Dastane - ishq - 6 in Hindi Love Stories by Tanya Gauniyal books and stories PDF | Dastane - ishq - 6

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Dastane - ishq - 6


So ye kahani continue hongi pratilipi par kahani ka name same hai but poster dark hai tou confuse mat hona. After 10 - 15 episode i will stop this update if, you want do comment and follow me on pratilipi 

Id name - Tanya gauniyal 
Story name - same - Dastane - ishq ( mafia romance) see the picture you will get to know 

https://pratilipi.page.link/oyLuU1nTigc37YNU6

And there I have reached more ahead so go and read their and do comment and follow me on my pratilipi I'd.

Jismai meri first kahani ke sath sath second kahani bhi hai. 

So guys go and read their and follow me too for new updates in Instagram. 

If you want spoiler of this story follow me on Instagram 

Instagram I'd - Tanya gauniyal 
InstagramI'd link - https://www.instagram.com/tanya_gauniyal?

I am waiting for your response readers do and comment 💬 and share your lovely thoughts. 


















दोनों की गाडि़या एक दुसरे को क्रास कर रही थी । सत्या आती जाती हवा को महसूस करके अपने दिमाग को शांत करने की कोशिश कर  रहा था तबतक एक दुप्ट्टा उसके चेहरे मे जा गिरा । आचानक से उसे अजीब सा एहसास होने लगा की  जैसे उसके चेहरे पर कुछ है । उसने अपनी आँखें खोली और जबतक उस दुप्प्टे को अपने हाथ मे कसता तबतक वो उड़कर गाडी़ के पीछे  चला गया । उधर आयुषी और सत्या दोनों ने गाडी़ रूकवाई । गाडी़ एकदम से रूकी  सत्या कुछ देर तक सोचता रहा और फिर एक दम से गाडी़ से उतरा और सामने देखा । वहा उसे एक लड़की दिखी  जिसकी पीठ दिख रही थी । वो पेड़ से अपना दुप्पटा निकालने की कोशिश कर रही थी ।
क्या था जब उनकी गाडी़ एक दुसरे को क्रोस हुई  तो दुप्पटा उड़कर सत्या के चेहरे को छूकर उस पेड़ मे जा अटका । आयुषी ने गाडी़ रूकवाई और पेड़ के पास गई ।

अपने दुप्पटे को इतना ऊपर देखकर  वो मू बनाकर बड़बडा़ई :  "ओहो , कितने ऊपर चला गया मेरा दुप्पटा  " 

वो उछलने लगी और दुप्पटे को पकड़ने लगी । 

वो उछलते हुए बोली : " आ जाना ना हाथ मे, कितना दूर है "

 उछलने के कारण से उसके बाल ऊपर नीचे हिल रहे थे और उसकी चुडि़यो की आवाज आ रही थी । सत्या उसे एकतक देखता रहा और धीरे धीरे कदम आगे बडा़ने लगा । उसकी नीली आँखें इस लड़की का चेहरा देखना चाहती थी इस बात से वो खुद अंजान था । उसकी आँखें सिर्फ अपने सामने खडी़ लड़की को देखने के लिए तड़प रही थी और उसके दिल मे बेचैनी होने लगी । वहा आयुषी दुप्पटा निकालने की पूरी कोशिश कर रही थी पर जैसे ही वो हाथ ऊपर करती , चुन्नी जैसे उससे मू फेरकर हवा मे उड़ जाती ।

उसने कमर मे हाथ रखकर और भोला सा मू बनाकर कहा : " ओहो , तुम मुझसे मू क्यों फेर रही हो ?" 

दूर से सत्या ने ये देखा उसकी भौंहे आपस मे जुडी़ थी । वो हल्के हल्के अपने कदम बडा़ रहा था और अपने सामने खडी़ लड़की को कन्फ्यूज्न से देख रहा था । आखिरकार वो चुन्नी आयुषी के  हाथ मे आई पर नीचे छुटकर गिरी । वो झुकी तो उसके खुले बाल जमींन को छुने लगे । सत्या की नजर नीचे गई पर जबतक वो आयुषी को देख पाता  तबतक आयुषी के  आगे उसके बाल आ गए । उसने चुन्नी उठाई और अपने बालो को पीछे करने के लिए सत्या की तरफ देखा पर सत्या उसे देख पाता इससे पहले वहा पर कुछ लोग आ गए और जब वो हटे तबतक उसने मू फेर लिया था । राधिका ने जब देखा की उसकी बहन नही आ रही तो उसने सर निकालकर बाहर देखा ।

