(सनी के बलिदान और निशा के कोमा से टूटे परिवार के बीच आद्या भाई को खोजते हुए रहस्यमयी गुफा में प्रवेश करती है। गुफा बंद होते ही वह नागधरा लोक में पहुँच जाती है जहाँ पेड़, हवा और वातावरण सब विषैले हैं। वहीं नागराजपुत्र विराट और उसके सैनिक आद्या को पकड़ लेते हैं। नागवाणी समझने और नागचिह्न जगमगाने से सब चौंक जाते हैं। विराट उसकी पहचान पर शक करता है और मृत्युदंड की धमकी देता है, जबकि आद्या हिम्मत से जवाब देती है। अंततः आद्या को पता चलता है कि उसकी सहेली रूचिका नागधरा में सेविका बनी हुई है, जिससे रहस्य और गहराता है। अब आगे)
मृत्युदंड से इश्क तक
राजदरबार में एक सन्नाटा छा गया था। विराट् की गूंजती हुई आवाज़ के बाद सब नाग सैनिकों ने अपने शस्त्र संभाले —"इसके मृत्युदंड की तैयारी करो।"
आद्या की आंखों में आंसू छलक पड़े। वह कांपते होंठों से बोल उठी — "मैं… आद्या… स्कूल में पढ़ती हूँ… पापा फॉरेस्ट अफसर थे… और भैया बैंक मैनेजर हैं… प्लीज़ मत मारो… अगर चाहो तो… सेविका बना लो… जीवनभर के लिए…"
राजदरबार सन्नाटे में डूबा। फिर एक मंत्री ने अविश्वास से कहा —"मानव? नाग धरा में? असंभव!"
तभी— गर्जना जैसी एक भारी आवाज गूंजी "मेरी बहन को बंदी बनाने की हिम्मत कैसे हुई तुम सबकी?"
सारे नाग सैनिक पलटकर देखने लगे।
दरबार के मुख्य द्वार से एक काले फनों वाला, तेजस्वी और विशालकाय नाग मानव प्रवेश कर रहा था। उसकी आंखों में ज्वाला थी और उसकी चाल… किसी योद्धा की तरह गर्वीली।
आद्या मुस्कुराकर बोली "अतुल्य भैया! एक काले और बडे नाग मानव के रूप में अतुल्य सामने खड़ा था
विराट के हल्के से इशारे पर आद्या की बेड़ियाँ खोल दी गईं।
वह कांपते कदमों से उठी, और बिना कुछ कहे अतुल्य के पीछे जा छिपी — जैसे कोई बच्ची डर के मारे अपनी मां की ओट में चली जाती है।
अब वह किसी उत्तर की नहीं, बस सुरक्षा की तलाश में थी।
विराट ने हैरानी से कहा — “नाग मानव की बहन? मतलब… यह नाग कन्या है?
अतुल्य ने चुपचाप सिर हिला दिया। विराट ने आद्या की ओर देखा… बड़े ध्यान से… लेकिन आद्या उसकी आंखों से बचती रही। वह अब भी अतुल्य के पीछे ही दुबकी थी।
विराट ने कुछ पल रुककर कहा —"अतिथियों के कक्ष में ले जाओ… दोनों को।"
आद्या डरते हुए फुसफुसाई —"नही भैया… प्लीज़…"
उसने सिर घुमाकर देखा… विराट अब भी उसे घूर रहा था। वह फिर से नजरें झुका लेती है।
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अतिथिगृह में…
कमरा सुंदर था, लेकिन माहौल तनाव से भरा।
सामने स्वादिष्ट भोजन की थालियाँ सजी थीं — पर भूख तो दोनों को कभी की मर चुकी थी।
"कहाँ थे भैया?" आद्या की आवाज भर्रा रही थी।
"ये सब छोड़," अतुल्य ने जल्दी में कहा —"तू यहां कैसे? इसके चुंगल में?"
"पता नहीं…" कहकर आद्या अतुल्य के गले लगकर रोने लगी।
अतुल्य ने गंभीरता से कहा —"एक बात ध्यान से सुन, आद्या। इन्हें मत बताना कि तू इंसान है… ये तुम्हें जिंदा नहीं छोड़ेंगे…"
आद्या मासूमियत से बोली —"मैंने… तो बता दिया…"
"क्या!?"अतुल्य का चेहरा सफेद पड़ गया।
अब वह जान गया था —ये अतिथिगृह सिर्फ सम्मान नहीं, बल्कि एक बंधन है।
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विराट का आगमन…
अभी अतुल्य कुछ सोच ही रहा था कि विराट दरवाजे से भीतर आ चुका था।
वह मुस्कुराता हुआ, सामने की बैठक में बैठ गया। आद्या उसे देखकर सहम गई — धीरे-धीरे फिर से अतुल्य के पीछे खिसकने लगी।
"आद्या…" विराट ने गहरी आवाज में कहा —"नाम इतना शक्तिशाली… और तुम इतनी डरपोक?" फिर एक क्षण में, वह अतुल्य और आद्या के बीच आ खड़ा हुआ। उसकी निगाहें अब पूरी तरह आद्या पर थीं।
"तुमने पूछा था ना…" विराट ने धीमे स्वर में कहा —
"क्या हमने कभी सुंदर नाग कन्याएं नहीं देखीं? तो जान लो — नाग धरा की राजकन्याओं से ज़्यादा आकर्षण है तुममें…"
अतुल्य कुछ समझ पाता, उससे पहले ही… नाग सैनिकों ने उसे घेर लिया।
विराट ने एक झटके में आद्या का हाथ पकड़ लिया, और उसे ज़मीन पर पटकते हुए चिल्लाया —"अपने नागिन रूप में आओ!"
