Rooh - 8 in Hindi Moral Stories by Komal Talati books and stories PDF | रुह... - भाग 8

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रुह... - भाग 8

                                     ८.


बस थोड़ी दूर जाकर एक बस स्टॉप पर रुकती है। पायल खिड़की वाली सीट पर बैठी बाहर लोगों को देख रही थी। तभी उसकी नजर एक परिवार पर टिक गई थी। करीब दस-बारह साल के दो जुड़वा बच्चे अपने पापा से चाट खाने की जिद कर रहे थे। लेकिन उनके पापा फोन पर किसी से बातों में लगे थे और बच्चों की जिद को नजरअंदाज कर रहे थे।

बच्चों की आंखों में वो मासूम चमक थी जो केवल चाट के ठेले पर सजी गोलगप्पों की परात देखकर आ रही थी। लेकिन पिता शायद किसी जरूरी कॉल में उलझे थे, उनका ध्यान बच्चों की ख्वाहिशों की ओर बिल्कुल नहीं था।

बच्चे कभी उनके कुर्ते को खींचते, कभी उनके सामने आकर मुंह बनाते, लेकिन हर बार उन्हें निराशा ही हाथ लगती। कुछ पलों तक वो कोशिश करते रहे, फिर थककर चुपचाप एक तरफ खड़े हो गए। उनके चेहरे पर वो उदासी तैरने लगी जो हर बच्चे की मुस्कान से कहीं ज्यादा गहरी होती है।

उन्हें मायूस खड़ा देख, उनकी मां ने मुस्कराते हुए अपने पर्स से कुछ रुपये निकाले और बच्चों के हाथ में थमा दिए। बच्चों की आंखों में फिर से चमक लौट आई। उन्होंने बिना देर किए सामने वाले ठेले की ओर दौड़ लगा दी। दोने में आलू टिक्की थामे वो उछल-उछल कर अपनी मां को दिखा रहे थे।

मां के चेहरे पर तब एक सुकून था, जैसे किसी छोटी सी जीत से दिल भर गया हो। फोन पर बात खत्म कर जब पिता ने बच्चों को खाते देखा, तो थोड़ी हैरानी से पत्नी से कहते हैं कि,

“यह क्या? बच्चों को बाहर का खाने दे दिया? बीमार पड़ सकते हैं…”

पत्नी शांत लहजे में, लेकिन पूरी समझदारी से कहती हैं कि,
“इतनी सख्ती भी ठीक नहीं होती। दो पल की खुशी के लिए इतनी रोक-टोक ज़रूरी नहीं। हर बार मना कर देना बच्चों के अंदर एक डर और दूरी भर देता है। देखिए ना, जरा सी चाट ने उनके चेहरे पर कैसी खुशी ला दी... और हमारे दिन की थकान भी जैसे मिटा दी।”

पति ने बच्चों को खिलखिलाते हुए देखा, एक-दूसरे से चाट छीनने की नाटक बाज़ी, मुंह पर लगे आलू की चटनी को मां की साड़ी से पोंछना, और फिर मां का झिड़कते हुए भी मुस्कुराना।

उसने अपनी पत्नी की ओर देखा, उसके चेहरे पर फैली तसल्ली और ममता देखकर वह कुछ पल के लिए बिल्कुल शांत हो गया।

“शायद तुम ठीक कह रही हो,” उसने धीरे से कहा, “कभी-कभी ज़रूरत ज़्यादा समझने की नहीं होती।”

बच्चे अब उनके चारों ओर खुशी से चक्कर लगा रहे थे। मां-पापा के बीच हल्की सी मुस्कान तैरने लगी थी वो मुस्कान जो बिना कुछ कहे सब कह जाती थी।

बस की खिड़की से यह सब देख रही पायल की आंखें भर आई थीं। वो खुद को रोक न सकी और गहरी सांस लेकर बाहर देखने लगी, मानो अपनी ही किसी भूली-बिसरी याद को छू रही हो।

अमिता, जो अब तक खामोशी से पायल के पास बैठी थी, ने धीरे से उसका हाथ थाम पूछती है कि, “क्या हुआ पायल? इतनी भावुक क्यों हो गई? किसी की याद आ रही है?”

