कहानी का नाम: "अकबर का दरबार और महंगाई की मार"
(यह कहानी काल्पनिक है, केवल हँसी-मज़ाक हेतु)
1 दिन : गैस का दाम और महिला दरबारी
(दरबार का दृश्य... महाराज सिंहासन पर बैठे हैं, बगल में बीरबल, बाकी दरबारी मौजूद। तभी एक महिला दरबारी ग़ुस्से में दरबार में आती है…)
महिला दरबारी:
"महाराज! गैस सिलेंडर 1500 रुपये का हो गया है। अब रोटियाँ सेंकने से ज़्यादा जेब जल रही है!"
अकबर (हैरान होकर):
"हे अल्लाह! बीरबल, ये क्या सुन रहा हूँ मैं? गैस अब रसोई की चीज़ नहीं रही, अमीरों का शोपीस बन गई है?"
बीरबल (मुस्कराते हुए):
"महाराज, अब तो लोग दाल में तड़का नहीं लगाते, तड़के में उधारी लग जाती है।"
महिला दरबारी:
"अब तो सोचती हूँ, चूल्हा जलाऊं या ऑनलाइन खाना मंगा लूं — लेकिन वहाँ भी डिलीवरी चार्ज देख के भूख भाग जाती है!"
अकबर (ठहाका लगाते हुए):
"बीरबल, जल्दी कोई उपाय निकालो नहीं तो दरबार की रसोई में सिर्फ 'उम्मीद' पकेगी!"
बीरबल:
"महाराज, अब से हर दरबारी को एक ईंट, एक माचिस और थोड़े लकड़ी दे दो — गैस नहीं तो 'स्वदेशी स्टोव' ही सही!"
दिन 2: पेट्रोल की मार
(अगले दिन... दरबार में एक दरबारी हांफते हुए आता है)
दरबारी:
"महाराज! मेरा स्कूटर तो पहले से पुराना था, अब पेट्रोल के भाव सुनकर वो भी सदमे में है!"
अकबर:
"क्यों? कितना हुआ?"
दरबारी:
"130 रुपये लीटर! अब स्कूटर स्टार्ट करने से पहले मैं Google से पूछता हूँ — चलना ज़रूरी है क्या?"
बीरबल (हँसते हुए):
"महाराज, अब तो लोग बाइक नहीं चलाते, वो शोपीस हो गई है। मोहल्ले में जिसे बाइक स्टार्ट करते देखो, समझ जाओ – या तो बैंक लूटा है या लॉटरी लगी है!"
दिन 3: सब्ज़ी महँगी – किसान दरबार में
(तीसरे दिन एक किसान सिर पर टोकरी लिए आता है)
किसान:
"महाराज! टमाटर इतना महँगा हो गया है कि अब चोरी होने लगा है। रात को कुत्ते नहीं, टमाटर की रखवाली कर रहा हूँ!"
अकबर (दंग रहकर):
"टमाटर अब तिजोरी में रखो, सब्ज़ी मंडी नहीं, ज्वेलरी शॉप बन चुकी है!"
बीरबल:
"अब सब्ज़ी वाले किलो नहीं बेचते महाराज, पूछते हैं — 'आपका बजट बताइए, उसी हिसाब से दिखाता हूँ!'"
दिन 4: मोबाइल लोन और EMI की मुसीबत
एक दरबारी:
"महाराज! मैंने नया मोबाइल लिया है... कैमरा तो चाँद तक ज़ूम करता है, लेकिन जेब खाली हो गई है। चार्जर भी अलग खरीदना पड़ा!"
अकबर:
"तो अब तुम मोबाइल में वीडियो बनाओगे या राशन कार्ड?"
बीरबल:
"महाराज, आजकल फोन स्मार्ट है, लेकिन EMI देखकर लोग बेहोश हो जाते हैं!"
दिन 5: सोशल मीडिया का संकट
महारानी (नाराज़ होकर):
"महाराज! बीरबल ने मेरी बिना फ़िल्टर की फोटो इंस्टाग्राम पर डाल दी है!"
अकबर (डरकर):
"बीरबल! ये तो शाही अपमान है!"
