hindi Best Moral Stories Books Free And Download PDF

Stories and books have been a fundamental part of human culture since the dawn of civilization, acting as a powerful tool for communication, education, and entertainment. Whether told around a campfire, written in ancient texts, or shared through modern media, Moral Stories in hindi books and stories have the unique ability to transcend time and space, connecting people across generations and cult...Read More


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  • जादू की छड़ी

    मैं उन दिनों अपनी दीदी के यहां गई थी। जीजाजी अॅाफिसर थे। गाड़ी बंगला मिला हुआ था।...

  • एकजुटता

    एकजुटता इस विघटनकारी समय में सामाजिक एकजुटता के नए आयाम परिभाषित करती कहानी...

  • चाकर राखो जी...

    चारू तुम भी आ रही हो न हमारे साथ ---!’’ लंच ब्रेक में उसकी मेज की ओर आती हुई माल...

जादू की छड़ी By Sapna Singh

मैं उन दिनों अपनी दीदी के यहां गई थी। जीजाजी अॅाफिसर थे। गाड़ी बंगला मिला हुआ था। लिहाजा छुट्टियां बिताने की इससे बेहतर और कौन सी जगह हो सकती थी।
दीदी शादी के बाद अफसरी मिजाज वाली...

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परिणीता - 3 By Sarat Chandra Chattopadhyay

चारूबाला की माँ का नाम मनोरमा था। ताश खेलने से बढ़कर उन्हें और कोर्इ शौक न था। परंतु जितनी वह खेलने की शौकीन थीं, उतनी उनमें खेलने की दक्षता न थी। ललिता उनकी तरफ से खेलती थीं, तो उ...

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एकजुटता By KAMAL KANT LAL

एकजुटता इस विघटनकारी समय में सामाजिक एकजुटता के नए आयाम परिभाषित करती कहानी एकजुटता उस दिन मैं जयपुर से अपने शहर लौटने के लिए एयरपोर्ट की तरफ जा रहा था कि रास्ते में मेरे पिताज...

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आखर चौरासी - 10 By Kamal

घर पर हरनाम सिंह की पत्नी काफी चिन्तित थी। जैसे ही वे घर में घुसे, वह रसोई से निकल कर उनके पास आ गई।
‘‘आज तो आपको जल्दी घर आ जाना चाहिए था। हम सबको बड़ी चिन्ता हो रही थी। मैं तो सत...

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मैं जीत गई By S Bhagyam Sharma

‘‘अम्मा आपने हमारी परवरिश ठीक से नहीं की' ये सुन सरोजनी का दिल धक से रह गया। जब बेटा मेरे गर्भ में था, तब मैंने रविन्द्रनाथ ठाकुर की कविताओं को पढ़ा तो मुझे इतना अच्छा लगा कि मै...

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लाइफ़ @ ट्विस्ट एन्ड टर्न. कॉम - 12 By Neelam Kulshreshtha

समझ ही नहीं आता तुम हमारी ही बहन हो क्या ? दामिनी जब भी कामिनी से मिलती, उससे यह प्रश्न ज़रूर पूछती
पता नहीं, माँ-पापा से पूछ लेना --- जब भी मिलती हो इसी तरह ताने देती हो --...

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चाकर राखो जी... By Sapna Singh

चारू तुम भी आ रही हो न हमारे साथ ---!’’ लंच ब्रेक में उसकी मेज की ओर आती हुई मालती ने पूछा था ‘‘कहां भाई.......?’’ उठते हुए पूछा उसने ‘‘ल्यो...... इनको कुछ खबर ही नहीं रहती - अरे भ...

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और फिर क्या? By Pritpal Kaur

“आखें बंद कर के देखोगे तो अँधेरा ही दिखाई देगा.”
विजय ने झुंझलाते हुए ऊंची आवाज़ में कहा. सुधाकर बड़े भाई की बात सुनते ही क्रोध से भर उठा. उसे हर किसी का सुझाव देना नहीं भाता था. ले...

