Super Villain Series - Part 14 in Hindi Mythological Stories by parth Shukla books and stories PDF | Super Villain Series - Part 14

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Super Villain Series - Part 14

🔥 Super Hero Series – Part 14: अग्नि द्वार का रहस्य

🌌 प्रारंभ – एक अनजानी पुकार
अर्णव ठंडी हवाओं के बीच एक खंडहरनुमा पहाड़ी पर खड़ा था।
 सामने एक बड़ा गोल पत्थर, जिसमें तीन अग्निलकीरें खुदी थीं — त्रैत्य का चिन्ह।
अचानक वही रहस्यमयी चिट्ठी, जो आकाश से आई थी, खुद-ब-खुद जल उठी।
पर वो राख नहीं बनी…
 बल्कि हवा में एक वाक्य उभरा:
“वास्तविक युद्ध तब शुरू होता है, जब तुम अपने शत्रु को समझने की हिम्मत रखते हो।”
फिर अचानक ज़मीन काँपी — और पत्थर दरक गया।
उसके नीचे एक जलता हुआ द्वार प्रकट हुआ — अग्नि द्वार।

🚪 अग्नि द्वार – जहाँ समय नहीं चलता
अर्णव ने जैसे ही द्वार पार किया, सारी ध्वनियाँ गायब हो गईं।
 ना हवा, ना हलचल… बस एक शांत, चमकदार अंधकार।
यह एक तांत्रिक समय-कोष था — जहाँ न अतीत पूरी तरह बीता था, न भविष्य पूरी तरह बना।
अर्णव के सामने दृश्य बदलने लगे…

🕉️ त्रैत्य का जन्म – एक शापित समागम
अब अर्णव एक गुफा में खड़ा था — लेकिन ये उसकी वर्तमान नहीं, अतीत की गुफा थी।
वहाँ तीन महा-असुर — रावण, कालनेमि, और दंतवक्त्र मृत्यु की अंतिम साँसें ले रहे थे।
तीनों घायल, लहूलुहान, परंतु मंत्रों का जाप कर रहे थे:
“ॐ मृत्युंजय मंत्र विलोम… आत्म-संयोग सिद्धि…”
उनकी आत्माएँ जलती हुई अग्नि में समाहित होने लगीं।
उनका उद्देश्य था – अमरता नहीं, प्रभाव का अमर होना।
तीनों आत्माएँ जुड़कर बनीं – त्रैत्य।
एक काली छाया उभरी… दस चेहरों की… पर एक आत्मा की।
तभी एक राक्षसी वाणी गूँजी:
“मैं त्रैत्य हूँ…
 काल से परे…
 धर्म की छाया से उठी…
 और अधर्म की अग्नि में पली।”
अर्णव स्तब्ध रह गया।
 यह उसका पिता था?

🧬 त्रैत्य का पहला वाक्य – शाप या चेतावनी?
त्रैत्य ने जब पहली बार जन्म लिया, उसका पहला वाक्य था:
“जो मुझे समझेगा, वही मुझे हराएगा। जो मुझे मारेगा, वो खुद मेरा हिस्सा बन जाएगा।”
उस वाक्य ने अर्णव को झकझोर दिया।
“क्या यही कारण है कि मुझे रोका जा रहा है?”
 “क्या मैं उसे हराने के बजाय खुद उसमें बदल जाऊँगा?”

💭 भावनाओं की गहराई
फिर दृश्य बदला।
 एक और झलक आई — एक स्त्री की।
रंभा नाम की एक राक्षसी, जो त्रैत्य को एक बार प्रेम करती थी, और उसी से अर्णव का जन्म हुआ।
पर त्रैत्य को ये कभी पता ही नहीं चला।
रंभा ने अर्णव को छिपाकर साधुओं को दे दिया, ताकि वो एक दिन अपने पिता को रोक सके।
और यह बात त्रैत्य को अब तक नहीं मालूम…

🔥 अग्नि द्वार से बाहर – पर बदला हुआ
अर्णव जब बाहर निकला, उसका चेहरा अलग था।
पहले उसमें गुस्सा था।
 अब… समझदारी थी।
उसने मन में कहा:
“मैं अब त्रैत्य को मारने नहीं…
 बदलने के लिए लड़ूँगा।”
“अगर मैं सिर्फ मारूँगा, तो मैं भी त्रैत्य बन जाऊँगा।”

📜 पर क्या ये आसान होगा?
त्रैत्य कोई ऐसा असुर नहीं जो तर्क समझे।
 वो दर्द, पीड़ा और अपमान का जीवित रूप है।
और सबसे बड़ा रहस्य अभी तक अज्ञात है —
 कि अगर अर्णव उसे हराता है, तो क्या वो खुद को खो देगा?
या अगर वो समझाता है, तो क्या त्रैत्य बदलेगा भी?
🔮 अब आगे क्या?
Part 15 – "मायावी नगरी: छल की भूमि"
 अर्णव अब पहुँचेगा एक ऐसी जगह, जहाँ हर चीज़ भ्रम है —
 हर चेहरा नकाब है…
 और त्रैत्य
🔥 Super Hero Series – Part 14: अग्नि द्वार का रहस्य
🔥 Super Hero Series – Part 14: अग्नि द्वार का रहस्य