भाग 4:
पार्क में पहुँचते ही छाया ने विवेक को ढूँढ़ने की कोशिश की. शाम के 6 बजे थे. सूरज अपनी हल्की नारंगी रोशनी बिखेर रहा था, लेकिन पेड़-पौधों की परछाइयाँ लंबी होने लगी थीं. पार्क में बच्चे खेल रहे थे, कुछ लोग टहल रहे थे, पर विवेक कहीं नज़र नहीं आया. तभी एक बेंच पर बैठे एक व्यक्ति ने अपना हाथ उठाया. वह लगभग 30 साल का रहा होगा, सामान्य कद-काठी का, चश्मा पहने हुए और गंभीर चेहरे वाला. उसने एक साधारण टी-शर्ट और जीन्स पहन रखी थी. यह वही विवेक था.
छाया हिचकते हुए उसकी तरफ़ बढ़ी. "आप विवेक हैं?" उसने धीरे से पूछा.
विवेक ने सिर हिलाया, उसकी आँखों में वही थकान और चिंता थी जो छाया ने अपनी आँखों में देखी थी. "और आप छाया जी?"
दोनों एक-दूसरे के सामने बैठे, चुप्पी कुछ पल भारी रही. किसी अजनबी से ऐसे डर के बीच मिलना अजीब था.
"मुझे लगा मैं अकेली हूँ," छाया ने चुप्पी तोड़ते हुए कहा. "यह सब... यह सब इतना अजीब है. लोग विश्वास नहीं करते."
विवेक ने एक लंबी साँस ली. "मुझे भी. मेरे घर में भी ठीक वैसा ही होता है. मैं चीज़ें बिखेरता हूँ, और वो व्यवस्थित हो जाती हैं. अपनी जगह पर मिल जाती हैं. मेरी दवाइयाँ, मेरे गैजेट्स... सब कुछ." उसकी आवाज़ में एक हताशा थी. "मैंने अपने लैपटॉप पर भी रिकॉर्डिंग की, अपने फ़ोन के कैमरे लगाए, लेकिन कुछ नहीं मिलता. हर बार फ़ुटेज साफ़ होती है. जैसे कोई आता ही न हो."
छाया को लगा जैसे वह कोई सपना देख रही थी, लेकिन यह सपना नहीं था. यह एक साझा वास्तविकता थी. "हाँ, मेरे साथ भी ऐसा ही हुआ. कैमरे कुछ रिकॉर्ड नहीं करते. यह कैसे संभव है?"
विवेक ने अपने चश्मे को ठीक करते हुए कहा, "शायद वे इतने एडवांस हैं कि हमारे कैमरों में नहीं आते. या... या यह सिर्फ़ हमारा भ्रम है." उसकी आख़िरी बात ने छाया को फिर से बेचैन कर दिया. क्या वह विवेक पर भी विश्वास कर सकती थी? क्या वह भी इस खेल का हिस्सा हो सकता था?
"नहीं," छाया ने दृढ़ता से कहा. "यह भ्रम नहीं है. मैं जानती हूँ मैंने अपनी चीज़ें कैसे छोड़ी थीं. मेरी याददाश्त इतनी कमज़ोर नहीं है. और आप भी यही कह रहे हैं."
विवेक ने पल भर के लिए छाया की आँखों में देखा. "ठीक है. तो अगर यह भ्रम नहीं है, तो क्या है? कोई भूत? या कोई... इंसान?"
"इंसान," छाया ने कहा. "मुझे लगता है कोई इंसान है जो यह कर रहा है. लेकिन कौन और क्यों?"
विवेक ने बताया कि वह एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर है और उसने अपने अपार्टमेंट की सुरक्षा को लेकर कई तरह के प्रयोग किए हैं, लेकिन कोई भी कामयाब नहीं हुआ. "मेरे अपार्टमेंट में स्मार्ट लॉक्स लगे हैं. कोई भी बाहर से अंदर नहीं आ सकता बिना चाबी के. और अगर आता, तो मुझे नोटिफिकेशन मिलता. बिल्डिंग के लिफ्ट में कैमरे हैं, गलियारों में कैमरे हैं. कोई दिख ही नहीं सकता."
