VISHAILA ISHQ - 26 in Hindi Mythological Stories by NEELOMA books and stories PDF | विषैला इश्क - 26

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विषैला इश्क - 26

(सनी के बलिदान और निशा के कोमा ने परिवार को तोड़ दिया है। आद्या न्याय की राह चुनती है, जबकि अतुल्य बदले की आग में जलकर नागस्वरूप में जाग उठता है। तांत्रिक की काली साजिश—आद्या को वश में करना और नागमानव की बलि—अब और भयावह हो चुकी है। शहर जाते समय अतुल्य आधा नाग बनता है और अचानक काले नागों का झुंड उसे उठा ले जाता है। आद्या की चीखें जंगल में गूंजती रह जाती हैं… पर असली सवाल यह है—क्या अतुल्य बलि बनेगा या एक और बड़ा रहस्य सामने आएगा? अब आगे)

तुम कौन हो आद्या?

आद्या वहीं कार के पास घुटनों के बल बैठ गई। शरीर सुन्न था, दिमाग सुन्न था, पर दिल… अब भी भाई की पुकार में डूबा था।

आँखों से आँसू बहते जा रहे थे और होठों से बार-बार एक ही शब्द फूट रहा था—"भैया… भैया…"

काँपते हाथों से उसने मोबाइल उठाया।

स्क्रीन ऑन…लेकिन… कोई नेटवर्क नहीं। कोई सिग्नल नहीं। जैसे वो कोई खिलौना हो… बस टिमटिमाता एक मृत यंत्र।

उसने कार स्टार्ट की। इग्निशन घुमाया…… खामोशी। फिर एक बार। फिर दो बार। कुछ नहीं। जैसे वह कभी कार थी ही नहीं।

"ये क्या जगह है…" वह फुसफुसाई। धीरे-धीरे उसने कदम बढ़ाया। जिस ओर नाग अतुल्य को ले गए थे… उसी ओर चल पड़ी। पैर काँप रहे थे, पर रुक नहीं रहे थे।

हर कदम पर वह चिल्लाई— "भैया!!" लेकिन सिर्फ पत्तों की सरसराहट और दूर कहीं अजीब सी फुसफुसाहट जवाब में लौटती।

---

काफी देर बाद घने पेड़ों के बीच उसे एक गुफा दिखाई दी। उसका दिल धड़कने लगा, पर चेहरे पर पहली बार एक छोटी सी उम्मीद की चमक आई। "शायद… शायद भैया इसी में हों…"

वह भागी। गुफा का द्वार काला था, रहस्यमय था, मानो किसी प्राचीन काल के राज़ को छुपाए बैठा हो।

उसने भीतर झांका… घुप्प अंधेरा। पर उसने एक गहरी सांस ली और कदम अंदर रख दिया।

जैसे ही वह गुफा में दो क़दम अंदर बढ़ी… “ठाक!”

पीछे से आवाज़ आई। वह मुड़ी—गुफा का द्वार बंद हो चुका था।

"नहीं! नहीं!"

वह भागी… दरवाज़ा ठोका… पर द्वार… अब वहाँ था ही नहीं।

वह पलटी… और… दुनिया बदल चुकी थी।

अब वह गुफा में नहीं, बल्कि एक अनजाने, रहस्यमयी जंगल में खड़ी थी।

यह जंगल… सामान्य नहीं था। यहाँ के पेड़ साँस ले रहे थे,

धरती में कंपन था, और हवा… हवा नहीं… कोई ज़हर जैसा भारीपन। "मुझे… सांस… नहीं…" उसका दम घुटने लगा।

आँखें फटी रह गईं, छाती ज़ोर से धड़कने लगी, और वह वहीं जमीन पर गिर पड़ी। तड़पते हुए, अपने ही शरीर से संघर्ष करती हुई… और फिर……अंधकार।

आद्या की आंखें आधी खुली थीं। आसमान सुनहरा था, लेकिन उसकी चमक जैसे किसी की आंखों में कांटे चुभो रही थी। सिर भारी था, यादें तैर रही थीं—भैया की चीख, गुफा का बंद होना, दम घुटना… और अब यह जगह।

रहस्यमयी लोक

सामने एक पेड़ दिखा—छोटे-छोटे चमकीले फल, मानो किसी स्वप्नलोक की मिठास हों। वह उसकी ओर बढ़ी। पर कदम लड़खड़ाया। ज़मीन फिसली। खाई में गिरती हुई वह चिल्लाई —

"भैया!" किसी ने पकड़ लिया। ठंडी, फिसलती हुई चीज़… नाग की पूंछ!

