चैताक्षी का वापस पहरगढ़ आना....
अब आगे.............
अमोघनाथ जी विवेक से कहते हैं..."वनदेवी एक प्रकृति प्रेम से बनी है , उन्हें किसी भी तरह क्षति नहीं पहुंचाई जा सकती लेकिन गामाक्ष जिसमें क्रुरता और नफ़रत के अलावा कुछ नहीं है , ऐसे में तुम्हारा सच्चा प्रेम ही है , जिससे अदिति को वश में करना मुश्किल हो गया था, इसलिए उस गामाक्ष ने तुम्हें उससे दूर करने की कई बार कोशिश की है , उसका छोटा वशीकरण तुम्हारे प्रेम से टूट जाता था , जब वो उसमे सफल नहीं हुआ तब उसने अपनी पैशाची शक्ति को एक तावीज में समेटकर अदिति को उससे वश में किया था और उसके बाद अदिति को तुम्हारे छूने पर नुकसान पहुंचने लगा था , जिससे तुम अपने आप को दोषी समझ रहे थे , लेकिन ये सब उस गामाक्ष ने किया था ताकि वो तुम्हें उससे अलग कर सके , ...तुम्हारा प्रेम ही एकमात्र उसका सुरक्षा कवच है...और तुम्हारी सुरक्षा स्वयं शिव शंभू ने की थी , तुम्हें उसकी शक्ति से बचाकर , ...
" लेकिन मैं अदिति को बचाऊंगा कैसे..?..."
" उसका पता भी सुबह तक चल जाएगा...अभी तुम मेरी कुछ विधि ढूंढ़ने में मदद करो..."
विवेक ठीक है कहकर अमोघनाथ जी के साथ उन किताबों में उस विधियों को ढूंढ़ने लगा........
उधर आदित्य को नींद नहीं आ रही थी वो बाहर छज्जे पर खड़ा बस आसमान को देख रहा था उसे तो बस रह रहकर अदिति की याद सता रही थी , जिसे सोचकर उसकी आंखों में नमी आ जाती है ,
" अदि , तूने ऐसा क्यूं किया , क्यूं नहीं अपने भाई को जाने दिया क्यूं अपनी जिंदगी दांव पर लगा दी, , तेरे भाई तुझे बचाने के लिए कुछ नहीं कर रहा बस हाथ पर हाथ रखे सुबह होने का इंतजार कर रहा है , तू चिंता मत कर अदि , मैं तुझे बहुत जल्द उस पिशाच के चंगुल से बचा लूंगा...."
आज की रात किसी को इतना दुःख पहुंचा रही थी तो वहीं दूसरी तरफ गामाक्ष आज बहुत खुश था , उसे किले में खुशियों की रौनक छाई हुई थी , सब जगह चमगादड़ो का शोर फैला हुआ था , लेकिन गामाक्ष उस भयानक मूर्ति के सामने खड़ा कहता है...." प्रेतराज , मेरा बरसों का इंतजार परसों खत्म हो जाएगा , आपके लिए भी ये खुशी का दिन होगा.... "
गामाक्ष उस मूर्ति के सामने खड़ा बातें कर रहा है तभी उबांक जल्दी से उसके पास आता है..." दानव राज , आपको किले की सुरक्षा बढ़ा देनी चाहिए..."
गामाक्ष हैरानी से पूछता है..." लेकिन क्यूं उबांक ...?.. हमारे ये पिशाची सैनिक काफी है..."
" नहीं दानव राज , मैं अभी देविका के घर की तरफ से आ रहा था तो देखा वो तो कहीं बाहर से आ रहे थे और उसके साथ उसका बेटा और उस विवेक का भाई था..."
गामाक्ष उबांक कुछ बात दोहराते हुए कहता है..." उसका बेटा और विवेक भाई , वो विवेक भी था..."
" नहीं दानव राज..."