उसने अपनी बहन को एक जगह खडा़ देखा तो उसने अपनी बहन को आवाज लगाई   : " दी कहा हो ? , चुन्नी मिली ? "

आयुषी ने  चुन्नी ठीक से पहनते हुए कहा : " हा मिल गई, पेड़ मे अटक गई थी "

सत्या ने उसकी आवाज सुन ली थी आयुषी टैक्सी मे बैठ गई । 
सत्या ने अपनी रफ्तार बडा़ई और वो अभी भी कन्फ्यूज्न से सब देख रहा था । आखिर ये सब क्या हुआ ? उसे कुछ समझ नही आया ? । आचानक से चुन्नी आ जाना और फिर  उसका अपने आप उस लड़की के पास चले जाना । उधर आयुषी टैक्सी मे  बैठी उसकी चुन्नी बाहर निकली थी ।

ड्राइवर ने जब ये देखा तो आयुषी को समझाते हुए कहा : " बेटा चुन्नी बाहर मत निकालो, अगर कही फंस गई तो ?, कही क्या  गले  मे ही  फस गई होती तो ? "

आयुषी ने मासूम सा चेहरा बनाकर चुन्नी अंदर की और अपनी गलती मानते हुए " सौरी अंकल " कहा ।

उसके ऐसे भोले व्यवहार से ड्राइवर मुस्कान लिए प्यार से बोला : "  सौरी नही बेटा , आगे से ध्यान रखना ,कोई भी बडा़ हादसा हो सकता है " 

आयुषी ने भी उसी मीठी आवाज मे कहा : " जी अंकल आगे से  मै पूरा ध्यान रखूंगी " 

ड्राइवर ने टैक्सी शुरू की और  आगे निकल गई । सत्या अभी भी कन्फ्यूज्न से उस जाती हुई टैक्सी को देख रहा था । सत्या की गाड़ी ट्रेफिक सिगनल की वजह से रूकी थी । अब ट्रेफिक सिगनल खुल चुका था । जब गाड़ी रूकी और सत्या एकदम से उतरा तो करन को समझ नही आया की आचानक से वो क्यों उतरा । उसने सोचा की वो आ जाएगा पर सिगनल खुलने के बाद भी वो नही आया । पीछे  से करन गाडी़ से बाहर आया और उसने  देखा की सत्या एक जगह खडा़ है ।

वो चलकर उसके पास आया और पूछा : " कुछ प्राबलम है सर ?" 

जब सत्या ने जवाब नही दिया और करन ने देखा की सत्या खोया है तो करन ने दोबारा पूछा : "  सर आप कहा खोए है ?"  

करन कबसे उसे पुकार रहा था पर सत्या को एहसास नही हुआ । जब करन को जवाब नही मिला तो करन ने भी सामने देखा सामने  कोई नही था पर सत्या को जैसे होश ही  नही था । जबतक वो टैक्सी आँखों से ओझल नही हो गई । सत्या के कानो मे आयुषी  की आवाज ही गुंज रही थी । टैक्सी के जाने के बाद वो होश मे आया । 

" हा. हा.. हा  " सत्या ध्यान मे आकर बोला ।

उसने करन को देखा ।

करन ने अपने बोस को ऐसे खोया देखा तो  पूछा : " सर कुछ हुआ है ? आप किसी को देख रहे थे ? कुछ चाहिए आपको ? " 

करन की बात सुनकर  सत्या का चेहरा फिर कठोर हो गया ।

" कुछ नही , चलो " सत्या  बोल आगे  निकल गया ।

करन ने अपने बोस के बदलता चेहरा देख लिया था और अपने मन मे सोच रहा था की अभी तो चेहरा नोर्मल हो गया था पर फिर कठोर हो गया । वो हैरान था की उसके बोस का चेहरा नोर्मल भी हो सकता है ? आखिर ऐसा चमत्कार कैसे हुआ ? पर कुछ भी हो , वो ये सब सोच ही रहा था तबतक सत्या के तेज चिल्लाने की आवाज आई : " कहा मर गया करन..." 

