Lal Baig - 7 in Hindi Thriller by BleedingTypewriter books and stories PDF | लाल बैग - 7

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लाल बैग - 7

दृश्य 1: बूढ़े आदमी का घर – अंदर का बैठक कमरा – रात 11:30 बजे

एक गहरा सन्नाटा उस पुराने लकड़ी के घर पर छाया हुआ था। दीवारें धीमे-धीमे चरमराने लगी थीं, और छत से लटकता पीला बल्ब डर के मारे कांपता-सा टिमटिमा रहा था।

मोहन अकेला ज़मीन पर बैठा था, घबराहट में अपने घुटनों पर उंगलियाँ बजा रहा था। वह अभी-अभी ड्राइवर से फोन पर बात करके उठा था।

मोहन (धीरे से बुदबुदाते हुए):
“भाई... जल्दी निकलना... कुछ तो सही नहीं लग रहा।”

तभी पीछे वाले कमरे से हल्की सी खड़खड़ाहट की आवाज़ आई — वही कमरा जिसमें बूढ़ा आदमी सोता था।

मोहन एकदम से सन्न रह गया।

मोहन (फुसफुसाते हुए):
“कोई है?”

वो धीरे-धीरे उस कमरे की ओर बढ़ा, उसके क़दमों के नीचे लकड़ी का फर्श कराहने लगा। कांपते हाथों से उसने आधा खुला दरवाज़ा धकेला।

एक काली बिल्ली खिड़की से छलांग लगाकर बाहर अंधेरे में गायब हो गई।

मोहन हड़बड़ा कर पीछे हटा, उसका दिल ज़ोरों से धड़क रहा था।

मोहन:
“बस... बिल्ली थी... डर गया बे!”

लेकिन तभी उसकी नज़र कमरे के कोने में रखे एक धूल भरे पुराने टीवी पर पड़ी। टीवी अब भी प्लग में लगा था। जिज्ञासा में मोहन ने बटन घुमाया। स्क्रीन पर पहले रुक-रुक कर धुंधली रेखाएँ आईं, फिर अचानक एक पुराना समाचार प्रसारण चल पड़ा।

टीवी के बगल में एक मेज़ पर कुछ कागज़ बिखरे पड़े थे। मोहन ने एक मुड़ा-तुड़ा अख़बार उठाया — और जो उसने देखा, उससे उसका खून ठंडा पड़ गया।

अखबार के पहले पन्ने पर राज, सोनल, रोज़, और खुद मोहन की तस्वीरें थीं — उसी दिन की जब उन्होंने बैंक लूटा था। हेडलाइन थी:
“₹5 करोड़ की डकैती में संदिग्ध पाँच युवक अब भी फरार”

मोहन का मुँह सूख गया।

मोहन (कांपते हुए):
“ये... ये तो... तो मतलब... ये बुड्ढा सब जानता था?”

उसकी रीढ़ की हड्डी में सिहरन दौड़ गई। बूढ़ा आदमी मासूम नहीं था। वो जानता था कि वे सब कौन हैं — और फिर भी उन्हें पनाह दी।

मोहन ने अख़बार कसकर पकड़ लिया और घर से बाहर भागा।

मोहन (बुदबुदाते हुए):
“नहीं... मुझे सबको बताना होगा… मैं घर जा रहा हूँ… अभी!”


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दृश्य 2: जंगल – रोमी और जॉय की पगडंडी – रात 11:35 बजे

उधर रोमी और जॉय टॉर्च लिए घने जंगल से गुज़र रहे थे। हवा नम थी, और उसमें काई के साथ कुछ और — कुछ धातु जैसी गंध घुली हुई थी।

रोमी (अचानक रुकते हुए):
“जॉय… देखो… ये… ये तो खून है…”

पत्तों और ज़मीन पर खून की गाढ़ी लकीरें फैली थीं। दोनों ने डर के मारे एक-दूसरे को देखा और उस निशान को फॉलो किया।

कुछ ही देर में एक पेड़ के पास एक निर्जीव शरीर पड़ा मिला। रोमी कांप गई और जॉय का हाथ कसकर पकड़ लिया।

वे धीरे-धीरे आगे बढ़े। जैसे ही टॉर्च की रोशनी चेहरे पर पड़ी, रोमी चीख पड़ी।

रोमी (चिल्लाकर):
“नहीं! नहीं नहीं! ये नहीं हो सकता—!”

