The 13th Door - 2 in Hindi Horror Stories by Vijeta Maru books and stories PDF | 13वां दरवाज़ा - 2

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13वां दरवाज़ा - 2

एपिसोड 2: आईना जो झूठ नहीं बोलता

अंधेरा। ठंड। और एक ऐसा सन्नाटा, जिसमें साँसों की आवाज़ भी भारी लगती है।

आरव नीचे बने उस रहस्यमयी कमरे में फँस चुका था। दीवारों पर बड़े-बड़े शीशे लगे थे। लेकिन उनमें सिर्फ़ उसका प्रतिबिंब नहीं था — उनमें वो दृश्य दिखाई दे रहे थे जो कभी घटे ही नहीं थे, या शायद होने वाले थे।

वो पीछे मुड़ा तो सीढ़ियों का रास्ता गायब था। तेरहवाँ दरवाज़ा अब पत्थर बन चुका था।


आईनों की दुनिया
एक-एक कर वो सभी आईनों को देखने लगा। पहला आईना — उसका अतीत दिखा रहा था।
वो बच्चा बना हुआ था, अपने पिता पर चिल्लाता हुआ – "आप झूठ बोलते हैं! भूत-प्रेत कुछ नहीं होता!"

उसका पिता गुस्से से पलटा, "तू नहीं समझेगा। ये तेरहवाँ दरवाज़ा हमारे खून में है।"

आरव पीछे हटा। “ये क्या है? मेरे बीते हुए पल... या मेरे डर?”

दूसरा आईना — उसका वर्तमान। वह खुद को हवेली में देख रहा था, लेकिन उसके पास खड़ा कोई और भी था।
कंधों तक लंबे बाल, काले लिबास में — एक लड़की, जिसकी आंखें खाली थीं। वह धीरे से मुस्कुराई और आईने में कहा,
“तुम आ ही गए, आरव...”

आरव काँप उठा। “ये कौन है?”


शिवा की तलाश
उधर हवेली के बाहर, शिवा हिम्मत करके अंदर लौट आया। “आरव भैया! कहाँ हैं आप?”

उसे आरव की आवाज़ नहीं आई, पर हवेली के हर कोने से फुसफुसाहटें आ रही थीं:

“शिवा... शिवा... तुझे भी बुलाया गया है...”

शिवा ने देखा — दरवाज़ा अब गायब था। दीवार सादे पत्थर की बन गई थी। लेकिन फर्श पर आरव का कैमरा पड़ा था, और उस पर खून के धब्बे थे।


आईना जो झूठ नहीं बोलता
आरव अब तीसरे आईने के सामने खड़ा था — इस बार उसमें उसका चेहरा नहीं था। उसमें कोई और था — एक अधजला चेहरा, जिसकी आँखों से खून टपक रहा था।

वो आईने के भीतर से धीरे-धीरे बोलने लगा:
"तेरे जैसे कई आए, पर सबने खुद को खो दिया। सच जानना चाहता है? तो अपना चेहरा देख..."

आईना अचानक दरकने लगा, और आरव को खींचने लगा। उसने खुद को बचाने की कोशिश की, लेकिन एक काली परछाई उसके हाथ में समा गई।

अब आईने में उसका चेहरा दो हिस्सों में बंटा था — एक हिस्सा इंसानी, दूसरा राक्षसी।


डायरियों की गवाही
कमरे के एक कोने में एक पुराना संदूक रखा था। उसमें दबी हुई कई डायरी थीं – सभी पर एक नाम लिखा था:
“जयंत शुक्ला” — आरव के दादा का नाम।

डायरियों में लिखा था:

"तेरहवाँ दरवाज़ा एक रहस्य नहीं, एक जिंदा चेतना है। जो इसे छूता है, वो इसका हिस्सा बन जाता है। हवेली सिर्फ़ ईंट-पत्थर नहीं है, ये एक प्राणी है – और ये भूखा है..."

आरव की धड़कनें तेज़ हो गईं। तभी पीछे से आवाज़ आई:

“तुम भी उसी रास्ते पर हो, बेटा।”

आरव पलटा – सामने उसकी दादी का अक्स खड़ा था। “तुमने मेरी डायरी पढ़ी... पर तुम ये नहीं जानते कि मैं कभी हवेली से बाहर आई ही नहीं...”


साया जो पीछा करता है
दादी की परछाईं धीरे-धीरे धुंए में बदल गई। आरव अब भागना चाहता था, पर कमरे की दीवारें धीरे-धीरे सिकुड़ने लगीं।

फिर सभी आईनों से एक साथ चीखने की आवाज़ें आने लगीं:

“एक और आया... एक और खो गया...”

आईनों के भीतर अब अजीब-अजीब चेहरे उभरने लगे — कुछ इंसानी, कुछ दैत्य जैसे। हर एक की आँखों में डर था।


हवेली की चाल
आरव ने ज़ोर से चिल्लाया, “मुझे बाहर जाना है!”

आईने हिलने लगे। तभी एक आईने में उसे शिवा की झलक दिखाई दी — वो हवेली के एक कमरे में था और दरवाज़ा ढूंढ रहा था।

"शिवा...!" आरव चिल्लाया। मगर उसकी आवाज़ उस आईने में कैद होकर गूंजने लगी।

तभी एक आईना टूट गया — और उसके पीछे एक पतली सी दीवार निकली, जिसमें एक छोटा सा छेद था। छेद के भीतर से वही लड़की दिखाई दी — जो पहले आईने में मुस्कुराई थी।

उसने धीरे से कहा:
“तू चाहता है बाहर जाना? तो किसी और को लाना होगा...”

आरव पीछे हट गया। “नहीं... मैं ऐसा नहीं कर सकता!”

लड़की मुस्कुराई, “तो फिर यहीं रह जाओ — हमेशा के लिए...”


बाहरी दुनिया
शिवा को हवेली के तहखाने की एक पुरानी खिड़की मिली, जिससे एक हल्की रोशनी अंदर आ रही थी। उसने ज़ोर लगाकर दीवार को तोड़ा और एक संकरी सुरंग जैसी जगह में घुस गया।

उसके हाथों में वो कैमरा था, जो आरव का था।

जैसे ही उसने कैमरा ऑन किया — स्क्रीन पर सिर्फ़ एक फ्रेम दिखाई दे रहा था — आरव, काले अंधेरे में खड़ा, धीरे-धीरे कुछ बोल रहा था:

“तेरहवाँ दरवाज़ा झूठ नहीं बोलता... पर अब मैं मैं नहीं रहा।”


🔚 एपिसोड 2 समाप्त
(अगले एपिसोड में: "जिस्म तो मेरा है... पर आवाज़ किसकी है?")