Ishq aur Ashq - 57 in Hindi Love Stories by Aradhana books and stories PDF | इश्क और अश्क - 57

Featured Books
  • The Devil (2025) - Comprehensive Explanation Analysis

     The Devil 11 दिसंबर 2025 को रिलीज़ हुई एक कन्नड़-भाषा की पॉ...

  • बेमिसाल यारी

    बेमिसाल यारी लेखक: विजय शर्मा एरीशब्द संख्या: लगभग १५००१गाँव...

  • दिल का रिश्ता - 2

    (Raj & Anushka)बारिश थम चुकी थी,लेकिन उनके दिलों की कशिश अभी...

  • Shadows Of Love - 15

    माँ ने दोनों को देखा और मुस्कुरा कर कहा—“करन बेटा, सच्ची मोह...

  • उड़ान (1)

    तीस साल की दिव्या, श्वेत साड़ी में लिपटी एक ऐसी लड़की, जिसके क...

Categories
Share

इश्क और अश्क - 57



---

पूरा चाँद आसमान में बहुत गुमान से फैला है। और उसी चाँद की चाँदनी में, प्रणाली आराम से अपने कक्ष की खिड़की पर बैठकर ये सोच रही थी कि अब उसे एक झूठी शादी नहीं करनी पड़ेगी।
वो वर्धांन के बारे में सोचकर भी मुस्कुरा उठी... उसे अच्छा लग रहा था।

दूसरी तरफ, अपने किए गए फैसले से परेशान वर्धांन खुद को कहीं सुकून नहीं दे पा रहा था।
आख़िर उसे एक मासूम को अपने प्रेमजाल में फँसाना है — यही सोचकर बेचैनी और बढ़ गई थी।
वो आसमान में एक हवाई गश्त पर निकल पड़ा।

उसके वो विशाल, सुनहरे और गुदगुदे पंख हवा में फैलकर उसे उड़ा ले गए।
रात की चाँदनी और शीतल हवा भी उसे राहत न दे सकीं।

वर्धांन (परेशान होकर):
“क्या करूँ मैं इस बेचैनी का....”

और उसने उड़ने की गति और तेज़ कर दी।
उड़ते-उड़ते, एक जगह आकर वह रुका।

उसने अपने कक्ष के बाहर बैठी प्रणाली को देखा...
और अपने पंखों को धीरे-धीरे थाम लिया।

वो वहीं एक बादल पर बैठ गया...
और प्रणाली को निहारने लगा।

उसकी वो चाँदी-सी चमकती रंगत,
चाँद की रोशनी पड़ने से जैसे किसी चमकते तालाब में चाँद की छवि बन रही हो।
हवा में उड़ते उसके काले, घने और लंबे बाल यूँ लहरा रहे हैं जैसे कोई मनमौजी बच्चा अटखेलियाँ कर रहा हो।
उस पर, पूरे चाँद की चाँदनी उसकी आँखों से होकर गालों और फिर होठों को छूती हुई...
खुद अपनी रोशनी कम कर रही थी।

ये नज़ारा देखकर वर्धांन के बेचैन दिल को सुकून की कई साँसें मिलीं।
वो वहीं बैठा, बस उसे निहारता रहा।
और प्रणाली ये सोचकर मुस्कुरा रही थी कि काश...
काश वो वर्धांन को भी अपनी ये खुशी बता पाती।

वर्धांन (राहत की साँस लेते हुए, मन में):
“तुम कितनी मासूम हो...”

तभी वहाँ सय्युरी अपने पंख फैलाते हुए पहुँची।

सय्युरी:
“तो तुम यहाँ हो???”

(वो वर्धांन को उस बादल पर बैठा देख कर बोली)

वर्धांन (चौंकते हुए):
“त... त... तुम? यहाँ???”

(वो हड़बड़ा गया)

सय्युरी (इधर-उधर देखते हुए):
“क्या देखकर मुस्कुरा रहे थे???”

उसने वहाँ देखा जहाँ वर्धांन की नज़र थी...

वर्धांन (जल्दी में):
“तुम इतनी रात को यहाँ कैसे? और क्यों...? कुछ हुआ है क्या?”

सय्युरी (हँसते हुए):
“इतने सवाल, वो भी एक साथ?
वैसे भी... वर्धांन जहाँ भी होगा, सय्युरी उसे ढूंढ ही लेगी।”

(वो मुस्कराई)

“और अब सामने से हटो... मुझे भी देखने दो।”

(उसने वर्धांन को हटाने की कोशिश की)

लेकिन वर्धांन हटा नहीं।

वर्धांन:
“मुझे कुछ ठीक नहीं लग रहा था...
पिताजी ने मुझे बहुत डाँटा आज। इसलिए मन दुखी था।”

(उसने बात टालते हुए कहा, ताकि सय्युरी की नज़र प्रणाली पर न पड़े)

सय्युरी (गुस्से में):
“क्या??? गरुड़ शोभित ऐसा कैसे कर सकते हैं!
मैं उनसे जवाब लेकर रहूँगी...
मेरे वर्धांन को कोई कुछ नहीं कह सकता, गरुड़ शोभित भी नहीं!”