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यादें - 2 By प्रियंका गुप्ता

एक अजीब सी बेचैनी तारी हो गई थी मुझ पर...। क्या हो रहा होगा वहाँ...? काश, मैं तुम्हारे साथ होती। वैसे तुम अकेले भी नहीं थे, अच्छा-खासा स्टॉफ़ गया था तुम्हारे साथ...और सबसे बड़ी बात,...

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पथ के दावेदार - 10 - Last Part By Sarat Chandra Chattopadhyay

भोजन की थाली उसी तरह पड़ी रही। उसकी आंखों से आंसू की बड़ी-बड़ी बूंदे गालों पर से झर-झर नीचे गिरने लगीं। अपूर्व की मां को उसने कभी देखा नहीं था। पति-पुत्र के कारण उन्होंने जीवन में बहु...

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मेरा नाम अन्नपुर्णी है। By S Bhagyam Sharma

बाहर से कुछ आवाज आई। मैंने सिर्फ थोड़ा सा सिर बाहर करके झांका तो देखा सास लक्ष्मी एक बडे थैले को लेकर आ रहीं थी। ऐ बात पन्द्रह दिन में एक बार होती रहती है। पति चन्द्रशेखर की तेज आवा...

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लबरी By Geeta Shri

“लबरा लबरी चले बाजार...लबरा गिरा बीच बाजार, लबरी बोली खबरदार...”
माला कुमारी ने जिस घड़ी गांव जाने के बारे में सोचा था तभी से कान में एक ही धुन बज रही थी..। स्मृतियों की रील बेहद...

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कंफर्ट जोन के बाहर By Sapna Singh

वह गुस्से में थी! बहुत-बहुत ज्यादा गुस्से में।
‘‘साले, हरामी, कुत्ते’’ उसके मुँॅह से धाराप्रवाह गालियाँॅ निकल रही थीं। हॉँलाकि उसे बहुत सारी गालियॉँ नहीं आती थीं। हर बार वह इन्ही...

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पर्व के रंग By Dr. Vandana Gupta

दीवाली की रात.. सूरज और चाँद मानो एक साथ सम्पूर्ण निहारिका लेकर धरती पर जगमगाने चले आए हों. मन के भीतर भी और बाहर भी उत्सव का उल्लास छाया हुआ . सृष्टि का कण कण पर्वमयी हो सप्त...

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वेपिंग कपल By r k lal

वेपिंग कपलआर 0 के 0 लालबिल्डिंग के तीसरे मंजिल पर अच्छा खासा कार्यालय था परंतु सीढ़ियों के सामने ही एक भट्टी में कोयले धधक रहे थे। कार्यालय में जाने वाले किसी बाहरी व्यक्ति ने पूछा...

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टुकड़ा-टुकड़ा ज़िन्दगी - 2 By प्रियंका गुप्ता

फ़ैज़ान मियाँ एकदम खामोश हो गए। आलिया आखिर कैसा वादा चाह रही थी...बिन जाने कैसे खुदा को हाज़िर-नाज़िर जान कर वादा कर लें...? आलिया उनकी ख़ामोशी की आवाज़ भी सुन सकती थी, ये शायद वो अब भी...

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काली वध By S Bhagyam Sharma

‘‘क्या है री!.......... बोल.............क्यों भाग कर आ रही है?'
‘‘अत्ते......अत्तेय....कुंवारी की तरफ' ‘‘क्या बात है री? बोल तो।'
‘‘एक अबोध बच्ची...................चा...

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कब सहर होगी By Rajesh Bhatnagar

वह पूरे राज्य में नौकरी देने वाले भर्ती दफ्तर में लगा एक अदना-सा वर्कचार्ज कर्मचारी है । पहले तो वह वर्कचार्ज की हैसियत से ही लगा था । मगर पिछले पांच-छः वर्षों से कंगाल सरकार ने उस...

