The Risky Love - 20 in Hindi Horror Stories by Pooja Singh books and stories PDF | The Risky Love - 20

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The Risky Love - 20

एक मायानगरी....

अब आगे...........

विवेक पूरे जोश में कहता है....."मैं अदिति को बचाने के लिए किसी भी हद तक जाऊंगा , बस आप मुझे जगह बता दीजिए...."
मयन देव विवेक के जज्बात को सरहाते हुए कहते हैं..." बहादुर हो , लेकिन मैंने बहुत बहादुरों को वहां जाते देखा है लेकिन कोई वहां से नहीं लौटा है...." 
" आप मुझे उस जगह के बारे में बता दीजिए बाकी मैं अपना काम पूरा करके ही लौटूंगा...ये मुझे मेरे प्यार को बचाने के लिए करना होगा...."
मयन देव आगे कहते हैं....." बहुत सी रुकावटें आ सकती है जहां तुम्हारे प्रेम की परिक्षा भी हो सकती है इसलिए सावधान रहना , , वो तुम्हें तुम्हारे राह में अवरोध पैदा कर सकती हैं...."
" मैं पूरी कोशिश करूंगा  उन सबसे बचकर निकलने की..."
मयन देव उसकी बात सुनकर मुस्कुराते हुए कहते हैं....." तुम अपने पथ पर अडिग हो , उम्मीद करता हूं तुम अपने लक्ष्य को प्राप्त करो , , तो सुनो , उस मायानगरी में जाकर तुम्हारा केवल एक लक्ष्य होना चाहिए वो है , , महाकाल का विशालकाय मूर्ति वाला मंदिर , उस मंदिर के आसपास तुम्हें शिवजी के पैहरी नागदेवता ही उस दिव्य खंजर तक पहुंचा देंगे , , बस तुम उन्हें ये नागरूद्राक्ष सौंप देना....और बात का विशेष ध्यान रखना वहां के किसी भी चीजों का उपयोग मत करना .....अब तुम यहां से कुछ दूर बने तालाब के रास्ते चले जाओ, ,और हां , ये सप्त शीर्ष तारा अपने साथ रखो , ये तुम्हें समय की अनुभूति करवाता रहेगा , क्योंकि उस मायानगरी में कभी घना अंधेरा छा जाएगा तो अभी कड़ी धूप , इसलिए ध्यान रखना एक एक पहल के साथ इस तारे के शीर्ष पर एक एक करके सातों प्रकाश रेखाएं हटने लगेंगी , तुम्हें अंतिम शीर्ष के खत्म होने से पहले उस नगरी से खंजर लेकर वापस पहुंचना है नहीं तो तुम कभी उस नगरी से बाहर नहीं आ सकते...."
" लेकिन मैं उस नगर से बाहर कैसे आऊंगा , , ..?.."
मयन देव आगे कहते हैं....." अगर तुमने खंजर प्राप्त कर लिया तो तुम्हें कोई कठिनाई नहीं होगी वहां से निकलने में , वो दिव्य खंजर तुम्हें स्वयं अपने गंतव्य तक पहुंचा देगा..."
मयन देव की बात सुनकर विवेक हामी भरकर वहां से चला जाता है , और मयन देव भी वहां से चले जाते हैं .....
विवेक एक बार फिर से अपनी मंजिल पर अकेला हो जाता है लेकिन बेखौफ होकर वो सीधा उस तालाब के पास पहुंचता है , , ....उस तालाब को देखने से ही वो किसी शीशे की तरह पारदर्शी नजर आ रहा था , जिसे विवेक थोड़ा घबराते हुए उसमें अपना पहला कदम रखता है तो उसे एहसास हो जाता है कि ये पानी नहीं है , , 
वो आंखें बंद करके सीधा उस तालाब में चला जाता है , , कुछ ही पल में वो एक रहस्यमय नगर में पहुंच चुका था , जिसकी शुरुआत उड़ते हुए पहाड़ों से थी...
नदी की दिशा विपरीत थी , झरने भी विपरीत दिशा में बह रहे थे लेकिन वहां के खुबसूरत नजारे को देखकर विवेक की आंखें खुली की खुली रह जाती है......
" ये पूरा का पूरा मेजिकल वर्ल्ड है , ..."
विवेक चारों तरफ देखते हुए आगे बढ़ने लगता है , , काफी दूर चलने के कारण वो थक चुका था , उसके पैरो ने उसका साथ देना छोड़ दिया , वो अब धीरे धीरे कदम उठा रहा था , लेकिन कुछ ही दूर चलने के बाद विवेक निढाल सा एक पेड़ के नीचे बैठ जाता है......
" ये महाकाल का मंदिर और कितनी दूर है , मैं ऐसे बैठ नहीं सकता , ...." थकान की वजह से उसकी आंखें में नींद सी छाने लगी थी , तभी उसे एहसास हुआ जैसे किसी के हाथ ने उसे छुआ हो......
 
