श्री गुरु नानक देव जी ने अपने हाथों से उन साधुओं को भोजन दाल रोटी और वस्त्र अपने हाथों से दिये।
फिर भी श्री गुरु नानक देव जी कुछ गंभीर रहने लगे। वे हर वक्त प्रभु सै सुरति लगाए कुछ विचारों में लीन रहते।एक दिन उनके पिता जी
ने गांव के वैध को बुला लिया।
कुछ देर बाद उसने श्री गुरु नानक देव जी को हाथ दिखाने के लिए कहा।श्री गुरु नानक देव जी ने जब अपना हाथ आगे बढ़ाया तो तो वो नाड़ी पकड़ कर देखने लगा।
श्री गुरु नानक देव जी ने वैध की और देखा और मुस्कुरा कर कहने लगे। वैध जी आप क्या देख रहे हैं। मेरे शरीर में कोई रोग नहीं । जो वास्तविक रोग है वह आपकी समझ के बाहर है।
जब वैध ने श्री गुरु नानक देव जी की बात सुनी तो उसने कहा नानक को कोई रोग नहीं है वह बिल्कुल ठीक है, वास्तविक दुःख है उसका मेरे पास कोई इलाज नहीं है।
तब श्री गुरु नानक देव जी के पिता ने शीघ्र श्री गुरु नानक देव जी के लिए नौकरी ढूंढ ली और
उन्हें सुल्तानपुर लोधी बुला लिया श्री गुरु नानक देव जी वहां पहुंचने पर उन्हें नवाब दौलत ख़ां लोधी के मोदी लगवा दिया।नवाब ने उनका वेतन एवं रसद नियत कर दी।
श्री गुरु नानक देव जी के स्वाभाव के मुताबिक होने के कारण उन्होंने अपने नये कार्य को बड़े उत्साह से आरंभ किया।
यहां वह पूरा तोलते थें और प्रत्येक व्यक्ति से प्रेम और आदर भाव से पेश आते थे।
उनके समक्ष बड़ा छोटा सब एक समान थे।
विन्रम स्वभाव होने के कारण वह अपने भाग की रसद और वेतन का भाग निर्धानों में मुफ्त में बांट देते थे।
वह अपना दायित्व बडी योग्यता से निभा रहे थे,
और नवाब भी उनके काम से बहुत खुश हुआ।
श्री गुरु नानक देव जी अपने इस काम के दौरान प्रभु भक्ति की ओर से पिछे नही हटे थे। वह प्रातः काल उठकर वेई नदी पर चले जाते थे।
और स्नान करते थे और फिर एक बेरी के पेड़ के नीचे बैठकर प्रभु से सुरति लगाकर अन्तर्ध्यान हो जाते थे। फिर वह प्रभु की प्रशंसा में मधुर गीत गाते और सबको कृतार्थ करते।
बटाला का रहनेवाला और पखोके रंधावे का पटवारी बाबा मूलचंद,श्री जैराम का परिचत था।उनकी एक पुत्री सुलखनी बड़ी सुंदर और सुशील थी श्री जैराम ने रिश्ते की बात चलाईं तो बाबा मूलचंद तुरंत सहमत हो गए , क्योंकि मोदीखाने के अधिकारी से ऊंचा रिश्ता अन्य कौन सा हो सकता है था।
जब श्री गुरु नानक देव जी से विवाह बारे में पुछा तो उन्होंने ने कहा आप मुझे कोई संन्यासी समझते हो ?
गृहस्थ आश्रम में रहकर भी प्रभु की भक्ति हो सकती है , और जन सेवा की जा सकती है लेकिन मेरा पहला कर्तव्य अपनी पत्नी की तरफ होगा और फिर किसी अन्य तरफ।
श्री गुरु नानक देव जी की बारात भी विलक्षण थी। इसमें यदि राय बुलार जैसे बड़े-बड़े धनवान शामिल थे तो साथ ही लंगोटियो वाले साधु तथा भगवे कपड़ों वाले संत भी मौजूद थे।
बटाले के लोग ऐस बारात को देखकर हैरान हो रहे थे। जब विवाह धूमधाम से हो गया तो श्री गुरु नानक देव जी ने माता सुलखनी को लेकर सुल्तानपुर लोधी आ गए।
क्रमशः ✍️