Kaal Kothri - 4 in Hindi Horror Stories by Neeraj Sharma books and stories PDF | काल कोठरी - 4

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काल कोठरी - 4

काल कोठरी ---------(5)

                 वक़्त कभी रुकता नहीं... चलता जाता है... ज़ब रोजा को उसने अफसाना सुनाया था, तो रोजा तो एक दम से काँप गई थी। उसने रात को कितनी दफा हनुमान चलीसा करने को कहा था।

दो दिन बाद -----------------------

सोस्याटी मे हलचल अधिक हो चुकी थी। हर कोई दीपक के घरकी और भाग रहा था।

घटक कुछ हुआ नहीं था। पुलिस आयी थी। दीपक को साथ ले जाने को, समय 7 वजे सुबह।  चाये भी नहीं पी थी। सुप्रडेंट ऑफ़ पुलिस के मुलाजिम थे। " देखिये पुलिस आपसे कुछ सवाल करने को आयी है। "

ढूंढ रही थी दीपक की आँख घोसले को। " उसने पूछ लिया था, " घोसले साहब कहा है... जनाब। "

"वोह साथ ही है " फिर चुप थे सब।

दीपक ने कहा " मै उनको सब बता चूका हूँ। "

"-----हम जानते है। " सुप्रडेंट ने कहा था।

"बोलिये मै कया हेल्प कर सकता हूँ। " दीपक ने रूठी सी आवाज़ मे कहा।

एक अफसर बोला ----" आप कब से जहाँ है। "

सोस्याटी वाला मैनजर भी वही था "सर तीन साल से यही है, अच्छे लोग है।"

लोगों का इकठा होना आम बात नहीं थी। पहली दफा पुलिस आयी थी सोसायटी मे।

चुपी के बाद घोसले जी सामने आये ----" दीपक घबराओ नहीं, किसी बात से.... "

उसे देख कर जान मे जान आयी.... " थैंक्स सर आप साथ है। "

"चलो हॉस्पिटल मे -----"

"कयो सर "

"वो लेडी तुम्हे ही बना रही है मुजरिम.... "

"नहीं सर "

दीपक एक दम से घबरा गया।

"सर, हॉस्पिटल मै उसको देखना चाहता हूँ..." दीपक ने नयी मुसीबत को देखना चाहा।

"कोई बात नहीं ---- " घोसले ने कुछ चिता मे कहा।

अगले एक घंटे मे वो हॉस्पिटल मे थे ------

नर्स के बयान थे ----" रात को मैडम के चेहरे का रूप डरावना हो गया था... हाथ लम्बे हो गए थे। " फिर वो एकाएक चुप हो गई थी। " नाख़ून भी बड़ गए''.... "सर मैं तो डर गयी थी "

सुपर डेंट ने कहा, " हमें cctv पिक दी जाए। "

तभी ऊपर से नीचे को डा हरनाम सिंह नजर आये। वो इसी तौर को आ रहे थे।

सुपरडेंट ने देखने को उस लेडी को कहा ----" डॉ ने कहा नहीं सर, केस सीरियस है.... बेहोशी का इंजेक्शन ला कर आ रहा हूँ। "

" कयो ----" घोसले ने कहा।

"केस हैंडल करना मुश्किल है.... उसमे शैतान है, सर।"

फिर लम्बा सनाटा।

8पुलिस मुलाजिम थे, एक दीपक था।

हॉस्पिटल मे पुलिस की दहशत, हर मरीज पर गलत ही प्रभाव था... कोई अच्छा प्रभाव थोड़ी था।

अब घोसले ने करीब आ कर थोड़ा दूर जाकर दीपक से पूछा ----" समझे हो मेरी बात या नहीं ---- "

दीपक ने फिर कहा ---" नहीं सर। "

घोंसले हस पड़ा। खूब हसा।

"भोले हो मित्र -----"  घोसले ने कहा, " अनुभव है दोस्त मेरा, पुलिस के साथ कभी मित्रता नहीं, देखा तुम तो खुद ही फसने के लिए पिंजरे मे आ धमके। "

दीपक ने फिर दुबारा से थेंक्स किया।

दुपहर होने को थी। दीपक भूखा था। था उनके साथ ही.... " कही दिल्ली छोड़ कर तुम कही नहीं जाओगे। घर जाओ, पता नहीं कब तेरी जरूरत क़ानून को पड़ जाए। "

दीपक घर को जाने लगा ही था, तभी उसके रिजस्टर पर सिग्नेचर करा लिए गए। ये गावाहो का रजिस्टर था। जाते जाते त्रिवेलर पे वो सोचने लगा, सच ही बोला था घोसले ने -----" क़ानून अंधा होता है, कर कोई जाता है, भुगतना किसी को पड़ता है, युजिस्टर बनने की कया जरूरत थी "

कोस रहा था आपने आपको। सोचते सोचते फ्लेट की सीढिया चढ़ रहा था, और नराज था खुद आपसे ही।

(चलदा ) ------------- नीरज शर्मा।