वह हांफते हुए बोली — "भैया…" फिर देखा — यह काला नहीं, नीला नाग था।

"नागों में भी रंगभेद होता है शायद," वह घबराई-सी बुदबुदाई।

अगली ही घड़ी, नाग मानव ने अपनी पूंछ से उसे घसीटा और बाकी नागों के बीच पटक दिया।

चारों ओर नाग मानव — कुछ शस्त्रधारी, कुछ फनों में रोशनी लिए — और बीच में खड़ा एक…विराट्।

उसकी आंखों में सत्ता की क्रूरता थी, उसके वस्त्र नीले मणियों से जड़े थे, और उसकी फन रक्षक की तरह नहीं, राजा की तरह उठा था।

"कौन हो तुम?" उसकी दहाड़ गुफा की दीवारों से टकराकर जैसे पहाड़ों में गूंज गई।

आद्या के होंठ कांपे — "आ… आद्या।"

"मानव?" उसकी आंखों की चमक और तीव्र हो गई — जैसे कोई खजाना मिल गया हो।

एक सिपाही फुफकारा —"नागराजपुत्र! हमारे नागधरा में कोई मानव आ ही नहीं सकता। यह असंभव है।"

तभी किसी ने फटकारा —"हे मानव! नागवाणी कैसे समझ पा रही है तू?"

आद्या सोच में पड़ गई — "यह किस भाषा में बात कर रहे? पर मैं… समझ पा रही हूं?"

आद्या का माथा घूम गया। "नागवाणी? नहीं… यह तो…"

तभी विराट् ने फुंकार मारी —"उत्तर दे! कौन है तू?"

आद्या ने डर से अपने हाथों से चेहरा ढक लिया… तभी उसकी हथेली में उकेरा गया नागचिह्न जगमगाने लगा।

(विराट् की नजरें चमकीं। सिपाही पीछे हटे। और आद्या —)

 डर और सदमे में उसके होंठ हिले —"यह क्या…"

और फिर सबकुछ काला हो गया। 

...

आद्या की आंख खुली तो वह बिस्तर थी। मुस्कुराई "सपना था।" तभी वह उठी , उसके पैर नागाकृति के जंजीरों से जकड़े हुए थे। फिर उसे सब याद आया "इतनी बार बेहोश हुई हूं। कौन कहेगा कि फोरेस्ट अफसर की बेटी हूं।" वह जोर से चिल्लाई "जान से मारने से पहले कुछ खाने को दोगे क्या?

....

वहीं विराट् अपने कमरे में बैठे कुछ सोच रहा था। "आद्या" यह नाम जैसे उसके दिल में अजीब तरीके से छप रहा था।

"नाग भाषा समझ रही थी।" "फिर वह नागचिह्न।"

"इतनी विषैले वातावरण में वह श्वास कैसे ले रही है?" "मानव है या नागिन?"

आखिर में एक सवाल उसके मुंह से निकला "कौन हो तुम आद्या?"

आद्या की भूख के मारे हालत खराब थी। तभी वहां पर कुछ सैनिक नागाकृति के बड़े से पात्र पर कुछ फल लाए। आद्या ने सिर झुकाकर जल्दी से फल खाना शुरु कर दिया। जल्दी ही सारे फल खत्म हो गए। तभी वहां पर विराट् आ गया। उसने हैरानी से देखा -" यह तो विषैले फल थे। यह जिंदा कैसे हैं?" उसने इशारा किया और नागसैनिक उसे जंजीरों से पकड़कर पीछे ले चले। वह विराट् के कमरे में थे । आद्या मन ही मन सोच रही थी "अद्दु! अब कुछ भी हो जाए, बेहोश नहीं होना।" उसने सामने देखा तो नीली आंखों से विराट् उसे ही घूर रहा था। आद्या ने इधर उधर देखा और हिम्मत कर बोली "इस नाग धरा में नागिनें सुंदर नहीं होती क्या?" यह बात सुन सब चौंक गए। ऐसी बात बोलने की हिम्मत तो राजपरिवार में भी करने की नहीं सोचता था। विराट् हंसा और बोला -" सोच रहा हूं कि तुझे मृत्युदंड कैसे दूं? तेरे शरीर के छोटे छोटे टुकड़े करके नाग धरा में फैला दूं या कुछ और? अब आद्या की सिट्टी मिट्टी गुम हो गयी। "कुछ और ठीक रहेगा।" वह हिम्मत कर बोली।

विराट् का सब्र अब टूटने लगा। "अगर जिंदा रहना चाहती है तो बता कौन है तू, नाग धरा में क्या कर रही है?" उसकी आवाज से जैसे राजदरबार थरथरा रहा था।

आद्या ने मन ही मन सोचा " मुझे नाग धरा का नाम जाना पहचाना क्यों लग रहा है? मैं मानव हूं, यह पता चलने पर मैं जिंदा नहीं बचूंगी शायद। यह तो मिसेज सक्सेना से भी ज्यादा खतरनाक है। क्या करूं कुछ समझ नहीं आ रहा।"

तभी वहां पर एक नाग सेविका आई "आपके लिए भोजन लाई हूं। राजकुमार"

आद्या को आवाज जानी पहचानी लगी । वह झट से पीछे मुड़ी और उसकी आंखें फैल गयी "रूचिका, यहां पर "।

1) रूचिका को नाग धरा में सेविका क्यों बना रखा है?

2) आद्या नाग धरा लोक से कैसे निकलेगी? विराट् आद्या के सच को जान पाएंगा

3) अतुल्य को आद्या कैसे ढूंढेगी?

जानने के लिए पढ़ते रहिए "विषैला इश्क "।