बीरबल:
"महाराज, फिल्टर लगाता तो लोग पहचानते नहीं। फिर तो शिकायत ये होती कि ‘ये मैं नहीं, कोई और है!’"
दिन 6: बिजली का बिल – रोशनी या होश उड़ा दीजिए
(दरबार में एक दरबारी बिल का काग़ज़ लेकर दौड़ता हुआ आता है…)
दरबारी:
"महाराज! घर का बिजली बिल इतना आया है कि मैंने सोचा, अब मैं खुद अंधेरे में ध्यान लगाऊँ!"
अकबर:
"कितना आया?"
दरबारी:
"12 हज़ार महाराज! और मैंने तो सिर्फ़ मोबाइल चार्ज किया था… बाकी तो मच्छर कॉइल तक नहीं जलाई!"
बीरबल (मुस्कुराते हुए):
"अब तो लोग अपने घर में बल्ब नहीं जलाते, पड़ोसी के घर से रौशनी उधार लेते हैं!"
दिन 7: ऑनलाइन शॉपिंग – सस्ता पड़ा, मगर पड़ा नहीं
(एक महिला दरबारी डिब्बा लेकर आती है...)
महिला दरबारी:
"महाराज! मैंने 999 रुपये का सुंदर कुर्ता मंगाया था, पर पैक से रुमाल निकला!"
अकबर:
"बीरबल! ये कौन-सी तकनीक है? कुर्ता ऑर्डर, रुमाल डिलीवर?"
बीरबल:
"महाराज, ऑनलाइन शॉपिंग का यही तो कमाल है — अगर कपड़ा साइज में ना आए, तो बहाना मिल जाता है ‘डाइटिंग’ का!"
दिन 8: शादी के खर्चे – दूल्हा तोहफों में गुम
(एक परेशान पिता दरबार में हाज़िर…)
पिता:
"महाराज! बेटी की शादी कर रहा हूँ, तोहफों की लिस्ट इतनी लंबी है कि मैं अब दामाद की जगह EMI से रिश्ता करने की सोच रहा हूँ!"
अकबर:
"क्यों? क्या मांग लिया?"
पिता:
"कार, फोन, AC, फर्नीचर… और एक ‘वेडिंग कैमरामैन विद ड्रोन’!"
बीरबल:
"महाराज, आजकल की शादी नहीं होती, Netflix सीरीज़ बनती है — जिसमें लोग खाते कम, पोज़ ज़्यादा देते हैं!"
दिन 9: नौकरी की तलाश – 'Experience चाहिए'
(एक नौजवान दरबार में दुखी होकर आता है…)
नौजवान:
"महाराज! नौकरी चाहिए... लेकिन हर जगह लिखा है — 'कम से कम 5 साल का अनुभव'!"
अकबर:
"तो तुम क्या करते रहे अभी तक?"
नौजवान:
"शिक्षा पूरी कर ली... अब अनुभव लाने के लिए पैदा होते ही जॉब शुरू कर लेता क्या?"
बीरबल (हँसते हुए):
"महाराज, आजकल नौकरी ढूँढना वैसा ही है जैसे बिना इंटरनेट के मूवी डाउनलोड करना!"
दिन 10: बच्चों की ट्यूशन – स्कूल से ज़्यादा महंगा
(एक माँ दरबार में शिकायत करती है…)
माँ:
"महाराज! मेरे बेटे की स्कूल फीस 3 हज़ार है, और ट्यूशन फीस 5 हज़ार!"
अकबर:
"मतलब स्कूल पढ़ाता है शौक से, और ट्यूशन कमाता है धौंस से?"
बीरबल:
"बिलकुल महाराज! अब तो बच्चों से ज़्यादा माता-पिता का होमवर्क बढ़ गया है — ‘कैसे पढ़ाएं, कैसे कमाएं, कैसे बचाएं?’"
बीरबल:
"महाराज! आजकल तो ज़िंदगी वही चला रहा है,
जिसने बिजली बिल देखकर अंधेरे से दोस्ती कर ली,
और सब्ज़ी देखकर उपवास को अपनाया!"