(सनी, जो घर लौटते समय घने और सुनसान जंगल से गुजर रहा था, अचानक एक बच्चे को तेंदुए से बचाते हुए खुद घायल हो जाता है। तभी वही बच्चा तेंदुए को गोली मारकर सनी की जान बचा लेता है। पूछताछ करने पर पता चलता है कि बच्चा जंगल में अकेला रहता है और अपना नाम भी नहीं जानता, पर रहस्यमय ढंग से सनी और उसकी रक्षा से जुड़ा हुआ महसूस करता है। बच्चे में अद्भुत शक्तियाँ और नागों से जुड़े रहस्य उजागर होने लगते हैं।
निशा मौके पर पहुंचती है और वह भी उस बच्चे की उपस्थिति से विचलित हो जाती है। तीनों घर लौटते हैं, पर रास्ते में सनी को अजीब संकेत मिलने लगते हैं। जैसे ही वे घर पहुंचते हैं, सनी को एक कॉल आता है — वह कॉल असली निशा की होती है, जो पूछती है कि वह कहां है। तब सनी चौंककर देखता है कि कार की पिछली सीट पर न तो निशा है और न ही वह रहस्यमय बच्चा अब आगे) ।
अधूरी विदाई
सुबह की पहली किरण जैसे ही कमरे में दाखिल हुई, सनी की आंखें खुल गईं।
लेकिन उसकी चेतना अब भी रात के साए में उलझी थी —
तेंदुआ, वो रहस्यमय बच्चा, उसकी आंखों में नीली रोशनी… और निशा की वह उपस्थिति — जो अचानक आई थी और उतनी ही रहस्यमयी ढंग से गुम भी हो गई।
पीछे से एक जानी-पहचानी आवाज़ आई —
"आज मॉर्निंग वॉक पर नहीं जाना?"
सनी चौंका नहीं — मगर कुछ महसूस ज़रूर हुआ।
निशा आरती की थाली लिए मंदिर की ओर बढ़ रही थी। लौ की रौशनी उसके चेहरे पर चमक रही थी, पर सनी को उस चमक में एक अजनबी साया दिखा…
जैसे ये वही चेहरा है — पर आत्मा कोई और हो।
वो कुछ कहना चाहता था, पर उसकी नज़र अचानक निशा के पेट पर जा टिकी।
डिलीवरी अब दूर नहीं थी।
वो चुप रहा।
निशा मंत्र पढ़ रही थी, पर वह ध्वनि…
वो पारंपरिक संस्कृत जैसी नहीं थी।
कुछ अलग… कुछ गहराई में गूंजता हुआ —
जैसे नागों की कोई प्राचीन लिपि हो।
सनी के होंठों से फुसफुसाहट निकली —
"अब जो भी है… इसका सामना मुझे ही करना होगा।"
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"मैं सोच रहा था…" उसने कुछ देर बाद कहा,
"…तुम कुछ दिनों के लिए प्रतापनगर चली जाओ।"
निशा ने पूजा रोक दी।
"क्यों?"
"मां कह रही थीं… उन्हें तुम्हारी चिंता है। तुम्हारा और बच्चे का।"
"पर सरला काकी ध्यान रखती भी तो मेरा?"
"परिवार की बात ही कुछ और होती है।"
निशा ने गहरी सांस ली —
"नहीं… मैं आपके बिना नहीं रह सकती।"
सनी का लहजा सख्त हो गया —
"बात को समझो। तुम्हें देखभाल की ज़रूरत है।"
थोड़े मौन के बाद निशा ने कहा —
"ठीक है… लेकिन रोज़ फोन करना होगा।"
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पैकिंग के दौरान, सनी कुछ ज्यादा ही जल्दी में था —
जैसे किसी अदृश्य डर से भाग रहा हो।
"अभी तो तीन घंटे हैं…" निशा बोली,
"…आप मॉर्निंग वॉक कर आइए।"
सनी थम गया।
"हां… शायद घबरा गया था।"
निशा उसके पास आई, उसके माथे पर हाथ फेरा।
वो वही स्पर्श था… मगर उस स्पर्श में भी कुछ बदल चुका था।
क्या ये वही निशा है…?
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घर से निकलते वक्त, गार्ड ने हल्के संकोच के साथ कहा —
"मैडम को मैंने कल… मतलब…"
फिर चुप हो गया।
सनी ने ध्यान नहीं दिया।
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कार में सफर चुपचाप बीता।
"मैं तुम्हें बहुत याद करूंगा," सनी ने कहा।
निशा बस हल्की-सी मुस्कराई… वो भी बिना उस गर्मजोशी के, जो उसका स्वभाव था।
जब बस आई, सनी ने उसका बैग उठाया —
"मिनल स्टेशन पर लेने आ जाएंगी। टाइम से खाना खा लेना।"
गले लगने की कोशिश पर निशा एक पल को झिझकी —
जैसे उसे याद नहीं आया हो कि यह स्पर्श कैसा होता है।
फिर एक फीकी “हां” के साथ गले लगी।
बस चली।
सनी की नज़र खिड़की पर टिकी रही…
पर निशा की झलक अब नहीं दिख रही थी।
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अचानक दृश्य बदलता है — बस के भीतर।
कंडक्टर हड़बड़ाकर चिल्लाया —
"साहब! वो औरत… जिसकी सीट थी… वो कहीं नहीं है!"
ड्राइवर ने ब्रेक मारा —
"उतर गई क्या?"
"किधर से? दरवाज़ा तो खुला ही नहीं!
मैंने खुद देखा था — वो आदमी उसे चढ़ाकर गया था। पर अब… कोई नहीं है!"
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उसी पल — सनी का घर।
धूप की किरणें उसी खिड़की से भीतर झांक रही थीं।
निशा… अपने ही बिस्तर पर सो रही थी।
चेहरा शांत… साँसें धीमी…
जैसे किसी गहरे trance में हो।
और कमरे के एक कोने में…
एक परछाई खड़ी थी।
धुंधली… मगर मौजूद।
उसकी आँखें बिना पलक झपकाए निशा को निहार रही थीं।
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यह कौन थी जो बस में थी?
और जो अब बिस्तर पर है… क्या वह निशा है?
या कोई और…क्या निशा सुरक्षित है?
जानने के लिए पढ़ते रहिए "विषैला इश्क "।