🌑 एपिसोड 5: जब साया करीब आया
उस रात के बाद आरव का घर पहले जैसा नहीं रहा।
पेंटिंग में पड़ी दरार अब भी साफ़ दिखती थी—छोटी-सी, लेकिन डरावनी।
जैसे किसी ने अंदर से बाहर झाँकने की कोशिश की हो।
आरव ने कई बार उसे छूकर देखा।
लकड़ी ठंडी थी…
लेकिन अब उसमें डर नहीं, चेतावनी थी।
“क्या वह फिर आएगा?”
आरव ने धीमी आवाज़ में पूछा।
अनाया उसके पास खड़ी थी—आज पहले से ज़्यादा धुंधली।
“हाँ,” उसने सच कहा।
“और अगली बार वह सिर्फ़ डराने नहीं आएगा।”
आरव की भौंहें सिकुड़ गईं।
“तो हमें जल्दी करनी होगी।”
“नहीं,” अनाया ने उसे रोका।
“जल्दी नहीं… सही तरीके से।”
अनाया खिड़की के पास गई।
चाँद की रोशनी उसके पारदर्शी चेहरे से होकर गुज़र रही थी।
“देवांश वर्मा सिर्फ़ कलाकार नहीं था,”
वह बोली,
“वह तंत्र को कला समझता था।”
आरव ने उसकी ओर देखा।
“तंत्र?”
अनाया ने सिर हिलाया।
“उसका मानना था कि अगर किसी की आत्मा को उसकी सबसे सुंदर अवस्था में क़ैद कर लिया जाए…
तो वह कला अमर हो जाती है।”
आरव का खून खौल उठा।
“और तुम…?”
“मैं उससे प्यार करती थी,”
अनाया ने बिना झिझक कहा।
ये शब्द कमरे में गिरते ही भारी हो गए।
आरव की आँखों में कुछ टूटा…
लेकिन उसने कुछ कहा नहीं।
“मुझे नहीं पता था,”
अनाया बोली,
“कि उसका प्यार स्वामित्व था।
वह मुझे इंसान नहीं…
कृति समझता था।”
उसकी आवाज़ भर्रा गई।
“जिस रात उसने मुझे क़ैद किया,”
वह आगे बोली,
“उसने कहा था—
अगर मैं तुम्हें पा नहीं सकता, तो दुनिया भी नहीं पाएगी।”
कमरे में ठंड बढ़ गई।
अचानक दरवाज़ा ज़ोर से बंद हो गया।
आरव चौंक गया।
“क्या तुमने—”
“नहीं,”
अनाया फुसफुसाई।
“वह यहाँ है।”
लाइट टिमटिमाने लगी।
दीवार पर टँगी पेंटिंग से काला धुआँ निकलने लगा।
वही भारी आवाज़—
“तुम्हें छूने का हक़ नहीं था, लड़की।”
अनाया पीछे हट गई।
उसकी आँखों में डर साफ़ था।
“देवांश,”
उसने काँपते हुए कहा,
“यह अब खत्म होना चाहिए।”
धुआँ गाढ़ा होता गया।
एक साया उभरा—पहले से ज़्यादा स्पष्ट, ज़्यादा भयानक।
“ख़त्म?”
साया हँसा।
“मेरी कला कभी ख़त्म नहीं होती।”
आरव आगे बढ़ा।
“तुम्हारी कला नहीं—
तुम्हारा अहंकार था।”
साया गुस्से से गरजा।
कमरा काँप उठा।
और तभी—
आरव के हाथ पर एक तेज़ जलन हुई।
उसने देखा—
उसकी त्वचा पर काले रंग का निशान उभर आया था।
अनाया चीख पड़ी।
“आरव!”
“यह क्या है?”
आरव ने दर्द दबाते हुए पूछा।
अनाया की आँखें फैल गईं।
“वह तुम्हें पेंटिंग से बाँध रहा है।”
“अगर वह सफल हो गया,”
अनाया ने काँपती आवाज़ में कहा,
“तो तुम भी… मेरे जैसे बन जाओगे।”
आरव ने अनाया की ओर देखा।
डर था…
लेकिन उससे बड़ा कुछ और था।
“तो शायद…”
वह हल्की मुस्कान के साथ बोला,
“मैं तुम्हें बेहतर समझ पाऊँगा।”
“मत कहो ऐसा!”
अनाया रो पड़ी।
“मैं तुम्हें इस क़ैद में नहीं देख सकती।”
साया आगे बढ़ा।
“अब बहुत देर हो चुकी है।”
और तभी—
आरव ने वह किया जिसकी किसी को उम्मीद नहीं थी।
उसने ब्रश उठाया।
कैनवास पर नहीं—
सीधे पेंटिंग की दरार पर।
“अगर रंग क़ैद कर सकते हैं,”
उसने ऊँची आवाज़ में कहा,
“तो सच उन्हें तोड़ भी सकता है।”
ब्रश से गिरा रंग चमका—
जैसे उसमें आरव की साँसें घुली हों।
साया चीखा।
कमरा रोशनी से भर गया।
एक तेज़ झटके के साथ सब थम गया।
आरव ज़मीन पर गिर पड़ा।
अनाया उसके पास आई—
आज उसका स्पर्श पहले से ज़्यादा साफ़ था।
“तुम पागल हो,”
उसने रोते हुए कहा।
“तुम अपनी ज़िंदगी दाँव पर लगा रहे हो।”
आरव ने उसकी ओर देखा।
“क्योंकि कोई तुम्हारी ज़िंदगी पहले ही दाँव पर लगा चुका था।”
अनाया की आँखों में आँसू थे…
और कुछ और भी।
“मैं आज़ाद होना चाहती हूँ,”
उसने सच कहा।
“लेकिन अगर उस आज़ादी में तुम्हें खोना पड़ा—
तो मैं तैयार नहीं हूँ।”
आरव ने धीरे से कहा—
“शायद इश्क़ यही होता है।
अपनी मुक्ति से पहले…
दूसरे को चुनना।”
कमरा शांत था।
लेकिन पेंटिंग की दरार…
अब और गहरी हो चुकी थी।
🌘 हुक लाइन (एपिसोड का अंत)
आरव को नहीं पता था कि देवांश ने उस पर जो निशान छोड़ा है, वही उसकी मोहब्बत की सबसे बड़ी परीक्षा बनने वाला है…