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निबन्ध-ये कैसी मित्रता By Dinesh Tripathi

मित्र का शब्द बड़ा व्यापक है| इसेसखा,सखी मित,्र दोस्त आदि नाम से जाना जाता है लेकिन प्रचलन में दोस्त शब्द व्यापक है मित्रता के बाजार में एक नया शब्द अंग्रेजी का फ्रेंड ज्यादातर उपय...

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जादुई छड़ी By Mamtora Raxa

जादुई छड़ी सूरज अपने सुनहरे किरनों का प्रकाश फैला रहा है, लोगो की बढ़ रही चहल-पहल धीरे-धीरे वातावरण की खामिशियों में बाधा डाल रही हैं| शहर के बीचोबीच स्थित छोटे से सुंदर बंगले...

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इस कहानी में हीरो नहीं है By Pritpal Kaur

कल रात बिस्तर पर लेते हुए ख्याल आया कि हमारे आस-पास के इंसानों पर तो हम सब कहानियां लिखते हैं और पढ़ते हैं. क्यूँ न अपने इर्द गिर्द रहने वाले जानवरों पर एक कहानी लिखी जाये. जब कहानी...

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नर्मदे हर By Manish Vaidya

नदी के शांत और निर्द्वंद बहते पानी पर से अभी – अभी सिंदूरी रंग उतरा है और अब नदी के पानी में धूप की सुनहरी परतें झिलमिला रही हैं. चैत के महीने में धूप अभी से चटख हो रही है. वैसे यह...

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मेकिंग आफ बबीता सोलंकी By Geeta Shri

“अरे..सब एक साथ उठ कर चल दिए। मैं अकेला रहूंगा अभी से...कोई एक तो रुको, मेरा जाम खत्म हो जाए, फिर चले जाना। ये रिवाज नहीं महफिल का...”
बूढीं आखों में मिन्नतें चमकीं। आवाज लरज रही...

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मैं अम्मा नहीं हूँ. By Pritpal Kaur

मैंने पहली बार उन्हें देखा था अपने घर के बड़े से आँगन में तीन मेजों को एक के बाद एक सिरे से लगा कर उन पर अपनी पुरानी नौकरानी की मदद से खाना बनाते हुए. उनके पीछे बहुत सारा रोज़मर्रा क...

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नजरों में By Monty Khandelwal

चल विनोद बिजली बिल भर के आते हैं | हाँ चल | वहा से रवाना होते समय याद आया अरे चल-चल - चल विनोद मेने नया चश्मा बनवाने दिया हैं | वोह भी लेके आते हैं | विनोद - हा भाई चल पर कहाँ बन...

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जादू की छड़ी By Sapna Singh

मैं उन दिनों अपनी दीदी के यहां गई थी। जीजाजी अॅाफिसर थे। गाड़ी बंगला मिला हुआ था। लिहाजा छुट्टियां बिताने की इससे बेहतर और कौन सी जगह हो सकती थी।
दीदी शादी के बाद अफसरी मिजाज वाली...

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परिणीता - 3 By Sarat Chandra Chattopadhyay

चारूबाला की माँ का नाम मनोरमा था। ताश खेलने से बढ़कर उन्हें और कोर्इ शौक न था। परंतु जितनी वह खेलने की शौकीन थीं, उतनी उनमें खेलने की दक्षता न थी। ललिता उनकी तरफ से खेलती थीं, तो उ...

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एकजुटता By KAMAL KANT LAL

एकजुटता इस विघटनकारी समय में सामाजिक एकजुटता के नए आयाम परिभाषित करती कहानी एकजुटता उस दिन मैं जयपुर से अपने शहर लौटने के लिए एयरपोर्ट की तरफ जा रहा था कि रास्ते में मेरे पिताज...

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आखर चौरासी - 10 By Kamal

घर पर हरनाम सिंह की पत्नी काफी चिन्तित थी। जैसे ही वे घर में घुसे, वह रसोई से निकल कर उनके पास आ गई।
‘‘आज तो आपको जल्दी घर आ जाना चाहिए था। हम सबको बड़ी चिन्ता हो रही थी। मैं तो सत...