आद्या की आंखों से आंसू बह निकले। वह फूट-फूटकर रोने लगी।"मुझसे गलती हो गई… मुझे जाने दो… प्लीज़…"
अतुल्य चिल्लाया —"रुको! मैं सब बताता हूँ… सच-सच बताता हूँ…"
वह रुका… साँसें थाम लीं…फिर धीमे से कहा —"पर मैं सबकुछ सिर्फ… अकेले में बताना चाहता हूं…"
अतुल्य जान चुका था —अगर उसने कुछ नहीं कहा…तो आद्या शायद कल तक जीवित न बचे।
वह गहरी साँस लेकर विराट के कक्ष में गया।
विराट ने आँखें तरेरते हुए कहा —
"अब बोलो… सच क्या है?"
अतुल्य ने मन ही मन कहानी गढ़ी —एक ऐसी कहानी जिसमें न सच्चाई थी, न झूठ…बस एक बहन की जिंदगी बचाने की लाचारी थी।
"मैं और आद्या नागसेविका डिमरी की संतान हैं।""बचपन में आद्या बहुत शरारती थी… वो बिना सोचे कुछ भी बोल देती थी।"
"एक दिन… उसने एक नाग साधु को क्रोधित कर दिया। और… उसने उसकी नाग शक्तियाँ छीन लीं।"
अतुल्य को खुद अपनी बातों पर भरोसा नहीं था। पर वक्त के आगे वो मजबूर था।
विराट के मन में आद्या के वे शब्द गूंजे —"नागधरा में कभी सुंदर नागिन नही़ देखी क्या?"
अब वह थोड़ा सा…बस थोड़ा सा झुकने लगा था विश्वास की ओर। "तो उसकी शक्तियाँ लौट क्यों नहीं सकतीं?" "और वो खुद को मानव क्यों बता रही है?"
विराट के इस सवाल ने अतुल्य को जड़ से हिला दिया।
पर उसने मुस्कुराकर कहा — "क्योंकि वह अब हार चुकी है। नागशक्ति खो चुकी है।" "अब उसे खुद पर विश्वास नहीं रहा… वो मानती ही नहीं कि वो नागकन्या है।"
"अब वो खुद को 'इंसान' कहती है… क्योंकि उससे दर्द कम होता है…"
विराट थोड़ी देर चुप रहा…उसकी आँखों में एक अलग ही तूफान था।
"जाओ, अपने कक्ष में… आराम करो।" उसने शांत स्वर में कहा।
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दूसरी ओर…
विराट के आदेश के बाद नाग पुरोहित को बुलाने भेजा गया। पर तभी एक सेवक ने सूचना दी —"अतुल्य और उसकी बहन नागधरा छोड़ना चाहते हैं।"
विराट का माथा तन गया —"रुको…"
वह तेज़ी से अतिथि कक्ष की ओर बढ़ा। अंदर जाते ही…उसकी दृष्टि ठिठक गई। वह वहाँ खड़ी थी। आद्या।
पहली बार नागकन्या के वस्त्रों में। नज़र झुकी हुई… बाल खुले… और चेहरे पर वह अनजाना डर।
एक पल को समय रुक सा गया। वह… बस देखता रह गया।
आद्या की नज़र जैसे ही विराट से टकराई, वह सिहर गई, और पास के पर्दे की ओट में छिप गई।
वह चारों ओर देख रही थी —अतुल्य वहाँ नहीं था।
और तब…पहली बार… विराट को उसका डरना अच्छा नहीं लगा। उसके भीतर एक विचित्र सा खालीपन उभर आया।
1) क्या विराज आद्या पर सच में मुग्ध हो गया था या कोई चाल थी?
2) आद्या अतुल्य की झूठी कहानी की क्या कीमत चुकाएंगी?
3) क्या आद्या नाग धरा से लौट पाएंगी?
जानने के लिए पढ़ते रहिए "विषैला इश्क"।