दूसरी तरफ चेताक्क्षी सुरक्षा कवच यज्ञ को करने में अपनी काफी ऊर्जा व्यय कर चुकी थी , लेकिन अब भी उसकी ये क्रिया जारी थी , वो कमजोर होने की वजह से ठीक से बैठ भी नहीं पा रही थी , जिससे अमोघनाथ जी अपनी जगह से उठकर उसे संभालते हैं , , चेताक्क्षी अपने पूरी मेहनत कर रही थी लेकिन उस मिट्टी की मूर्ति में एक बार रोशनी होती तो दूसरे ही पल वो ख़त्म हो जाती , , चेताक्क्षी उससे काफी गुस्से में कहती हैं....." ये गामाक्ष हमारे कवच में अवरोध पैदा कर रहा है , , हमारे पास इतनी ऊर्जा शक्ति नहीं है कि हम अकेले उसे पैशाची क्रिया को खत्म कर सके...."
चेताक्क्षी काफी निराश होने लगती है लेकिन एक उम्मीद के साथ दोबारा कवच मंत्र शुरू करती है , , 
उधर विवेक अचानक हुए एहसास से तुरंत खड़े होकर चारों तरफ देखने लगता है लेकिन उसे कोई नजर नहीं आया , विवेक उस पेड़ से हटते हुए आगे ही बढ़ा था कि तभी उसे किसी ने पीछे से पकड़ कर खींच लिया , .....
विवेक अचानक हुई हरकत से घबरा जाता है लेकिन थोड़ी बहुत महस्कत करने के बाद खुद को छुड़ाकर पीछे मुड़कर देखता है तो उस पेड़ की बड़ी बड़ी टहनियां हवा में लहरा रही थी , , 
धीरे धीरे उस पेड़ की आंखें दिखाई देने लगी थी , फिर उस पेड़ ने बोलना शुरू किया....." कौन हो तुम...?...इस मायानगरी में क्या कर रहे हो , , यहां किसी इंसान को आने की आज्ञा नहीं है...."
विवेक उसे देखकर कहता है....." तुम कौन हो , रहस्यमय पेड़ , ..."
वो पेड़ थोड़ा गुस्से में कहता है....." हम यहां के रक्षक है , किसी भी अजनबी को आने से रोकना हमारी जिम्मेदारी है..."
" देखो मैं यहां खंजर को लेने आया हूं , , मुझे यहां मयन देव ने भेजा है...."
मयन देव का नाम सुनते ही उस पेड़ के चेहरे पर मुस्कान आती है और कहता है...." तो तुम्हें मयन देव ने भेजा है , ठीक है तुम आगे जा सकते हो लेकिन तुम काफ़ी थके हुए लग रहे हो इसलिए लो ये फल खा लो...."
 
...........to be continued............
क्या विवेक उस रहस्यमय पेड़ की बात सुनकर वो फल खा लेगा....?...
जानने के लिए जुड़े रहिए........