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मैं जीत गई By S Bhagyam Sharma

‘‘अम्मा आपने हमारी परवरिश ठीक से नहीं की' ये सुन सरोजनी का दिल धक से रह गया। जब बेटा मेरे गर्भ में था, तब मैंने रविन्द्रनाथ ठाकुर की कविताओं को पढ़ा तो मुझे इतना अच्छा लगा कि मै...

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लाइफ़ @ ट्विस्ट एन्ड टर्न. कॉम - 12 By Neelam Kulshreshtha

समझ ही नहीं आता तुम हमारी ही बहन हो क्या ? दामिनी जब भी कामिनी से मिलती, उससे यह प्रश्न ज़रूर पूछती
पता नहीं, माँ-पापा से पूछ लेना --- जब भी मिलती हो इसी तरह ताने देती हो --...

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चाकर राखो जी... By Sapna Singh

चारू तुम भी आ रही हो न हमारे साथ ---!’’ लंच ब्रेक में उसकी मेज की ओर आती हुई मालती ने पूछा था ‘‘कहां भाई.......?’’ उठते हुए पूछा उसने ‘‘ल्यो...... इनको कुछ खबर ही नहीं रहती - अरे भ...

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और फिर क्या? By Pritpal Kaur

“आखें बंद कर के देखोगे तो अँधेरा ही दिखाई देगा.”
विजय ने झुंझलाते हुए ऊंची आवाज़ में कहा. सुधाकर बड़े भाई की बात सुनते ही क्रोध से भर उठा. उसे हर किसी का सुझाव देना नहीं भाता था. ले...

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यादें - 2 By प्रियंका गुप्ता

एक अजीब सी बेचैनी तारी हो गई थी मुझ पर...। क्या हो रहा होगा वहाँ...? काश, मैं तुम्हारे साथ होती। वैसे तुम अकेले भी नहीं थे, अच्छा-खासा स्टॉफ़ गया था तुम्हारे साथ...और सबसे बड़ी बात,...

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पथ के दावेदार - 10 - Last Part By Sarat Chandra Chattopadhyay

भोजन की थाली उसी तरह पड़ी रही। उसकी आंखों से आंसू की बड़ी-बड़ी बूंदे गालों पर से झर-झर नीचे गिरने लगीं। अपूर्व की मां को उसने कभी देखा नहीं था। पति-पुत्र के कारण उन्होंने जीवन में बहु...

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मेरा नाम अन्नपुर्णी है। By S Bhagyam Sharma

बाहर से कुछ आवाज आई। मैंने सिर्फ थोड़ा सा सिर बाहर करके झांका तो देखा सास लक्ष्मी एक बडे थैले को लेकर आ रहीं थी। ऐ बात पन्द्रह दिन में एक बार होती रहती है। पति चन्द्रशेखर की तेज आवा...

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लबरी By Geeta Shri

“लबरा लबरी चले बाजार...लबरा गिरा बीच बाजार, लबरी बोली खबरदार...”
माला कुमारी ने जिस घड़ी गांव जाने के बारे में सोचा था तभी से कान में एक ही धुन बज रही थी..। स्मृतियों की रील बेहद...

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कंफर्ट जोन के बाहर By Sapna Singh

वह गुस्से में थी! बहुत-बहुत ज्यादा गुस्से में।
‘‘साले, हरामी, कुत्ते’’ उसके मुँॅह से धाराप्रवाह गालियाँॅ निकल रही थीं। हॉँलाकि उसे बहुत सारी गालियॉँ नहीं आती थीं। हर बार वह इन्ही...

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पर्व के रंग By Dr. Vandana Gupta

दीवाली की रात.. सूरज और चाँद मानो एक साथ सम्पूर्ण निहारिका लेकर धरती पर जगमगाने चले आए हों. मन के भीतर भी और बाहर भी उत्सव का उल्लास छाया हुआ . सृष्टि का कण कण पर्वमयी हो सप्त...