जॉय (हकबकाते हुए):
“स-सोनल…”

सोनल की लाश ज़मीन पर पड़ी थी, उसकी गर्दन बुरी तरह कटी हुई थी। खून से उसके कपड़े और मिट्टी लाल हो चुके थे। उसकी आँखें खुली थीं — जैसे मरते वक़्त डर उसमें जम गया हो।

बगल में एक छोटा चाकू पड़ा था — उसका ब्लेड खून से सना हुआ।

जॉय घुटनों के बल गिर पड़ा।

जॉय (काँपते हुए):
“ये... ये किसने किया…? सोनल… हे भगवान…”

रोमी कुछ बोल नहीं पाई। उसकी आँखों से आंसू बहने लगे, होठ थरथरा रहे थे और हाथ मुंह पर रखे थे।

लेकिन मदद बुलाने के बजाय, दोनों चुपचाप वहां से लौट पड़े — अंदर से पूरी तरह टूटे हुए।

रोमी (धीरे से):
“चलो… घर चलते हैं… अभी…”


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दृश्य 3: जंगल की पगडंडी – लौटते समय – रात 11:50 बजे

जैसे ही वे घर के रास्ते के पास पहुँचे, अंधेरे से एक परछाई निकली।

टॉर्च की रोशनी उस चेहरे पर पड़ी — वह बूढ़ा आदमी था, जो चुपचाप उनके सामने खड़ा था।

उसकी आंखें नुकीली और भावहीन थीं — जैसे उसे सब कुछ पता हो।

बूढ़ा आदमी (ठंडे स्वर में):
“क्या ढूंढ़ रहे थे तुम लोग… जंगल में?”

रोमी और जॉय वहीं रुक गए, सांसें थम गईं।

दोनों के पास कोई जवाब नहीं था। जंगल अब और भारी लगने लगा था — जैसे पेड़ भी सब सुन रहे हों।

दृश्य 1: घर के अंदर – रात 12:10 बजे

घड़ी में आधी रात कब की बीत चुकी थी। बाहर की रात शांत और डरावनी थी, लेकिन घर के अंदर एक पागलपन का तूफान उठ रहा था।

[INT. कमरा – रात]
राज एक लकड़ी की कुर्सी से बंधा हुआ था, मोटी रस्सियाँ उसकी त्वचा में धँसी हुई थीं। उसके माथे से पसीना टपक रहा था, जो उसके खुद के लगाए हुए घावों से बहते खून में मिलकर उसके चेहरे पर डरावनी लकीरें बना रहा था। उसकी कमीज़ फटी हुई थी, शरीर खुजली से लाल और सूजा हुआ था।

राज (चीखते हुए, छटपटाते हुए):
"खोलो मुझे! मुझसे ये बर्दाश्त नहीं हो रहा है! मुझे छोड़ दो! छोड़ दो मुझे!!"

उसकी चीखें पूरे घर में गूंज रहीं थीं, दीवारों से टकरा कर लौटती हुई — दर्द से भरी हुईं… और कुछ और भी गहरा।

उसके कमरे के बाहर, दरवाज़े से सटी बैठी थी रोज़ — घुटनों में सर डाले। उसकी आँखें लाल थीं, नाखून खून से सने हुए थे — शायद उसने खुद को बहुत ज़ोर से खुजाया था। वह राज की चीखें दबाने के लिए कानों पर हाथ रखे बैठी थी, लेकिन आवाजें अंदर घुस ही जाती थीं।

रोज़ (धीरे-धीरे बुदबुदाते हुए, झूलते हुए):
"बस करो... चुप हो जाओ... मुझे सुनाई मत दो... बस करो राज... प्लीज़..."

उसके आँसू लगातार बह रहे थे। उसका शरीर काँप रहा था — जैसे वो खुद से ही लड़ रही हो।

रोज़ (अचानक चीखते हुए):
"चुप हो जाओ! चुप!!"

