शिक्षक, हमारे जीवन में बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान रखते हैं। हम अपने माता पिता के बाद किसी से कुछ सीखते हैं तो वह हमारे शिक्षक ही होते हैं। जीवन की गहराइयों के साथ किताबी ज्ञान से रूबरू हमें हमारे शिक्षक ही करवाते हैं।
हम मां बोलना तो घर से ही सीख जाते हैं, लेकिन जीवन पथ पर काम आने वाले शब्दो को बोलना और उनका सही इस्तेमाल करना हम अपने टीचर्स से ही सीखते हैं।
आज वक्त थोड़ा बदल गया है, लेकिन फिर भी शिक्षकों की जरूरत हम सबको आज भी उतनी ही है। डिजिटल पढ़ाई के लिए भी हमें शिक्षकों की उतनी ही जरूरत है, जितनी की पहले थी। शिक्षक समाज की सबसे बड़ी धरोहर हैं। हमें उनका आदर करना चाहिए और उनके बताए रास्ते पर चलकर एक बेहतर इंसान बनने की कोशिश करनी चाहिए।
अब जानते हैं यह सिर्फ आज के ही दिन क्यों मनाया जाता है ? किसी और दिन क्यों नहीं ? इसका जवाब है....
"भारत के भूतपूर्व राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्मदिन (5 सितंबर) भारत में शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है. डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिन को 1962 से शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है. उन्होंने अपने छात्रों से जन्मदिन को शिक्षक दिवस के रूप में मनाने की इच्छा जताई थी. दुनिया के 100 से ज्यादा देशों में अलग-अलग तारीख पर शिक्षक दिवस मनाया जाता है. देश के पहले उप-राष्ट्रपति डॉ राधाकृष्णन का जन्म 5 सितंबर 1888 को तमिलनाडु के तिरुमनी गांव में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था. वे बचपन से ही किताबें पढ़ने के शौकीन थे और स्वामी विवेकानंद से काफी प्रभावित थे. राधाकृष्णन का निधन चेन्नई में 17 अप्रैल 1975 को हुआ था.
जब डॉ. एस राधाकृष्णन भारत के राष्ट्रपति बने तो उनके कुछ छात्र व मित्र उनके पास पहुंचे और उनसे अनुरोध किया कि वे उन्हें अपना जन्मदिन मनाने की अनुमति दें. उन्होंने उत्तर दिया कि मेरे जन्मदिन को अलग से मनाने के बजाय इस 5 सितंबर को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाए तो यह मेरे लिए गौरवपूर्ण सौभाग्य होगा. तब से उनकी जयंती यानी 5 सितंबर को शिक्षक दिवस मनाया जाने लगा."
इसके अलावा गुरु का हमारे जीवन में एक अलग ही महत्व है जो कबीर जी के इस दोहे में भी वर्णित है...
"गुरु गोविंद दोऊ खड़े काके लागो पाएबलिहारी गुरु आपने जिन गोविंद दियो बताए।।"
अर्थात..गुरु और गोविंद दोनो ही खड़े हैं और सबसे पहले किसके पैरों को छू लूं , यह कबीर जी पहली पंक्ति में कह रहे हैं।मैं सबसे पहले गुरु के चरणों को छूऊंगा क्योंकि गुरु ही हैं वो जिन्होंने मुझे गोविंद तक पहुंचाया।
यहां आप समझ सकते हैं कि गुरु का जीवन में क्या महत्व है। बरसों पहले ही लोगो ने इस महत्व को समझ लिया था। बस मुश्किल यह है कि आज के लोग इस बात को नहीं समझते और शिक्षा भी एक व्यापार बन गया है। जिसकी वजह से काबिल विद्यार्थीयों तक शिक्षा नहीं पहुंच पाती और जिनके पास पहुंचती है उनको इसकी महत्ता का ज्ञान ही नहीं है।
"शिक्षक अंधेरे की वह लौ है जो.....हम सब के भीतर ज्ञान रूपी प्रकाश से ज्वलित है।"
~कंचन सिंगला