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वेपिंग कपल By r k lal

वेपिंग कपलआर 0 के 0 लालबिल्डिंग के तीसरे मंजिल पर अच्छा खासा कार्यालय था परंतु सीढ़ियों के सामने ही एक भट्टी में कोयले धधक रहे थे। कार्यालय में जाने वाले किसी बाहरी व्यक्ति ने पूछा...

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टुकड़ा-टुकड़ा ज़िन्दगी - 2 By प्रियंका गुप्ता

फ़ैज़ान मियाँ एकदम खामोश हो गए। आलिया आखिर कैसा वादा चाह रही थी...बिन जाने कैसे खुदा को हाज़िर-नाज़िर जान कर वादा कर लें...? आलिया उनकी ख़ामोशी की आवाज़ भी सुन सकती थी, ये शायद वो अब भी...

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काली वध By S Bhagyam Sharma

‘‘क्या है री!.......... बोल.............क्यों भाग कर आ रही है?'
‘‘अत्ते......अत्तेय....कुंवारी की तरफ' ‘‘क्या बात है री? बोल तो।'
‘‘एक अबोध बच्ची...................चा...

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कब सहर होगी By Rajesh Bhatnagar

वह पूरे राज्य में नौकरी देने वाले भर्ती दफ्तर में लगा एक अदना-सा वर्कचार्ज कर्मचारी है । पहले तो वह वर्कचार्ज की हैसियत से ही लगा था । मगर पिछले पांच-छः वर्षों से कंगाल सरकार ने उस...

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निबन्ध-ये कैसी मित्रता By Dinesh Tripathi

मित्र का शब्द बड़ा व्यापक है| इसेसखा,सखी मित,्र दोस्त आदि नाम से जाना जाता है लेकिन प्रचलन में दोस्त शब्द व्यापक है मित्रता के बाजार में एक नया शब्द अंग्रेजी का फ्रेंड ज्यादातर उपय...

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जादुई छड़ी By Mamtora Raxa

जादुई छड़ी सूरज अपने सुनहरे किरनों का प्रकाश फैला रहा है, लोगो की बढ़ रही चहल-पहल धीरे-धीरे वातावरण की खामिशियों में बाधा डाल रही हैं| शहर के बीचोबीच स्थित छोटे से सुंदर बंगले...

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इस कहानी में हीरो नहीं है By Pritpal Kaur

कल रात बिस्तर पर लेते हुए ख्याल आया कि हमारे आस-पास के इंसानों पर तो हम सब कहानियां लिखते हैं और पढ़ते हैं. क्यूँ न अपने इर्द गिर्द रहने वाले जानवरों पर एक कहानी लिखी जाये. जब कहानी...

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नर्मदे हर By Manish Vaidya

नदी के शांत और निर्द्वंद बहते पानी पर से अभी – अभी सिंदूरी रंग उतरा है और अब नदी के पानी में धूप की सुनहरी परतें झिलमिला रही हैं. चैत के महीने में धूप अभी से चटख हो रही है. वैसे यह...

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मेकिंग आफ बबीता सोलंकी By Geeta Shri

“अरे..सब एक साथ उठ कर चल दिए। मैं अकेला रहूंगा अभी से...कोई एक तो रुको, मेरा जाम खत्म हो जाए, फिर चले जाना। ये रिवाज नहीं महफिल का...”
बूढीं आखों में मिन्नतें चमकीं। आवाज लरज रही...

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मैं अम्मा नहीं हूँ. By Pritpal Kaur

मैंने पहली बार उन्हें देखा था अपने घर के बड़े से आँगन में तीन मेजों को एक के बाद एक सिरे से लगा कर उन पर अपनी पुरानी नौकरानी की मदद से खाना बनाते हुए. उनके पीछे बहुत सारा रोज़मर्रा क...

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नजरों में By Monty Khandelwal

चल विनोद बिजली बिल भर के आते हैं | हाँ चल | वहा से रवाना होते समय याद आया अरे चल-चल - चल विनोद मेने नया चश्मा बनवाने दिया हैं | वोह भी लेके आते हैं | विनोद - हा भाई चल पर कहाँ बन...

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