✍️ भाग 4 – गांव की राहें
🔮 चांडालेश्वर बाबा की कुटिया
ऑटो सड़कों को पीछे छोड़ता जा रहा था।
रिया की माँ सुनीता, अपने बेटे आयुष के साथ चुपचाप बैठी थीं।
उनका चेहरा कुछ कह नहीं रहा था — लेकिन उनकी आंखें बहुत कुछ छुपा रही थीं।
रिया बार-बार माँ की तरफ देखती, फिर बाहर झांकती।
“मॉम... हम कहां जा रहे हैं?”
कोई जवाब नहीं।
शहर की सीमा पार होते ही रास्ता वीरान होने लगा।
सड़क अब एक जंगल के रास्ते में बदल गई थी।
चारों ओर घने पेड़, पक्षियों की हल्की आवाजें, और बीच-बीच में झाड़ियों की सरसराहट।
तभी सुनीता ने एक ओर इशारा किया —
“भैया, बस यहीं रोक देना... हम यहीं उतरेंगे।”
रिया और आयुष भी ऑटो से उतर गए।
झोपड़ी जैसी एक पुरानी कुटिया उनके सामने थी।
रिया ने माँ से फिर पूछा,
“मॉम, प्लीज़ बताइए न... आखिर ये सब क्या है? कहां लाईं हमें आप?”
सुनीता ने गहरी सांस ली,
“हम जा रहे हैं चांडालेश्वर बाबा के पास।
बस वही हैं... जो हमारी मदद कर सकते हैं।”
रिया स्तब्ध रह गई।
“मतलब... आपको पहले से सब पता था?
आप मुझसे कुछ छुपा रही हैं, है न मॉम?”
सुनीता ने कोई जवाब नहीं दिया।
उनकी चाल अब तेज़ हो गई थी — मानो कोई चीज़ उन्हें खींच रही हो।
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🕯️ बाबा की कुटिया
तीनों कुटिया के बाहर पहुंचे।
भीतर से धुंआ और हल्की मंत्रोच्चार की गूंज आ रही थी।
तभी, भीतर से एक गंभीर और भारी आवाज़ आई —
“तुम अंदर आ सकते हो।”
सुनीता ने सिर झुकाया और धीरे-धीरे अंदर कदम रखा।
उनके पीछे रिया और आयुष भी।
कुटिया के भीतर हल्का अंधकार था।
सामने एक हवन कुंड जल रहा था — उसकी लपटें दीवारों पर परछाईयां बना रही थीं।
हवन के उस पार एक तांत्रिक बैठा था —
ऊँची कद-काठी, गले में रुद्राक्ष की माला, आंखें बंद, और होंठों पर धीमे मंत्र।
चांडालेश्वर बाबा।
उन्होंने आंखें खोलीं और एकटक रिया की ओर देखा,
“मुझे पता है... वो वापस आ चुका है।”
रिया का दिल धड़कने लगा।
उसके अंदर एक अजीब सी बेचैनी फैल गई —
“तो ये चीज़... पहले भी आ चुकी है? और मॉम को पहले से सब पता है?”
बाबा फिर बोले,
“इस बार वो ज्यादा शक्तिशाली बनकर लौटा है।
मैंने उसे पहले कैद किया था... मगर कोई और अंधकारमय शक्ति उसकी मदद कर रही है...”
सुनीता ने बाबा से कहा,
“गुरुजी, मुझे मेरी चिंता नहीं... मगर मेरे बच्चों को कुछ नहीं होना चाहिए।”
बाबा ने तीन पवित्र धागे मंत्रों के साथ तैयार किए।
“इन्हें कलाई पर बांध लो।
तुम्हें आज रात होने से पहले अपने गांव रामपुर पहुंचना होगा।
वहीं उसकी शक्ति असर नहीं करेगी।
मैं भी जल्द पहुंचूंगा... और देखूंगा कि किसने उस राक्षसी शक्ति को मुक्त किया है।”
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🏚️ रामपुर – अजय की खोज
रामपुर गांव में,
अजय सिंह राठौड़, चंदू और कब्बू के साथ वो पुराना, रहस्यमयी संदूक उठाए हुए
गांव के मुखिया के घर की ओर बढ़ रहे थे।
रास्ते भर गांव वाले उन्हें देख रहे थे – हैरानी और शंका भरी निगाहों से।
एक बूढ़ा आदमी बड़बड़ाया,
“अब क्या खोज निकाला है ‘इंजीनियर बाबू’ ने?”
अजय मुस्कराया और बोला,
“ग्रामसभा में आना... फिर खुद ही देख लेना क्या है इसमें।”
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🚖 दिल्ली – वापसी की राह
रिया, आयुष और सुनीता घर लौटने लगे।
तीनों ने बाबा का दिया धागा अपनी कलाई पर बांध लिया था।
रिया अब चुप नहीं रह सकी।
“मॉम, आपने ये सब मुझसे छुपाया...
आप जानती थीं उस चीज़ के बारे में, फिर मुझे कुछ बताया क्यों नहीं?”
सुनीता ने उसकी बात काटते हुए कहा,
“रिया, अभी बहुत कुछ कहना ठीक नहीं।
शाम से पहले गांव पहुंचना ज़रूरी है।
वहीं तुम्हें सबकुछ बताऊंगी।”
रिया फिर बोली,
“लेकिन मॉम... गांव तो 100 किलोमीटर दूर है।
रात तो हो ही जाएगी तब तक...”
फिर रिया के दिमाग में कुछ सूझा —
“राहुल के पास गाड़ी है... क्यों न हम उसे साथ ले लें?
वो मदद कर सकता है — और उसे खतरा भी नहीं है उस
चीज से।”
सुनीता ने कुछ सोचा, फिर सिर हिलाकर हामी भर दी।
आयुष ने राहुल को फोन मिलाया,
“हैलो राहुल भैया, आप फ्री हो क्या? हमें गांव जाना है... अर्जेंट।”
राहुल ने ज़रा भी देर नहीं की —
“बिल्कुल फ्री हूं,।”