रात…
अभिमान अपने फ्लैट में अकेला था। हॉल की हल्की रौशनी में वह बियर की बोतल लिए बैठा था। उसकी आंखों के सामने बस एक ही चेहरा बार-बार आ रहा था — आन्या का।
गुस्से में उसने बोतल ज़मीन पर दे मारी।
"क्यों हो रहा है ये मेरे साथ? वो लिटल गर्ल मुझसे बहुत छोटी है… फिर भी… फिर भी..."
"ओ कैसे-कैसे क्यूं हो रहा है ए मेरे साथ... ओ मुझसे प्यार पर कैसे…"
वो बड़बड़ाता रहा, चीखता रहा।
थककर थोड़ी देर बाद अपने बिस्तर पर गिर पड़ा। पर्स से वो स्टिकर निकाला जो आन्या ने उसकी बाइक पर चिपकाया था:
"थैंक्यू मिस्टर एंग्री यंग मैन
यू खडूस मैन, आई लव यू!"
उसने धीमे से आंखें मूंदी।
"कभी नहीं हुआ ऐसा… ये एहसास… ये बेचैनी… ये क्यों हो रहा है मुझे?
आन्या क्यूं आई हो मेरी जिंदगी में… तुम छोटी हो… बहुत छोटी।
ये प्यार नहीं है… शायद अट्रैक्शन हो…"
अगली सुबह।
अभिमान न रेस्टोरेंट गया, न किसी से मिला। दो दिन बाद जब वह घर पहुँचा तो सरस्वती जी ने गुस्से में कहा,
“कहाँ थे दो दिन से? और ये हालत क्या बना रखी है?”
अभिमान चुपचाप अपने कमरे की ओर बढ़ गया। तभी अमित जी की सख़्त आवाज़ आई,
“फ्रेश होकर आओ, बात करनी है।”
कुछ देर बाद वह बाहर आया। सरस्वती जी नींबू पानी ले आईं। अभिमान की आंखें लाल थीं, चेहरा उतरा हुआ और बेहद थका हुआ।
अमित जी बोले,
“अभि, मैंने और तेरी माँ ने मिलकर तेरी और शाइना की सगाई…”
इतना ही सुना था कि उसके सामने आन्या का मासूम चेहरा घूम गया। दिल तेजी से धड़कने लगा।
“… तोड़ दी।”
अमित जी मुस्कुराए।
अभिमान स्तब्ध रह गया। उसकी निगाहें कभी माँ की तरफ़, कभी पापा की तरफ़ घूमती रहीं।
“अब खुश हो ना? टेंशन मत ले… तेरी खुशी हमारे लिए सबसे ज़्यादा मायने रखती है।”
अभिमान ने दोनों को गले लगा लिया।
“डैड… आई लव यू।”
अमित जी ने चुटकी ली, “क्या कहा तूने?”
“कुछ नहीं…”
अभिमान मुस्कुरा दिया।
कुछ देर बाद उसने माँ से पूछा,
“मॉम… आपका और डैड का एज डिफरेंस कितना है?”
सरस्वती जी मुस्कुराईं,
“मैं इनसे पाँच साल छोटी हूँ।”
अभिमान कुछ नहीं बोला, मगर उसकी आँखों में जैसे कोई दबा हुआ सवाल चमक रहा था।
वो कमरे में गया। और… उसके ख्यालों में बस एक ही चेहरा था — आन्या।
वो कुछ तय कर चुका था।
अगले दिन।
सुबह-सुबह अभिमान तैयार होकर नीचे आया।
सरस्वती जी बोलीं, “इतनी सुबह-सुबह कहां जा रहे हो?”
“सुकून लेने…”
बस इतना कहकर वो बुलेट स्टार्ट कर चला गया।
कुछ देर में रेस्टोरेंट पहुँचा। राघव ने देखा तो पूछा,
“दो दिन से कहां था?
वो लिटल गर्ल आई थी क्या?”
“हां, आई थी। सुबह से दोपहर तक तेरा इंतज़ार करती रही… फिर उदास होके चली गई।
कल भी आई थी, रेस्टोरेंट बंद होने तक बैठी रही।”
“आज नहीं आई?”
अभिमान की आवाज़ में घबराहट थी।
“कल बहुत कमजोर लग रही थी… अब पता नहीं क्या हुआ होगा।”
दिन बीत गया। शाम हुई… रात हो गई।
लेकिन आन्या नहीं आई।
“टाइम हो गया, चल घर चल,” राघव बोला।
“वो क्यों नहीं आई?”
अब बेचैनी डर में बदल रही थी।
“पता नहीं!”
फिर चिढ़ते हुए बोला,
“उसका अड्रेस चाहिए?”
“हाँ।”
अभिमान की आवाज़ सख़्त थी।
“मैं डिटेक्टिव नहीं हूँ, समझा?”
अगले दिन।
राघव ने खुद ही बताया,
“वो लड़का देख — स्कूल यूनिफॉर्म में… वही है आन्या का भाई।”
अभिमान झिझकते हुए उसके पास गया,
“हाय… तुम आन्या के भाई हो ना?”
“आपको कैसे पता?”
अक्षत ने नजरें चुराईं।
“आन्या कहाँ है?”
“वो… अस्पताल में है।”
अभिमान कांप गया,
“क्या? क्या हुआ उसे?”
“आपको क्यों बताऊँ?”
अक्षत झल्लाया।
“प्लीज़… किस अस्पताल में है?”
“…सिटी हॉस्पिटल।”
उसी वक्त तूकाराम जी आ गए और अभिमान तेज़ी से निकल गया।
राघव ने देखा और पूछा,
“क्या हुआ?”
“वो… हॉस्पिटल में है…”
“चलो रात को चलते हैं… देख लेना अपनी ‘लिटल गर्लफ्रेंड’ को।”
“लिटल गर्लफ्रेंड?”
अभिमान ने घूरा।
राघव हँसते हुए निकल गया।
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