" तो फिर तुम इतना क्यूं घबरा रहे हो , वो देविका कुछ नहीं कर पाएगी , आदिराज की जैसी शक्तियां किसी के पास नहीं है जो मुझे खत्म कर सके , और वो विवेक भी मर ही चुका होगा , मेरे रास्ते में कोई नहीं है उबांक ,बस बहुत जल्द मैं आदिराज की गई ग़लती की सजा उसकी बेटी की बलि के बाद उसके बेटे को भी मार दूंगा , और फिर मैं बन जाऊंगा दुनिया का सबसे शक्तिशाली पैशाची पुरुष...." इतना कहकर गामाक्ष जोर जोर से हंसने लगता है , जिससे पूरे में एक भयानक आवाज गूंज उठती है , जिसे सुनने वाले का दिल ठहर जाए.....
धीरे धीरे रात का अंधेरा खत्म होने लगता है और सुरज की किरणें सब और उजियारा फैलाते हुए निकल आते हैं..... नई सुबह नई उम्मीद के साथ आई है.....
पूरी रात विधियों की खोज करने के बाद अमोघनाथ जी और विवेक की मेहनत सफल हो जाती है और देविका जी भी आदित्य और इशान के साथ मंदिर के तहखाने वाले कमरे में पहुंच जाती है....
आदित्य जिसे रातभर बस सुबह होने का ही इंतजार था आखिर में वो अमोघनाथ जी से पूछता है..." क्या आपको कोई तरीका मिल गया..?.."
अमोघनाथ जी मुस्कुराते हुए हां में सिर हिलाते हुए कहते हैं..." उपाय तो मिल चुका हूं बस इंतजार है चेताक्क्षी का.…."
तभी पीछे से आवाज़ आती है...." आपको हमारा इंतजार है बाबा....." इस आवाज से सबकी नजरें पीछे खड़ी उस लड़की पर जाती है...
अमोनाथ जी उसे देखकर खुश हो जाते हैं और उसे अपने पास बुलाते हुए कहते हैं....." आओ चेताक्क्षी , आज सोलह साल बाद तुम्हें देखकर बहुत अच्छा लगा..."
चेताक्क्षी भावुक होकर कहती हैं...." बाबा , आपने ही हमें अपने से दूर किया था , और आज इतने बरसों बाद हमें अपने पास बुलाया है...."
अमोघनाथ जी उसकी बात सुनकर भावुक तो हो गए थे लेकिन खुद को संभालते हुए कहते हैं...." खैर , अब तुम आ गई हो तो अब जिस काम के लिए तुम्हें बुलाया गया है वो शुरू करें पहले , हमारे पास ज्यादा समय नहीं है..."
" हां बाबा , हम बिल्कुल तैयार है , ..."
चेताक्क्षी आगे जाकर माता काली के सामने हाथ जोड़कर उन्हें प्रणाम करके अपने साथ लाई सामाग्रियों को निकालकर बाहर रखकर कहती हैं.....
" बाबा आदित्य नहीं आया.."
अमोघनाथ जी आदित्य की तरफ दिखाते हुए कहते हैं..." बेटी , ये है आदित्य ...."
चेताक्क्षी आदित्य को देखते हुए कहती हैं...." हमें माफ करना , की बरसों के बाद तुम्हें देखकर पहचान ही नहीं पाए..."
" कोई बात नहीं चेताक्क्षी , मैं भी तुम्हें देखकर पहले वाली चेताक्क्षी समझकर पहचान नहीं सका , तुम तो बिलकुल बदल चुकी हो..."
" हम्म , आदित्य तुम भी....."
अमोघनाथ जी दोनों की बातों को बीच में ही काटते हुए कहते हैं...." चेताक्क्षी , क्या उपाय सोचा है तुमने , मैंने तुम्हें सारी जानकारी भिजवा दी थी..."
" हमें याद है बाबा , हम नाना जी से उसकी सारी सामाग्री ले आए हैं, अब आप ध्यान से सुनिए , ... पहले हम सुरक्षा कवच मंत्रों को उच्चारित करेंगे जिससे , अदिति तक उसकी पहुंच सके और दूसरा उपाय अत्यंत कठिन है लेकिन उसे करेगा कौन...?..."
अमोघनाथ जी हैरानी से पूछते हैं....." दूसरा उपाय कठिन है लेकिन कौन सा उपाय है...?..."
................to be continued..............