"मेरे पास भी स्मार्ट लॉक है," छाया ने कहा. "मुझे भी कोई नोटिफिकेशन नहीं मिला. और मेरे कैमरे भी खाली थे."
दोनों के बीच कुछ पल की चुप्पी छा गई. यह एक ऐसा रहस्य था जिसकी कोई तार्किक व्याख्या नहीं थी.
"मुझे लगता है हमें और लोगों से बात करनी चाहिए," छाया ने सुझाव दिया. "आपने ऐप पर देखा, लेकिन क्या आपने किसी और से व्यक्तिगत रूप से बात की?"
"नहीं," विवेक ने कहा. "मुझे डर लगा. कहीं लोग मुझे पागल न समझें. आप पहली हैं जिससे मैंने इस बारे में बात की है."
"मुझे भी यही डर था," छाया ने माना. "लेकिन अब जब हम दोनों के साथ ऐसा हो रहा है, तो शायद और भी लोग हों."
उन्होंने तय किया कि वे ऐप पर एक प्राइवेट ग्रुप बनाएंगे और सिर्फ़ उन लोगों को जोड़ेंगे जिन्होंने 'सिक्योरिटी इश्यूज' ग्रुप में इसी तरह की समस्याओं का ज़िक्र किया था. विवेक, जो तकनीकी रूप से ज़्यादा सक्षम था, ने ग्रुप बना लिया और छाया ने अपनी पोस्ट के नीचे कमेंट सेक्शन से कुछ और यूज़र्स को आमंत्रित किया.
अगले कुछ दिनों में, उनके ग्रुप में दो और लोग शामिल हुए. एक थीं श्रीमती शर्मा, जो 60 के दशक की एक सेवानिवृत्त प्रिंसिपल थीं और 7वीं मंजिल पर रहती थीं. दूसरी थी रिया, 20 साल की एक कॉलेज छात्रा जो 5वीं मंजिल पर रहती थी और सोशल मीडिया पर बहुत एक्टिव थी.
श्रीमती शर्मा ने बताया कि उनका घर भी हमेशा व्यवस्थित रहता है, जो उन्हें अजीब लगता है क्योंकि उनकी एक घरेलू सहायिका है जो हफ़्ते में सिर्फ़ दो बार आती है. "मुझे लगा मेरी बहू आकर सब ठीक कर जाती होगी, पर वह तो कहती है कि वह यहाँ आती ही नहीं," उन्होंने कहा. उनकी आवाज़ में एक अजीब सा डर था, जैसे वे किसी पुरानी याद को टटोल रही हों.
रिया ने बताया कि उसके घर में छोटी-मोटी चीज़ें अपनी जगह बदल देती हैं, जैसे उसका मेकअप किट, या उसके हेडफ़ोन. "पहले मुझे लगा कि मैं भूल जाती हूँ, पर अब लगता है कोई और ही कर रहा है. मेरे सोशल मीडिया अकाउंट्स पर भी अजीब चीज़ें हो रही हैं – मैंने कोई पोस्ट नहीं की, पर मेरी वॉल पर कुछ लाइक्स और कमेंट्स आ जाते हैं, जैसे मैं किसी इवेंट में गई थी जो मुझे याद ही नहीं," रिया ने अपनी बात रखी, उसकी आवाज़ में एक युवा लड़की का डर साफ़ झलक रहा था.
यह बात सुनकर छाया और विवेक के होश उड़ गए. यह सिर्फ़ सामान व्यवस्थित होने की बात नहीं थी. रिया के साथ जो हो रहा था, वह कहीं ज़्यादा व्यक्तिगत और डिजिटल था. "आपके सोशल मीडिया पर भी?" छाया ने पूछा.
"हाँ," रिया ने सिर हिलाया. "जैसे कोई मेरे अकाउंट्स यूज़ कर रहा हो."
यह जानकारी इस पूरी पहेली को और भी जटिल बना रही थी. कोई सिर्फ़ घरों को 'ठीक' नहीं कर रहा था, बल्कि लोगों की डिजिटल पहचान में भी घुसपैठ कर रहा था. यह कोई साधारण चोर या शरारती तत्व नहीं हो सकता था.
