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“शैल, इस प्रकार किसी निर्दोष व्यक्ति को प्रताड़ित करना पुलिसवालों का स्वभाव होता है यह मैं जानती थी। इसीलिए मैं तुम्हारे पीछे पीछे आई। मैं नहीं चाहती कि वत्सर को कोई कठिनाई का सामना करना पड़े।”
“तो आपको मेरे विषय में येला ने सबकुछ बताया? तब तो उसने वह शिल्प कहाँ है वह भी बताया होगा।”
“नहीं। उसने नहीं बताया। ऊसने तो यह भी नहीं बताया कि वह कहाँ से आई थी।”
“अर्थात तुमने यह सुनने का धैर्य नहीं दिखाया। अभी जैसे बात बात पर अधीर हो रहे हो ऐसे अधीर ना होते तो येला अपने विषय में भी बताती। किन्तु आप तो पुलिसवाले हो न? आपसे धैर्य की अपेक्षा कैसी?”
“कहीं तुमने और येलाने मिलकर उस अज्ञात व्यक्ति की हत्या तो नहीं कर दी?” शैल ने अपनी रिवोल्वर निकालते हुए कहा।
“शैल, तुम अपनी सीमा का अतिक्रमण कर रहे हो।”
“मैं मेरा कार्य कर रहा हूँ।”
“बिना किसी प्रमाण के किसी पर भी झूठे अभियोग बना रहे हो। अपनी रिवॉल्वर दिखाकर भयभीत कर रहे हो।”
“शिल्पकार का शिल्प बनाना और उस शिल्प का तुम्हारे पास होना। इतने प्रमाण पर्याप्त है तुम दोनों को दोषी सिद्ध करने के लिए।”
“क्या तुम न्यायाधीश हो?”
“समय पर सब समझ जाओगी कि मैं क्या हूँ। मैं तुम दोनों का निग्रह [arrest] करता हूँ।”
“तुम ऐसा नहीं कर सकते। यह तुम्हारे अधिकार में नहीं है।“” येला ने आव्हान किया।
शैल आगे बढ़ा। वत्सर ने उसे रोक लिया।
“शैल। तुम बात क्या है यह मुझे बताओ। पश्चात तुम जो उचित हो वह करना। मैं नहीं रोकूँगा।” धैर्य से सुन रहे वत्सर ने कहा।
शैल ने पूरी घटना वत्सर को बताई। उसके पश्चात येला ने शिल्प की बात बताई वह भी कहा।
“शैल, आठ वर्ष पूर्व बनाए शिल्प से तुम कह रहे हो कि वत्सर ने किसी कि हत्या कर दी है?”
“हाँ। तुम ठीक समझ रही हो।”
“आठ वर्ष पूर्व की गई हत्या का मृतदेह आज आठ वर्ष के पश्चात मिल रहा है। इससे बड़ा आश्चर्य क्या होगा, शैल?”
“दो संभावनाएं है। एक, आठ वर्ष पूर्व हत्या कर दी हो और नदी में उसे अब बहा दिया गया हो।” येला और वत्सर के मुख पर कोई भाव परिवर्तन होता है या नहीं वह देखने के लिए शैल रुका। दोनों के मुख निर्लेप थे।
“दूसरी बात, हत्या कुछ दिन पूर्व ही की गई हो?” वह पुन: रुका। पुन: दोनों मुख निर्लेप।
“तो कहो, सत्य क्या है?”
“दोनों बातें असत्य है।” येला ने कहा।
“वह कैसे?”
“यदि आठ वर्ष पूर्व हत्या की गई है तो उस देह को इतने समय तक कैसे यथा स्थिति में रखा गया होगा? क्या कहता है आपका अन्वेषण?”
“कुछ रसायणों के उपयोग से यह संभव है।”
“संभावना की नहीं, तथ्यों की बात कहो।”
“अभी पोस्ट मॉर्टम रिपोर्ट नहीं आई है।”
“मृतदेह की स्थिति को देखकर आपको लगता है कि ऐसे रसायनों का प्रयोग हुआ होगा?”
“नहीं लगता।”
“तो प्रथम संभावना आपने ही निरस्त कर दी है, इन्स्पेक्टर शैल।”
“किन्तु दूसरी अभी भी ..।”
“वह भी निराधार है।”
“कैसे?”
“क्यों कि उस शिल्प प्रदर्शनी के पश्चात वत्सर इस गाँव में लौट आया है। अनंतर वह कभी भी इस गाँव से बाहर नहीं गया।”
“क्या तुम वत्सर की वकील हो?”
“समय आएगा तो वह भी बन जाऊँगी। किन्तु यह सत्य है कि वह कभी भी इस गाँव से बाहर नहीं गया।”
“यह बात तुम कैसे कह सकती हो?”
“तुमने इस मंदिर में आरती के पश्चात वत्सर को बाँसुरी बजाते हुए सुना था ना?”
“तुम बात को बदल रही हो, येला। बिना संबंध बात ना करो।”
“वही अधिरता! इस प्रकार तुम किसी रहस्य को नहीं जान सकोगे।”
“बाँसुरी के वादन का इस मंजूषा से क्या संबंध है?”
“पूरी बात सुनोगे तो समझोगे। धैर्य रखो। रख पाओगे?”
शैल ने स्मित से सम्मति प्रकट की।
“सिक्किम की पहाड़ियों में मैं शिल्प कार्य शाला चलाती हूँ। बारह वर्ष से देश विदेश के शिल्पकार वहाँ प्रशिक्षण ले रहे हैं। हम जिस शिल्प की बात कर रहे हैं वह शिल्प मेरी शाला में ही रखा गया है। सभी विद्यार्थी के लिए वह आदर्श शिल्प है। विश्व के प्रसिद्ध शिल्पकार केवल उस शिल्प को देखने के लिए वहाँ आते हैं। मैं सब को दिखाती हूँ। वह शिल्प मेरी प्रेरणा है।” येला रुकी। शैल धैर्य से उसे सुन रहा था। वह संतुष्ट हुई।
“उस शिल्प को श्रेष्ठ शिल्प घोषित किया गया। उस शिल्प को खरीदने के लिए बड़े बड़े शिल्पकार और व्यापारी उत्सुक थे। बड़ी बोलियाँ लगने लगी। वत्सर उसे बेचने के पक्ष में नहीं था तो उसने सभी प्रस्तावों को अस्वीकार कर दिया।”
“यह बात कुछ अनूठी लग रही है। क्या कारण रहा था, वत्सर, कि तुमने उसे अच्छी कीमत मिलने पर भी नहीं बेचा?”
“कारण है येला, येला की यह बाँसुरी।”
“यह येला की बाँसुरी है?” शैल विस्मय से बोल पड़ा।
“ना केवल बाँसुरी, उस बाँसुरी से निकले सुर भी येला के ही हैं।”
विस्मय शैल के मुख पर विशाल हो गया।