अदिति का शरीर शिथिल पड़ने लगा है
चेताक्क्षी जल्दी से उस मूर्ति के पास जाकर देखकर हैरान रह जाती है.....
" नहीं ऐसा नहीं होना चाहिए...?..."
अब आगे..........
चेताक्क्षी जल्दी से उस मूर्ति के पास आकर बैठती हुई कहती हैं....." बाबा , आपको हमारे साथ मिलकर उस गामाक्ष की क्रिया को रोकना होगा...."
अमोघनाथ जी हैरानी भरी आवाज में पूछते हैं...." क्या हुआ चेताक्क्षी ....?... इतना घबरा क्यूं गई....?..."
" बाबा घबराऊ नहीं क्या करूं , , वो गामाक्ष आज ही देहविहिन क्रिया को करने की कोशिश कर रहा है...."
उसकी ये बात सुनकर अमोघनाथ जी काफी शाक्ड हो जातें हैं....." क्या... लेकिन वो क्रिया तो कल शाम को शुरू हो सकती है न.....?..."
" वहीं तो बाबा , , जब हमने अदिति को सुरक्षा कवच से बांध दिया था तब उसकी सारी कोशिशें विफल हो रही होंगी जिससे वो तिलमिला गया होगा और ये क्रिया आज ही करने की सोच रहा है....आप जल्दी से अपनी शक्तियों से इसे वापस बांधने में हमारी मदद कीजिए..."
अमोघनाथ जी सहमति जताते हुए जल्दी से उस घेरे में बैठ जाते हैं....
उधर विवेक बेहोश हो चुका था जिसे देखकर वो सुंदर सी लड़की हंसते हुए उसके पास जाकर उसके माथे पर एक फूल को फेरने लगती है , जिससे विवेक थोड़ी देर में ही होश में आ जाता है.... जिसे देखकर वो लड़की मुस्कुराते हुए कहती हैं....." अब तुम सिर्फ मेरे हो , , बहुत समय बाद कोई मनुष्य मुझे मिला है , चलो मेरे साथ मेरे महल में , वहां तुम्हें कोई परेशानी नहीं होगी....." उसके कहने पर विवेक किसी कठपुतली की तरह उसके साथ जाने के लिए तैयार हो जाता है , वो लड़की उसे अपने साथ महल ले जाती हैं....
इधर चेताक्क्षी अमोघनाथ जी के मंत्रों को उच्चारित कर रही थी , , जिससे उस मूर्ति की रोशनी दोबारा बढ़ती है लेकिन फिर कुछ ही पलों में घट जाती है , , लेकिन चेताक्क्षी परेशान सी अपनी तरफ से पूरी कोशिश कर रही थी , ,
दूसरी तरफ गामाक्ष उस भयानक मूर्ति के सामने तंत्र पूजा कर रहा था , जिसकी वजह उस उसमें से निकलने वाली एक लाल रंग की रोशनी सीधा अदिति के दिल पर जा रही थी , जिसकी वजह से वो बैचेन सी तड़प रही थी , ,
" प्लीज़ , छोड़ दो मुझे, , आह , , क्यूं ऐसा कर रहे हो....?..आह छोड़ो मुझे...."
गामाक्ष उसकी तड़प देखकर जोर से हंसते हुए कहता है...." ऐसे ही तड़पोगी , , तेरी ये चीखें मुझे बहुत सुकून दे रही है , चीखों और तेज चीखों....उस अमोघनाथ को में कभी सफल नहीं होने दूंगा..."
एक बार फिर गामाक्ष एक भयानक हंसी से हंसने लगता है जिससे उसके किले का मंजर और भी डरावना हो चुका था.....
इधर अदिति बैचेनी से तड़प रही थी तो उधर विवेक अपने होशोहवास खो चुका था और वो उस लड़की के पीछे पीछे उसके महल में पहुंच चुका था जहां और लड़कियां उसका इंतजार कर रही थी......
उनमें से एक ने आकर कहा....." सुहानी आज इतने वर्षों के बाद इस युवक को कहां से ले आई...?..."