वो घर अब एक पागलखाने में बदल चुका था।


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दृश्य 2: जंगल का किनारा – रात 12:30 बजे

[EXT. जंगल का रास्ता – रात]

पत्तों के बीच एक हल्की सी हवा सरसराई, लेकिन वातावरण में तनाव जैसे जकड़कर बैठा था।

रोमी और जॉय एक बूढ़े आदमी के सामने खड़े थे। उसके झुर्रीदार हाथों में एक तेज़ कुल्हाड़ी (कुदारी) थी, जो चाँदनी में चमक रही थी।

जॉय (घबराहट में आगे बढ़ते हुए):
"व-वहाँ... जंगल में... सोनल की लाश पड़ी है... किसी ने उसका गला काट दिया... वो मर गई है..."

रोमी जॉय के पीछे खड़ी थी, उसकी आँखों में डर जमी हुई थी।

रोमी (धीरे से, जॉय से):
"जॉय... मुझे कुछ ठीक नहीं लग रहा... चलो यहाँ से..."

बूढ़ा आदमी कुछ नहीं बोला। उसकी आँखें — ठंडी और जानवर जैसी — उन्हें ध्यान से घूर रही थीं।

[एक्शन]
अचानक उसने झपट्टा मारा।

वो जॉय को धक्का देकर रोमी पर कुल्हाड़ी से वार करता है। रोमी चीखती है और पीछे हटती है, वार बाल-बाल चूकता है।

रोमी (चीखते हुए):
"नहीं! तुम पागल हो गए हो!"

जॉय उठता है और कुल्हाड़ी को पकड़कर बूढ़े आदमी से भिड़ जाता है। धक्का-मुक्की में जॉय उसे ज़मीन पर गिरा देता है।

बूढ़ा आदमी किसी जानवर की तरह गुर्राता है और फिर से झपटता है — इस बार रोमी की ओर।

जॉय (चिल्लाते हुए):
"रोमी! भागो! भागो!!"

रोमी (डर से):
"ये तुम्हारे अंकल हैं न?! तुम सब मिले हुए हो क्या?! तुमने ही सोनल को मारा क्या?!"

बूढ़ा आदमी (गुर्राते हुए):
"मैं इसका अंकल नहीं हूँ!! कब का मर चुका है वो!"

रोमी (हैरान, पीछे हटते हुए):
"क्या?! जॉय... तुम... तुमने झूठ बोला?!"

जॉय का चेहरा बिगड़ गया — उसमें एक झलक थी — गिल्ट, भ्रम, और कुछ ऐसा जो समझ नहीं आता।

वो कुछ नहीं बोला।

बल्कि, उसने कुल्हाड़ी के लकड़ी वाले हिस्से से बूढ़े के सिर पर ज़ोर से वार कर दिया।

बूढ़ा आदमी गिर गया — बेहोश।

फिर जॉय ने रुख किया… कुल्हाड़ी उसके हाथ में थी… और वो धीरे-धीरे रोमी की ओर बढ़ा।

जॉय (धीरे से):
"रोमी... रुक जाओ... मैं तुम्हें कुछ नहीं करूँगा..."

लेकिन रोमी ने उसकी आँखों में चमक देख ली थी। और उसके हाथों पर खून भी।

उसने एक पल भी इंतज़ार नहीं किया।

रोमी (डर से चीखते हुए):
"नहींईईई!!"

वो दौड़ पड़ी — जंगल में, अंधेरे में — टहनियाँ उसकी त्वचा को काट रही थीं, आँसू उसकी आँखों को धुँधला कर रहे थे।

पीछे, जॉय खड़ा था — चुप, स्थिर, कुल्हाड़ी हाथ में लटकती हुई।

जंगल देख रहा था… अपनी साँस रोके हुए।


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जारी रहेगा...


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🕛 "आधी रात की चीखें अब बंद नहीं होंगी..."
क्या आपने Chapter 10: Midnight Screams पढ़ा?

राज पागल हो रहा है... रोज़ टूट रही है... और जॉय? शायद वह वो नहीं है, जो दिखता है।

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