शीर्षक : "अधूरी घंटी"
Part 2 : हवेली का श्राप
आरव रातभर जागा रहा। उसकी आँखों में हवेली की परछाई और वह डरावनी घंटी बार-बार गूंज रही थी। वह तय नहीं कर पा रहा था कि यह सब उसका भ्रम था या कोई अदृश्य ताक़त वाकई उस हवेली में बसी हुई है। लेकिन उसके रिकॉर्डर में दर्ज घंटी की आवाज़ साफ़ बता रही थी कि उसने जो देखा-सुना, वह हकीकत थी।
सुबह होते ही वह गाँव के बुजुर्ग रामकिशन बाबा के पास पहुँचा। बाबा से हवेली का ज़िक्र होते ही उनके चेहरे का रंग उड़ गया। बाबा ने कहा—
"बेटा, उस हवेली का नाम मत लो। वो जगह शापित है। वहाँ जिसने भी कदम रखा, उसका जीवन बर्बाद हो गया।"
आरव ने जिद की—"लेकिन सच क्या है? उस घंटी की गूँज आखिर क्यों सुनाई देती है?"
बाबा ने धीमी आवाज़ में बताया—
"वर्षों पहले उस हवेली में राधिका नाम की औरत रहती थी। कहते हैं, वह पूजा-पाठ में लीन रहती थी। एक रात जब वह विशेष प्रार्थना कर रही थी, तभी अचानक आग लग गई। वह जलती हवेली से बाहर निकल नहीं सकी और अधूरी प्रार्थना के साथ उसकी मौत हो गई। लोग कहते हैं उसकी आत्मा आज भी वहीं बंधी है।"
आरव ने पूछा—"तो क्या सिर्फ़ पूजा करवाने से वह आत्मा मुक्त हो जाएगी?"
बाबा ने गहरी सांस लेते हुए कहा—
"नहीं बेटा। यह इतना आसान नहीं है। उस आत्मा की अधूरी प्रार्थना पूरी करनी होगी। लेकिन जो भी कोशिश करता है, वह जीवित नहीं लौटता।"
आरव की आँखों में डर और जिज्ञासा दोनों थे। उसने तय किया कि वह रात को फिर हवेली जाएगा।
🌙 दूसरी रात
घड़ी ने बारह बजाए और हवेली के आसमान पर काले बादल छा गए। इस बार आरव अकेला नहीं था, उसके साथ उसका दोस्त विवेक भी था। दोनों कैमरा और टॉर्च लेकर अंदर दाखिल हुए।
जैसे ही वे सीढ़ियों पर पहुँचे, घंटी की आवाज़ गूंजी—
"टन…टन…टन…"
कमरे का दरवाज़ा अपने-आप खुल गया। अंदर वही टूटी घंटी हिल रही थी। लेकिन इस बार उसके नीचे राख का ढेर था, जैसे किसी का शरीर जलकर राख बन गया हो।
अचानक हवा का तेज़ झोंका आया और कमरे में राधिका की परछाई फिर से उभर आई। इस बार उसका चेहरा और भी साफ़ दिख रहा था—आँखों में दर्द और गुस्सा दोनों।
उसने कहा—
"तुम फिर लौट आए? मेरी अधूरी प्रार्थना पूरी करो… वरना यह घंटी तुम्हें भी मेरे साथ बाँध लेगी।"
आरव ने हिम्मत जुटाकर कहा—"बताओ, मैं क्या करूँ?"
आत्मा ने चीखते हुए कहा—
"मेरी मृत्यु अधूरी पूजा के समय हुई थी। वह मंत्र अधूरा रह गया। जब तक कोई वही मंत्र पूरी श्रद्धा से पूरी नहीं करेगा, मैं मुक्त नहीं हो सकती।"
विवेक डरकर पीछे हट गया। उसने फुसफुसाकर कहा—"आरव, चल भाग यहाँ से। ये खेल हमारी जान ले लेगा।"
लेकिन आरव जिद पर अड़ा रहा। उसने तय किया कि वह मंत्र खोजेगा और प्रार्थना पूरी करेगा।
तभी अचानक कमरे का दरवाज़ा बंद हो गया। टॉर्च बंद हो गई और चारों तरफ़ अंधेरा छा गया। दोनों को सिर्फ़ घंटी की आवाज़ सुनाई दे रही थी—
"टन…टन…टन…"
और उसके बीच एक आवाज़ गूंजी—
"अब तुम लौट नहीं पाओगे… हवेली ने तुम्हें अपना लिया है।
क्या आरव सच में मंत्र खोज पाएगा, या हवेली की ताक़त उसे भी कैद कर लेगी?
विवेक का डर क्या उसे धोखा देने पर मजबूर करेगा?
और सबसे अहम—क्या राधिका की आत्मा सच में मुक्ति चाहती है, या वह और भी बड़ा रहस्य छिपा रही है?