सुहानी विवेक को देखकर शातिराना अंदाज में मुस्कुराते हुए कहती हैं...." मंदिनि , , आज बहुत वर्षों के बाद ये युवक नदी किनारे पानी पीने के लिए आया था जिसे मैंने वशीकरण करके इसे यहां महल में ले आई हूं , , ..."
उसके बाद सुहानी उसे एक बड़े ही आलीशान कमरे में ले जाती है , जहां पूरा कमरा गुलाबो की खुशबू से महक रहा था , , जिसे देखकर कोई भी व्यक्ति अपना होशोहवास खो सकता था , लेकिन विवेक अपनी यादाश्त को भूलकर केवल सुहानी के साथ ही उस कमरे में पहुंच चुका था , ,
सुहानी उसे पलंग पर बैठाकर , जल्दी से हाथों में फलों की टोकरी लेकर आ चुकी थी , जिसे वो विवेक को देती हुई मुस्कुराने लगी थी.....
इधर चेताक्क्षी अपने मंत्रों को रोकते हुए , एक शातिर हंसी हंसते हुए कहती हैं...." बाबा , इस गामाक्ष को अब केवल दिव्य शक्तियों से ही रोका जा सकता है , अबतक उसने मुझे कमजोर समझा था , अब हम उसे बताएंगे ये चेताक्क्षी क्या कर सकती हैं , , आप केवल हमारे साथ आदिराज काका की अंतिम क्रिया वाली जगह पर चले , ...."
अमोघनाथ जी सवालिया नज़रों से उसे देखते हुए कहते हैं....." वहां क्या होगा चेताक्क्षी....?..."
चेताक्क्षी उन्हें समझाती है....." बाबा , आदिराज काका एक दिव्य महात्मा थे , उनकी सात्विक शक्तियां केवल उनके शरीर तक ही सीमित नहीं थी , बल्कि उन्होंने तो उस जगह को भी पवित्र किया है जिस जगह उनकी अंतिम क्रिया हुई है , बस अब वही हमारे काम आएगी ......"
अमोघनाथ जी चेताक्क्षी की बात पर सहमति जताते हुए उसके साथ उस जगह पर चले जाते हैं जहां आदिराज की अंतिम क्रिया की गई थी.....चेताक्क्षी वहां पहुंचकर हाथ जोड़कर , जल्दी से एक लाल कपड़ा बिछाकर उसमें एक मुठ्ठी मिट्टी उठाकर डालकर बांध लेती है , , उसके बाद दोनों वहां से वापस मंदिर के तहखाने वाले कमरे में पहुंचते है.....
जहां देविका जी घबराई हुई सी बैठी हुई थी .... जिसे देखकर चेताक्क्षी जल्दी से उनके पास जाकर पूछती है...." काकी क्या हुआ...?...आप इतनी घबराई हुई क्यूं है...?..."
देविका जी आदित्य को दिखाते हुए कहती हैं , जोकि उसी घेरे में बेहोश हो चुका था..." चेताक्क्षी , अचानक से एक आदित्य को पता नहीं क्या हुआ और ये बेहोश हो गया , बहुत कोशिश की उठाने की लेकिन ये हिल भी नहीं रहा....."
चेताक्क्षी आदित्य की हालत देखकर घबरा जाती है और जल्दी से अभिमंत्रित भभूत उसके माथे पर लगाती है , जिससे आदित्य के शरीर में हलचल होने लगती है ,......
" क्या हुआ था आदित्य...?..."
" पता नहीं चेताक्क्षी ....?... अदिति के इस मूर्ति में से अजीब सी हलचल होने लगी थी जिसे देखकर मैंने उसे पकड़ा तो उसके बाद क्या हुआ मुझे पता नहीं चला और मैं बेहोश हो गया..."
चेताक्क्षी के चेहरे पर कई सारी परेशानियां एक साथ नजर आने लगी थी ......
दूसरी तरफ गामाक्ष अपनी तंत्र क्रिया को कर रहा था जिससे अदिति का शरीर शिथिल पड़ने लगा था और वो बस दर्द से कराह रही थी लेकिन उस विरान से किले में उसकी आवाज दब चुकी थी...
" ... विवेक , मुझे बचाओ...."आखिर में इतना कहकर अदिति की आंखें बंद हो चुकी थी....
...............to be continued...............