पायल हल्का-सा सिर हिलाकर बड़ी मुश्किल से कहती हैं कि,
“बस... मां और पापा की एक झलक दिख गई थी उन लोगों में। आज अगर पापा होते, तो शायद मेरी जिंदगी कुछ और होती... या शायद मैं कुछ और होती।”

अमिता पायल का हाथ और कसकर थामते हुए कहती हैं कि, “तू बहुत मजबूत है पायल... और बहुत प्यारी भी। जो प्यार तुझे नहीं मिला, तू उसे हर किसी को देना जानती है... यही सबसे बड़ी बात है।”

पायल ने अमिता की ओर देखा, उसकी आंखों में जैसे सवाल और सूनेपन की एक लकीर सी थी। अमिता ने पायल के चेहरे को छूकर बड़ी नरमी से कहा, "मुझे नहीं बताओगी पायल? क्या बात है जो तुम्हारे चेहरे से मुस्कान ही गायब हो गई?"

बस एक पल...
बस इतना ही कहना था कि पायल की आंखों में बंधे आंसू अब बांध तोड़ चुके थे। कभी किसी को कुछ न कहने वाली पायल, आज अपने ही आंसुओं में बिखर गई थी।

अमिता उसे चुप नहीं करा रही थी, उसने पायल का सिर अपने कंधे पर टिकने दिया। कभी-कभी रोने देना ही सबसे बड़ा सहारा होता है।

बस में आस-पास बैठे लोग चुपचाप उन्हें देख रहे थे। 
कुछ जिज्ञासु, कुछ असहज, कुछ जैसे तमाशा देखने वाले।
अमिता को यह सब अच्छा नहीं लग रहा था, पर वह जानती थी, इस वक्त पायल की राहत सबसे ज़रूरी है।

कुछ देर बाद जब पायल शांत हुई, अमिता ने उसे अपने पानी की बोतल से पानी पिलाया और प्यार से पूछा, "अब अच्छा लग रहा है?"

पायल ने हल्के से सिर हिलाकर हामी भरी, पर उसकी आंखें अब भी थोड़ी नम थीं।

"अब बताओ ना, क्या हुआ?"
अमिता की आवाज़ में दोस्ती से भी ज़्यादा मां जैसी परवाह थी।

पायल कुछ देर चुप रही, फिर नम हुई आवाज़ में रात की सारी बातें कह सुनाई, 
कैसे उसने मां से दूसरी शादी करने की बात की थी, और कैसे सुनीति जी बिना कुछ बोले कमरे से चली गई थीं।
अब तक उनसे बात भी नहीं हो पाई थी, और उन्होंने उसका फोन तक नहीं उठाया।

सारी बात सुनकर अमिता कुछ पल सोचती रही, फिर गंभीर होकर कहती हैं कि, "देख पायल, तूने जो कहा वो गलत नहीं था, पर कहने का तरीका और वक्त दोनों ग़लत थे।"

"पर मैं तो बस मां की खुशी चाहती हू ना... क्या मेरी ये चाह भी ग़लत है?" यह कहते हुए पायल की आवाज़ भर्राई हुई थी।

"नहीं पगली, चाह तो बिल्कुल सही है। पर कुछ जख्म होते हैं जो वक्त मांगते हैं, और जब कोई उन्हें बिना इजाज़त छू देता है तो वो फिर से हरे हो जाते हैं।"

पायल कुछ देर तक खामोश रहकर धीरे से कहती हैं कि,
"तो अब मैं क्या करू? कैसे मनाऊं मां को?"

अमिता ने उसका हाथ अपने हाथ में लेते हुए कहा,
"कुछ मत कर अभी। बस उन्हें थोड़ा समय दे... और अपना प्यार वैसे ही जताती रह, जैसे तू जताना जानती है। जो ममता तू महसूस करती है न, वो सुनीति आंटी को भी जरूर महसूस होगी। प्यार कभी छुपता नहीं, वक्त के साथ ज़रूर बोलने लगता है।" पायल हल्के से सिर हिलाती है, अबकी बार थोड़ा हल्कापन था उसकी सांसों में।

बस अपनी रफ्तार में आगे बढ़ रही थी, पर
पायल के दिल की उलझने अब धीरे - धीरे सुलझने लगी थीं...

क्रमशः