Tum wo Shaam ho - 3 in Hindi Love Stories by Rekha Rani books and stories PDF | तुम वो शाम हो - 3

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तुम वो शाम हो - 3



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🖋️ भाग : वो शाम फिर आई

मुंबई की बारिश फिर लौट आई थी — वही पुरानी स्टेशन, वही बेंच, लेकिन इस बार प्राची वहाँ नहीं थी।  
आरव अकेला बैठा था, हाथ में एक पुरानी छतरी और दिल में एक नई उम्मीद।

उसने अपनी डायरी खोली और लिखा:

> *“बारिशें लौटती हैं…  
> पर क्या वो लोग भी लौटते हैं जिनसे दिल भीगता है?”*

तभी एक आवाज़ आई —  
“छतरी में जगह है?”  
वो प्राची थी।

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☔ भाग : छतरी के नीचे

छतरी छोटी थी — लेकिन दोनों उसमें समा गए।  
बारिश तेज़ थी, लेकिन उनके बीच की खामोशी और भी तेज़।

> “तुमने मुझे बुलाया?” प्राची ने पूछा।  
> “नहीं… लेकिन उम्मीद की थी।”

वो दोनों स्टेशन से बाहर निकलते हैं — सड़क पर पानी बह रहा है, लेकिन उनके कदम साथ चल रहे हैं।

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🎨 भाग : एक पुरानी दीवार

प्राची आरव को एक पुरानी दीवार पर ले जाती है — जहाँ उसने कभी एक स्केच अधूरा छोड़ा था।  
वो कहती है:  
> “इस दीवार पर मैं कभी अपने भाई का चेहरा बनाना चाहती थी… लेकिन डर गई।”

आरव उसकी आँखों में देखता है — वहाँ आँसू नहीं, साहस है।

> “आज बनाओ… मैं यहीं हूँ।”

वो दोनों मिलकर स्केच बनाते हैं — एक चेहरा, एक छाया, और उसके नीचे एक पंक्ति:  
> “जो खो गया, वो रंग बन गया।”

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📷 भाग : तस्वीरों की सच्चाई

आरव उस स्केच की तस्वीर लेता है — लेकिन पहली बार वो तस्वीर नहीं, कहानी कैद करता है।

> “तुम्हारी कला सिर्फ रंग नहीं… वो वो बातें हैं जो लोग कह नहीं पाते।”

प्राची मुस्कराती है —  
> “और तुम्हारी तस्वीरें वो हैं जो लोग देख नहीं पाते।”

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🌌 भाग : ख़्वाहिशें

बारिश अब धीमी हो गई है।  
छतरी अब बंद हो चुकी है — लेकिन उनके बीच की दूरी भी।

प्राची कहती है:  
> “अगर कभी मैं डर जाऊँ… तो तुम मुझे फिर से रंगों की तरफ ले जाना।”

आरव जवाब देता है:  
> “अगर कभी मैं खो जाऊँ… तो तुम मुझे तस्वीरों में ढूँढ लेना।”

वो दोनों स्टेशन की बेंच पर बैठते हैं — और पहली बार, बिना किसी सवाल के, बस साथ रहते हैं।

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 भाग : एक खाली पन्ना

प्राची अपने कमरे में बैठी है — सामने स्केचबुक नहीं, एक पुराना खत रखने वाला बॉक्स है।  
उसने आज पहली बार आरव के लिए कुछ लिखने की कोशिश की — बिना स्केच, सिर्फ शब्दों में।

> “प्रिय आरव,  
> तुम्हारे बिना स्टेशन की बेंच खाली लगती है।  
> तुम्हारे बिना मेरी स्केच में रंग नहीं आते।  
> लेकिन तुम्हारे साथ… डर लगता है।  
> डर कि कहीं ये सब अधूरा रह जाए।”

वो खत लिखती है… लेकिन उसे लिफ़ाफ़े में नहीं डालती।

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📷 भाग : आरव की तलाश

उधर आरव एक पुरानी तस्वीर ढूँढ रहा है — वो जो उसने पहली बार प्राची की मुस्कान पर ली थी।  
वो तस्वीर अब धुंधली हो चुकी है — लेकिन उसकी यादें नहीं।

वो सोचता है — क्या मैं उसे समझ पाया हूँ? या बस उसकी तस्वीरें ही देख पाया?

वो स्टेशन जाता है — लेकिन प्राची वहाँ नहीं है।

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☕ भाग : रीमा की बात

प्राची अपनी दोस्त रीमा से मिलती है — वो खत दिखाती है।

रीमा पढ़ती है और कहती है:  
> “तूने सब कुछ कह दिया… अब बस भेजना बाकी है।”

प्राची जवाब देती है:  
> “शब्द कह देना आसान है… लेकिन उन्हें किसी तक पहुँचाना मुश्किल।”

रीमा मुस्कराती है —  
> “अगर वो तुझसे दूर चला गया, तो ये खत तुझे बचा लेगा। और अगर वो पास आया… तो ये खत उसे बदल देगा।”

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🌧️ भाग : बारिश फिर शुरू

स्टेशन पर बारिश फिर शुरू होती है — आरव वहीं खड़ा है, छतरी के बिना।

तभी प्राची आती है — हाथ में वो खत।

वो उसे देखता है —  
> “तुम भीग रही हो…”  
> “शायद ये खत भीग जाए, तो डर कम हो जाए।”

वो उसे खत देने वाली होती है… लेकिन रुक जाती है।

> “क्या तुम सच में जानना चाहते हो कि मैं क्या सोचती हूँ?”  
> “हाँ… लेकिन अगर तुम न बताओ, तो भी मैं इंतज़ार करूँगा।”

वो मुस्कराती है — और खत उसकी जेब में रख देती है।

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🌈 भाग : खत का जवाब

रात को प्राची खत खोलती है — और उसके नीचे एक नया पन्ना जोड़ती है।

> “अगर तुम ये पढ़ रहे हो, तो जान लो — मैं डरती हूँ।  
> लेकिन तुम्हारे साथ डरना भी अच्छा लगता है।  
> क्योंकि तुम वो शाम हो… जो हर बार लौटती है।”

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✨ एपिसोड का समापन

- एक खत लिखा गया… लेकिन भेजा नहीं  
- एक दिल खुला… लेकिन पूरी तरह नहीं  
- और एक शाम फिर से भीग गई — इस बार शब्दों से

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