रहना मेरे लिए बहुत मुश्किल होता था। मगर वक्त गुजरता गया और रफ्तार रफ्ता मुझे भी उनकी आदत हो गई। अब उनके आने पर पहले जैसा डर महसूस नहीं होता था। बस एक हल्की सी बेचैनी जरूर रहती थी। मगर इतनी नहीं कि मैं कुछ कर ना सकूं। उन्होंने एक दिन मुझसे एक बात कही जो मेरे दिल को बहुत अच्छी लगी। उन्होंने कहा अल्लाह ने तुम्हारी मदद के लिए हमें जरिया बनाया है। तुम परेशान मत हुआ करो। जब उन्होंने यह बात कही तो मेरे दिल पर जैसे बोझ कम हो गया। मैंने सोचा वाकई अगर अल्लाह ने मेरी मदद के लिए उन्हें भेजा है तो फिर मुझे क्यों डरना चाहिए। उसके बाद से मैंने उनके आने को बुरा मानना छोड़ दिया और उनके लिए खाना तैयार रखने लगा। जैसे ही रात गहराती वह आती खाना खाती और खामोशी से वापस चली जाती। आहिस्ता-आहिस्ता यह मामूल मेरी जिंदगी का हिस्सा बन गया। दिन में मैं अपने दूसरे कामों में मशरूफ रहता। ग्राहक भी आते और मेरा काम भी अच्छी तरह चलने लगा। मुझे लगता था कि शायद उनकी वजह से मेरे काम में बरकत हुई है क्योंकि पहले ऐसा नहीं था कि मेरा काम इतना अच्छा चले जितना अब चल रहा था। इसके बावजूद मैंने कभी किसी को इस बात का जिक्र नहीं किया। ना ही अपनी मां को, ना ही किसी और को। क्योंकि मैं जानता था कि अगर मैंने किसी को बताया तो शायद वह मुझसे नाराज हो जाए और मदद करना छोड़ दें। यह बात मैं आज भी मानता हूं कि मैंने अपनी आंखों से बहुत कुछ देखा है जो आम इंसान नहीं देख सकता। और यह भी हकीकत है कि जिन जादियां जिन्हें मैं खाना खिलाया करता था, वह मेरे लिए किसी आजमाइश से कम नहीं थी। मगर वही मेरी जिंदगी की सबसे बड़ी मदद भी बन गई। और मैंने उनसे एक सब कर सीखा कि कभी-कभी हमें डर के पीछे छुपी हुई हकीकत को भी समझना चाहिए क्योंकि हर डर नुकसानदेह नहीं होता। कुछ डर हमें संभालने के लिए भी आता है। मेरा वह दोस्त भी मुझे उसके बाद कई दफा मिला। कई दफा हमारी बातचीत हुई मगर उसने उस बात का कभी जिक्र नहीं किया। मालूम होता था कि उसके दिमाग से यह ख्याल मिट चुका था। वरना वह जरूर बात करता। जब किसी के साथ ऐसा कुछ होता है तो उसे तो ऐसी बातों पर पूरा यकीन होता है। मगर दूसरों को यकीन नहीं होता। बहरहाल हम तो सिर्फ अपनी कहानी सुना सकते हैं। बाकी कोई सच है या झूठ यह फैसला आप लोगों ने करना है।