Renaissance of Indianness (Journey from Culture to Modernity) - 5 in Hindi Spiritual Stories by NR Omprakash Saini books and stories PDF | भारतीयता का पुनर्जागरण (संस्कारों से आधुनिकता तक की यात्रा) - 5

Featured Books
Categories
Share

भारतीयता का पुनर्जागरण (संस्कारों से आधुनिकता तक की यात्रा) - 5

अध्याय 5

विलुप्ति की कहानियाँ—वास्तविकता और प्रेरणा


भारत की संस्कृति एक महासागर है, जिसकी गहराई असीम और जिसकी धारा अनवरत है। किंतु इस महासागर से कई ऐसी नदियाँ हैं जो धीरे-धीरे सूख गईं, कई ऐसी परंपराएँ हैं जो विलुप्त हो गईं। जब हम उन विलुप्त होती परंपराओं की कहानियों को देखते हैं तो कहीं पीड़ा मिलती है, कहीं चेतावनी और कहीं प्रेरणा।

कभी गाँवों की चौपालें भारतीय समाज का हृदय हुआ करती थीं। वहीं निर्णय होते थे, वहीं गीत गाए जाते थे, वहीं बुज़ुर्ग अपने अनुभव साझा करते थे और वहीं बच्चे संस्कार सीखते थे। लेकिन अब वही चौपालें सन्नाटे में बदल गई हैं। मोबाइल और टेलीविज़न ने वह स्थान ले लिया है, जो कभी सामूहिक जीवन का केंद्र था। यह केवल चौपाल का विलुप्त होना नहीं है, यह हमारी सामूहिक संस्कृति का खो जाना है।

कभी भारतीय परिवारों में दादी-नानी की कहानियाँ बच्चों को सुनाई जाती थीं। वे कहानियाँ केवल मनोरंजन नहीं होती थीं, बल्कि उनमें धर्म, नीति और जीवन के सत्य छिपे होते थे। आज बच्चों के पास वे कहानियाँ नहीं हैं, उनके पास केवल मोबाइल की स्क्रीन है। बाल मन, जो कभी पंचतंत्र और हितोपदेश से संस्कारित होता था, अब कार्टून और वीडियो गेम से प्रभावित हो रहा है। यह बदलाव केवल आदत का नहीं, बल्कि भावी पीढ़ी के संस्कारों का प्रश्न है।

भारतीय लोककला भी धीरे-धीरे विलुप्ति की ओर बढ़ रही है। कठपुतली का नृत्य, लोकगीत, आल्हा, भवाई और नौटंकी जैसी विधाएँ कभी गाँव-गाँव गूंजती थीं। आज उनके स्थान पर पाश्चात्य नृत्य और पॉप-संगीत ने जगह ले ली है। गाँव का कलाकार, जो कभी सम्मानित था, आज हाशिये पर है। किंतु जब-जब यह कला जीवित की जाती है, तब-तब यह हमें स्मरण दिलाती है कि यह हमारी जड़ें हैं और इन्हें बचाना हमारा कर्तव्य है।

भारतीय कृषि परंपराएँ भी इसी क्रम में क्षीण हो गई हैं। पहले हर ऋतु का उत्सव होता था—बैसाखी, पोंगल, मकर संक्रांति, होली। ये केवल त्यौहार नहीं, बल्कि किसान के श्रम और प्रकृति के सम्मान का प्रतीक थे। आज जब कृषि मशीनों और रासायनिक खेती के बोझ तले दब गई है, तब इन उत्सवों की आत्मा भी कमजोर हो गई है। परंपराओं का विलुप्त होना केवल संस्कृति का क्षरण नहीं, बल्कि जीवन और प्रकृति से दूरी है।

इतिहास हमें यह भी दिखाता है कि अनेक राजवंश और नगर भी अपनी संस्कृति के साथ विलुप्त हो गए। मौर्य और गुप्त साम्राज्य, जिनकी चमक से संसार रोशन हुआ, आज केवल इतिहास की पुस्तकों में हैं। नालंदा विश्वविद्यालय, जहाँ विश्वभर से विद्यार्थी शिक्षा लेने आते थे, अब खंडहर के रूप में खड़ा है। किंतु इन विलुप्तियों में भी प्रेरणा छिपी है। खंडहर हमें याद दिलाते हैं कि यदि संस्कृति को बचाया न जाए, तो वैभव भी टिक नहीं पाता।

विलुप्ति की कहानियों में चेतावनी है कि यदि हमने अपने संस्कारों और धरोहर को नहीं संभाला तो वे भी केवल स्मृतियों में रह जाएँगी। किंतु साथ ही प्रेरणा भी है कि हर बार जब संस्कृति संकट में आई, भारत ने उसे पुनर्जीवित किया। भक्ति आंदोलन ने धर्म को पुनर्जीवित किया, स्वतंत्रता संग्राम ने राष्ट्र की चेतना को जगाया और आज भी हर गाँव और हर परिवार में कहीं-न-कहीं यह संस्कृति जीवित है।

वास्तविकता यह है कि विलुप्ति केवल अंत नहीं होती, वह नई शुरुआत का संकेत भी होती है। जब पुरानी परंपरा विलुप्त होती है, तब वह हमें चेताती है कि नई पीढ़ी को कुछ नया, परंतु मूल भावना के अनुरूप, रचना है। यही प्रेरणा भारतीय संस्कृति को अमर बनाती है।