सत्या के चिल्लाने से वो होश मे आकर जल्दी से उसके पीछे गया ।

सत्या ने उसे घूरकर कहा : " क्या अब यही रहना है ? "

करन  ने "नही नही सर " कहा और  आगे निकल गया  । 

सत्या ने एक पल पीछे देखा फिर  गाडी़ मे आकर बैठ गया । गाड़ी चलती रही, करन को फोन आया ।

करन ने  फोन उठाकर " हैल्लो " कहा ।

सामने अनवर की आवाज आई  : " साहब कहा तक पहुंचे ?" 

करन ने जवाब दिया : " रास्ते मे है बस पहुंचने वाले है " 

अनवर ने अपने सामने खडे़ धीरज को देखते हुए कहा : " साहब से कहना धीरज आया है , जल्दी आए "

उधर धीरज गुस्से से अनवर को घूर रहा था जैसे वो अभी उसे जान से मार देंगा " 

धीरज अनवर को खा जाने वाली नजरो से देखकर बोला : " जल्दी बुलाओ उस so called अपने साहब को, वरना मै अरमान को लेकर चला जाऊंगा " 

अनवर ने कान मे से फोन हटाकर धीरज को देखकर कोल्ड वोइस मे कहा : " समझ नही आता साहब आ रहे है न, रूक जाओ थोड़ी देर " 

धीरज गुस्से से चीखकर बोला : " नौकर नही हूँ मै उसका जो रूक जाऊं.. मै धीरज हूँ.. माफिया.. समझे " 

अनवर ने उसकी बात इग्नोर करके कान मे फोन लगाया । करन ने वो सारी बाते सुन ली थी ।

करन अनवर के कुछ भी कहने से पहले बोला : " चिंता मत करो हम आ रहे है .. " 

अनवर ने " हम्म ठीक है " कहकर फोन रख दिया ।

करन अपने मन मे सोचते हुए बोला : " जब भी मै धीरज का नाम लेता हूं तब ये राक्षस हद से ज्यादा गुस्सा हो जाता है, अब क्या करू बोलना तो पडे़गा " 

उसने पहले अपने बोस का मूड देखा और मन मे बुदबुदाया  : " ये  शांत है या गुस्सा ये बता पाना भी नामुमकिन सा है " 

उसने हिम्मत की और बोल पडा़  : " सर .. वो " 

करन बोलते बोलते  रूक गया सत्या जिसने दोबारा एक सिगरेट जलाकर मू मे दबा ली थी ।

वो बिना करन को देखकर  बोला :  " क्या ?"  

करन डरते डरते बोला : " अनवर चच्चा का फोन आया था, धीरज " 

धीरज का नाम सुनकर सत्या की आँखें कठोर हो गई ।

वो कठोरता से बोला : " वो क्या ?" 

वो  इतनी कठोर आवाज बोला की ड्राइवर के हाथ से स्टेयरिंग छुटने को हुआ पर उसने मजबूती से उसे पकडे़ रखा । उधर करन के माथे मे भी पसीना आ गया था ।

उसने एक सांस मे कहा : " वो सर " वो कांपकर बोला ।

सत्या उसके इस व्यवहार  से पक गया था ।

वो चिड़कर बोला : " क्या बात है कबसे सर सर किए जा रहा है आगे भी कहेगा ? " 

तो उसने हिम्मत करके कहा  : " धीरज आपसे मिलना चाहते है , वो  अद्दे मे आए है " 

" हम्म " सत्या सिर्फ  इतना ही बोला ।

करन ने सब सत्या का ऐसा शांत रिएक्शन देखा तो हैरान रह गया  । उसने तो सोचा था की सत्या चिल्लाएगा या गुस्से से कुछ तोड़ देगा  पर वो चुप रहा । थोड़ी देर बाद वो उसी जंगल मे पहुंचे । गाड़ी की आवाज सबको सुनाई दे गई थी और सबको पता चल गया की सत्या आ चुका है ।

अनवर ने धीरज को देखकर कहा : " साहब आ गए है " 

असलम धीरज से बोला : " धीरज जो कहना है उनसे कहना " 

धीरज गुस्से से चीखकर बोला : " कहने और सुनने के लिए कुछ भी नही है मैने कहा ना अरमान को छोडो़ तो छोडो़ " 