चारों ने मिलकर एक छोटी सी मीटिंग बिल्डिंग के पार्क में ही की. शाम ढल चुकी थी, और हवा में एक अजीब सी ठंडक थी.
"तो, हम अब क्या करते हैं?" श्रीमती शर्मा ने पूछा, उनकी आवाज़ में बेचैनी थी. "मुझे रातों को नींद नहीं आती. मुझे लगता है कोई मुझे देख रहा है."
"हमें पता लगाना होगा कि यह कौन कर रहा है और क्यों," विवेक ने कहा. "मैंने बिल्डिंग के पुराने नक्शे देखे हैं. कुछ ऐसे अनयूज्ड वेंट्स या गुप्त रास्ते हो सकते हैं जिनके बारे में हमें नहीं पता."
छाया ने कहा, "यह सिर्फ़ फिजिकल घुसपैठ नहीं है. रिया के साथ जो हो रहा है, वह बताता है कि यह डिजिटल भी है. शायद यही वजह है कि हमारे कैमरे कुछ रिकॉर्ड नहीं कर रहे."
"या शायद," रिया ने धीरे से कहा, "वे हमारे घर में नहीं आ रहे. वे पहले से ही अंदर हैं. हमारी ज़िंदगी में."
रिया की बात सुनकर एक पल के लिए सन्नाटा छा गया. यह विचार भयानक था. क्या कोई अदृश्य, सर्वव्यापी शक्ति उन पर नज़र रख रही थी?
विवेक ने कुछ तस्वीरें निकालीं. "मैंने बिल्डिंग के आर्किटेक्चरल प्लान ऑनलाइन ढूंढे हैं. इसमें कुछ अजीब चीज़ें हैं. यहाँ एक केंद्रीय कंट्रोल रूम का ज़िक्र है, जो बिल्डिंग के सभी स्मार्ट सिस्टम्स को नियंत्रित करता है – लिफ्ट, लाइटें, सिक्योरिटी... सब कुछ."
"और वह कंट्रोल रूम कहाँ है?" छाया ने पूछा.
"प्लान में इसका कोई सटीक स्थान नहीं दिया गया है. सिर्फ़ एक 'सेंट्रल एक्सेस प्वाइंट' का ज़िक्र है. लेकिन मुझे लगता है यह यहीं कहीं बिल्डिंग के बेसमेंट में होगा."
उनकी बातचीत बढ़ती जा रही थी. उन्होंने हर छोटी से छोटी चीज़ पर गौर किया. उन्होंने इस बात पर भी ध्यान दिया कि इस अपार्टमेंट कॉम्प्लेक्स में ज़्यादातर नए निवासी थे, जो पिछले कुछ सालों में ही यहाँ आए थे. पुरानी निवासी बहुत कम थीं.
"क्या यह कोई नया एक्सपेरिमेंट तो नहीं?" श्रीमती शर्मा ने अपनी आँखें सिकोड़ते हुए पूछा. "जैसे हम सब किसी बड़े चूहेदानी में फँस गए हों?"
यह विचार सुनकर छाया के रोंगटे खड़े हो गए. यह तो वही बात थी जिसके बारे में वह सोच रही थी. एक 'जाल'.
विवेक ने कहा, "हमें और डेटा चाहिए. हर कोई अपने साथ होने वाली हर अजीब घटना को एक डायरी में नोट करेगा. समय, जगह, और क्या हुआ. और अगर किसी को कोई और अजीब सा संकेत मिलता है – कोई आवाज़, कोई छवि, कोई ऑनलाइन एक्टिविटी – सब नोट करें."
वे सब सहमत हो गए. उन्हें लग रहा था कि वे एक बहुत बड़े और खतरनाक रहस्य के मुहाने पर खड़े थे. यह कोई सामान्य चोर या मानसिक भ्रम नहीं था. यह कुछ ज़्यादा ही भयावह था, कुछ ऐसा जो उनके जीवन के हर पहलू को नियंत्रित कर रहा था. लेकिन उन्हें यह नहीं पता था कि यह 'अदृश्य हाथ' कितना शक्तिशाली और कितना करीब था. और इस खोज में उन्हें उन सच्चाइयों का सामना करना पड़ेगा जो उनकी कल्पना से भी कहीं ज़्यादा डरावनी थीं.