(वो ग़ुस्से से हवा में उड़ चली)

वर्धांन ने एक नज़र प्रणाली को देखा...
फिर सय्युरी के पीछे निकल पड़ा।

वर्धांन (पीछे से):
“और मेरी बात तो सुनो!
इतना भी कुछ नहीं हुआ...”

(वो उसे रोकने के लिए कहा और साथ उड़ गया)


---

अगली सुबह...

प्रणाली (खुद से):
“आज वर्धांन से मिलकर उसे राज्य-अभिषेक के बारे में बता देती हूँ।
उसके बाद मिलना मुश्किल हो जाएगा।”

(वो यही सोचकर तैयार हो रही थी)

फिर थोड़ी देर में खुद से ही बोली...

प्रणाली:
“मेरे चाहने से क्या होता है...
उसे कैसे पता चलेगा कि मैं उससे मिलना चाहती हूँ?
अगर वो न मिलना चाहे तो...?
वैसे भी, पिछली बार वो नाराज़ था...”

(ये सोचकर वह मायूस हो गई और वहीँ बैठ गई)

तभी माला आई...

माला:
“राजकुमारी, आप चलेंगी नहीं? आपकी पालकी तैयार है!
और कल के बाद तो वैसे भी निकलना मुश्किल होगा।”

प्रणाली:
“किसके लिए जाऊँ? बाग में... या शिकार पर?”

माला (हैरान होकर):
“जी???”

प्रणाली (धीरे से मुस्कुराकर):
“कुछ नहीं... चलो, चलते हैं...”

वो और उसकी सखियाँ जंगल पहुँच गईं, और शिकार ढूँढने लगीं।

प्रणाली (चौंकते हुए):
“अरे ये क्या... एक काला हिरण???”

“सब शांत रहना, हमें आज इसी का शिकार करना है।”

(उसने बाण उठाया और निशाना साधा)

वो हिरण धीरे-धीरे वहीं चहल-कदमी कर रहा था...

प्रणाली ने तीर छोड़ा...
तीर सीधा वहीं जा लगा, लेकिन देर हो चुकी थी —
हिरण वहाँ से भाग गया।

सखी:
“कोई बात नहीं, हम कोई दूसरा शिकार ढूंढ लेते हैं।”

प्रणाली (झल्लाकर):
“नहीं! मुझे यही चाहिए...!
जाओ सब, उसे ढूंढो...
मुझे वही शिकार चाहिए!”

सब इधर-उधर बिखर गए।

प्रणाली हाथ में बाण लिए अपने शिकार को ढूंढ रही थी...
पर ये क्या?

ढूंढते-ढूंढते वो उसी जगह पहुँच गई जहाँ वो और वर्धांन अक्सर मिला करते थे...

और कमाल ये —
कि वर्धांन सचमुच वहीं बैठा था, एक पत्थर पर...
मुँह लटकाए...

प्रणाली की आँखें फटी की फटी रह गईं।

प्रणाली (आश्चर्य से):
“क्या ये... सच में... तुम हो???”

वर्धांन ने अपनी नज़रें उठाईं।

वो भागकर गया...
और प्रणाली को कसकर अपने सीने से लगा लिया।

प्रणाली (हैरान होकर):
“क्या हुआ...? सब ठीक तो है?”

वर्धांन (बंद आँखों से, राहत की साँस लेते हुए):
“हम्म... अब सब ठीक है।”

(उसने प्रणाली को और कसकर जकड़ लिया)

प्रणाली ने हटना चाहा... पर हट नहीं सकी।

वर्धांन (धीरे से):
“कुछ देर ऐसे ही रहो न...
सुकून मिलता है।”

प्रणाली ने हटने की कोशिश रोक दी...

कुछ देर बाद...

प्रणाली:
“अब बताओ... क्या हुआ था तुम्हें?”

वर्धांन (धीरे से):
“अगर आगे चलकर मुझसे कोई गलती हो जाएगी तो...
क्या तुम मुझे माफ कर दोगी?”

प्रणाली (थोड़ा रुक कर):
“ज़रूर... लेकिन अगर वो सच में एक गलती हुई तो...”

...

(To be continued...)


--