उधर दरवाजा खुला और सत्या अंदर आया । सबने उसके सामने नजरे झुका ली, धीरज  के अलावा । वो उसे गुस्से और नफरत दोनों से देख रहा था पर सत्या को जैसे फ्रक ही नही पडा़ । उसने किसी को भी नही देखा और सीधे बादशाह की तरहा उस कुर्सी मे जा बैठा । उसकी आँखें हमेशा की तरहा कठोर हो गई । 

दुसरी तरफ आयुषी और राधिका एक अपार्टमेंट के आगे खडे़ थे । उन्होंने टैक्सी वाले को पैसे दिए और अंदर घुसे । वो जा रहे थे तबतक  उन्हें गार्ड ने रोक दिया । 

जंगल मे सत्या के बैठने के बाद ।

धीरज चिल्लाकर बोला :  " अरमान को छोड़ " 

असलम धीरज को देखकर गुस्से से बोला : " धीरज अपने गुस्से पर कंट्रोल रख और आवाज नीची रखकर बात कर "।

धीरज ने असलम को घूरा और सत्या के सामने खडा़ होकर असलम से बोला : "  ए सत्या के पालतू कुत्ते , जितना तेरा मालिक बोले उतना बोल उसके अलावा अपनी जुबान पर लगाम दे " 

सत्या की पैनी नजर उसपर पडी़ ।

धीरज ने गुस्से से सत्या को देखकर कहा : " यहा सब तूझसे डरते होंगे पर मै नही डरता " 

सत्या ने अपनी नजरे हटाई और सामने देखकर रौबदार आवाज मे कहा  : " अरमान ने गद्दारी की है और गद्दार को सजा मिलती है रेहाई नही, मेरे खिलाफ जो जाएगा मौत से उसका सामना होगा " 

 " तू उसे रेहा करेगा , ये बात फाइनल है " धीरज  दोबारा चीखा तो सत्या ने उसे देखा और खडे़ होकर कहा : " मै अपना फैसला कभी नही बदलता और ना ही दौरहाता हूँ " 

धीरज  ने गुस्से से अपनी मुट्ठी भींच ली और गुस्से से बाहर चला गया । वो गाडी़ मे बैठा और अपने अद्दे मे पहुंचा और गुस्से से वहा पर शराब की बोटले फेंक दी । गिरने की वजह से  जमीन मे कांच बिखर गया । अनवर ने सत्या को कुछ बाते बताई और उसका औरा मौत से भी खतरनाक हो गया ।

वो उतरकर बोला  : " मुझे अरमान से मिलना है " और चल दिया  ।

वहा जितने भी लोग थे वो अपने मन मे बस यही दुआं कर रहे थे : " है भगवान इस जल्लाद से अरमान को बचाना " 

दुसरी तरफ धीरज गुस्से मे बैठा था । विराट , जो धीरज का राइट हैंड था उसने पूछा : " आपने कुछ किया क्यों नही , ऐसे चुपचाप वहा से चले  क्यों आए ?" 

धीरज गुस्से से उसे देखकर बोला :  "तो क्या करता ? , अगर मै वहा उसे कुछ कहता तो उसके लोग मुझे मारने मे एक सेकेण्ड नही लगाते , सब उसके पालतू कुत्ते बने बैठे है  " 

धीरज ने सामने देख गुस्से और नफरत से कहा  : " मै कुछ नही कर सकता, सिर्फ अभी के लिए वो इस जंगल का राजा है पर कभी न कभी तो ऊंट पहाड़ के नीचे आएगा , हर कुत्ते का दिन आता है , आज उसका दिन है तो क्या हुआ ?जब मेरा दिन आएगा तब मै उससे सब कुछ छीन लूंगा ,  सब कुछ , उसका घर , रूतबा और वो कुर्सी भी " 

विराट ने उसे देखकर पूछा : " तो कब का इंतजार है अभी क्यों नही मार देते ?" 

धीरज ने उसे देखकर कहा : " मै बेसाहरा हूँ नो साल पहले उसने नई सियासत शुरू की थी, हमारे सारे दोस्त और दुशमनो को मार दिया ताकी उसके सामने किसी की आवाज उँची ना हो और अपने नौकरो को माफिया बना दिया, ताकि वो उसके लिए बिना सवाल किए  काम करते रहे  जैसा वो कहे वैसा करते रहे ( उसने सामने देखकर कहा ) मेरे पास इतने आदमी नही जो उस सत्या की फौज को हरा सके पर कभी न कभी तो होंगे " 

हर हर महादेव ।