भाग 10: आईने में दूसरी शक्ल
(जहाँ ज़हन के आईने में… सना फिर लौटती है — लेकिन अब वो कोई याद नहीं रही)
अब आरव को पता चल चुका था —
सना कोई मरीज़ नहीं थी।
वो उसकी गाइड थी, उसकी डॉक्टर… और शायद उसकी पहली और आख़िरी मोहब्बत।
पर सच्चाई जानने के बाद, जो डर आरव के भीतर गहराने लगा था,
वो अब सिर्फ़ खोई हुई यादों का नहीं था।
अब सवाल ये था:
“क्या सच में मेरी यादें ही मिटाई गई थीं… या मेरी चेतना का कोई हिस्सा भी चुराया गया था?”
कमरे में वही पुराना आईना था —
जिसमें कभी सना का अक्स दिखता था।
अब उसमें सिर्फ़ आरव था।
लेकिन वो चेहरा जो आईने में दिखता था,
उसे देखकर लगता जैसे वो किसी और को देख रहा हो।
“मैं अब खुद को नहीं पहचानता…”
आरव ने धीमे से बुदबुदाया।
आईने की तरफ़ एक ठंडी साँस निकली —
जैसे खुद ज़हन भी थक चुका था।
उस रात, आरव ने पहली बार अपनी दवाइयाँ नहीं लीं।
डॉक्टर मेहरा की सख़्त हिदायत थी कि “दवा मत छोड़ना” —
पर आरव अब सच को सपनों से देखने को तैयार था।
“अगर सना अब भी कहीं है… तो वो आएगी।”
और वो आई।
सपने में आरव खुद को एक अजीब कमरे में खड़ा देखता है।
चारों तरफ़ आईने ही आईने।
लेकिन कोई भी आईना उसकी तस्वीर नहीं दिखाता —
बल्कि हर आईने में एक ही चेहरा था — सना का।
उसके लंबे बाल, सादा चेहरा… और आँखों में वो तेज़ जो किसी जिंदा इंसान से नहीं,
बल्कि किसी लौटे हुए सच से आता है।
एक आईना सामने था।
पीछे से किसी के कदमों की आहट हुई।
आरव मुड़ा — कोई नहीं था।
पर आईने में देखा —
सना उसके ठीक पीछे खड़ी थी।
उसके चेहरे पर वही चोट के निशान…
जो फाइल नंबर 72 में दर्ज थे।
“तुमने मुझे मिटाने की कोशिश की थी, आरव।”
“लेकिन अब मैं सिर्फ़ एक याद नहीं रही… मैं तुम्हारी चेतना बन चुकी हूँ।”
आरव की साँसें तेज़ हो गईं।
उसने कांपती आवाज़ में कहा:
“मैंने कभी तुम्हें छोड़ना नहीं चाहा…”
सना की परछाई मुस्कराई —
पर उसमें गर्माहट नहीं थी।
“पर तुम्हारे सिस्टम ने… तुम्हारे डॉक्टर ने तय कर लिया कि मैं तुम्हारे दिमाग़ में नहीं रह सकती।”
“इसलिए उन्होंने मुझे तुम्हारी यादों से मिटा दिया।”
“पर अब…”
“मैं लौट आई हूँ। और अगर अब मुझे फिर से मिटाने की कोशिश की गई…”
“…तो इस बार तुम नहीं बचोगे।”
आईना चटक गया।
और आरव की नींद टूटी।
उसका दिल तेजी से धड़क रहा था।
हाथ पसीने से भीग चुके थे।
कमरे में सन्नाटा था —
पर आईने पर कुछ लिखा हुआ था।
खून से।
"Welcome back, Aarav."
वो पीछे हटा।
साँसें उलझ गईं।
क्या ये सपना था?
या अब सना उसकी ज़हन की सीमा से बाहर… हकीकत में लौट आई थी?
आरव अब जान चुका था —
ये लड़ाई अब यादों की नहीं… चेतना की है।
और इस बार…
सना सिर्फ़ अतीत नहीं थी।
वो उसकी सबसे बड़ी हक़ीक़त थी।
अगली कड़ी में पढ़िए:
भाग 11: वो आख़िरी रिकॉर्डिंग
(सना ने अपने गायब होने से पहले जो आख़िरी शब्द रिकॉर्ड किए थे —
वो आरव की ज़िंदगी, और शायद उसकी मानसिक वास्तविकता को भी बदल देंगे)