हरे-भरे जंगल में तरह-तरह के जानवर रहते थे। हर कोई अपनी-अपनी दुनिया में खुश था। उन्हीं में से दो थे – एक खरगोश और एक कछुआ।
खरगोश अपनी तेज़ दौड़ने की क्षमता पर बहुत घमंड करता था। वह जंगल के हर जानवर से कहता –
“मुझसे तेज़ तो कोई दौड़ ही नहीं सकता। अगर कोई चाहे तो आकर मुझे चुनौती दे।”
दूसरी ओर, कछुआ बहुत शांत और धैर्यवान था। वह धीरे-धीरे चलता था, पर कभी रुकता नहीं था। उसे खरगोश का घमंड और दूसरों का मज़ाक उड़ाना अच्छा नहीं लगता था।
एक दिन खरगोश ने कछुए को देखकर ठहाका लगाया और बोला –
“अरे धीरे चलने वाले! तुमसे तेज़ तो घोंघा भी होगा। तुम्हें जंगल में चलने के लिए सालों लग जाते होंगे।”
कछुआ मुस्कुराया और शांत स्वर में बोला –
“दोस्त, घमंड अच्छी बात नहीं है। गति ज़रूरी है, लेकिन धैर्य और निरंतरता उससे भी ज़्यादा मायने रखते हैं।”
खरगोश ने व्यंग्य से कहा –
“तो क्या तुम कहना चाहते हो कि तुम मुझे दौड़ में हरा सकते हो?”
कछुए ने सिर हिलाते हुए कहा –
“अगर तुम चाहो तो हम दोनों एक दौड़ लगा सकते हैं। नतीजा समय बताएगा।”
खरगोश हँसी से लोटपोट हो गया और बोला –
“हा हा हा! कछुआ मुझे दौड़ में चुनौती देगा? ठीक है, कल सुबह सूरज निकलने पर हम दौड़ शुरू करेंगे। पूरे जंगल को गवाह बना लेना।”
दौड़ की तैयारी
अगले दिन सुबह जंगल के सारे जानवर इकट्ठा हो गए। बंदर, हिरण, हाथी, लोमड़ी, चिड़िया – सभी उत्सुकता से इंतज़ार कर रहे थे।
दौड़ का रास्ता तय किया गया: नदी के किनारे से शुरू होकर बड़े बरगद के पेड़ तक जाना और वापस लौटना।
बंदर ने ज़ोर से आवाज़ लगाई –
“सभी तैयार हो जाओ! दौड़ अभी शुरू होने वाली है।”
खरगोश ने कछुए की ओर देखकर मुस्कुराते हुए कहा –
“आज तो सबको हँसी का तमाशा देखने को मिलेगा। तुम अभी से हार मान लो, नहीं तो थक जाओगे।”
कछुआ शांति से बोला –
“दौड़ परिणाम से तय होगी, बातें करने से नहीं।”
बंदर ने अपने हाथ उठाकर कहा –
“एक, दो, तीन… शुरू!”
दौड़ की शुरुआत
दौड़ शुरू होते ही खरगोश बिजली की तरह भागा। वह इतनी तेज़ दौड़ा कि कुछ ही क्षणों में वह आधे रास्ते तक पहुँच गया।
पीछे देखा तो कछुआ धीरे-धीरे, छोटे-छोटे कदमों से चल रहा था।
खरगोश ने हँसते हुए सोचा –
“अरे! यह तो घंटों बाद पहुँचेगा। मुझे तो आराम से भी जीत मिल जाएगी।”
कछुआ लगातार चलता रहा। उसका चेहरा शांत था, कदम धीमे लेकिन मज़बूत थे।
खरगोश का घमंड
रास्ते में एक पेड़ के नीचे ठंडी छाया थी। खरगोश ने सोचा –
“क्यों न थोड़ा आराम कर लूँ? जब तक यह धीमा कछुआ यहाँ तक आएगा, मैं सोकर भी जीत सकता हूँ।”
वह घास पर लेट गया और आँखें बंद कर लीं।
धीरे-धीरे खरगोश गहरी नींद में सो गया।
कछुए का धैर्य
उधर कछुआ बिना रुके लगातार आगे बढ़ता रहा।
रास्ते में पत्थर थे, काँटे थे, लेकिन उसने रुकना नहीं सीखा।
धीरे-धीरे वह उस जगह पहुँचा जहाँ खरगोश गहरी नींद सो रहा था।
कछुए ने खरगोश की ओर देखा और मन ही मन सोचा –
“जीतने वाला वही होता है, जो अंत तक बिना रुके प्रयास करता है।”
वह धीरे-धीरे कदम बढ़ाता हुआ आगे निकल गया।
खरगोश की नींद
काफी देर बाद खरगोश की नींद टूटी। उसने अंगड़ाई ली और इधर-उधर देखा।
“अरे! कछुआ कहाँ है?”
वह तेजी से भागा, पर जब तक वह मंज़िल पर पहुँचा, तब तक कछुआ वहाँ पहुँच चुका था।
सारे जानवर तालियाँ बजाकर कछुए की जीत का स्वागत कर रहे थे।
खरगोश शर्म से सिर झुकाकर खड़ा हो गया।
परिणाम और सीख
कछुआ विजेता बना। उसने कहा –
“धीमी गति से भी मंज़िल मिल सकती है, अगर हम रुकें नहीं और धैर्य बनाए रखें।”
खरगोश ने सिर झुकाकर स्वीकार किया –
“आज मुझे घमंड की सज़ा मिली। मुझे लगा था कि मैं हमेशा जीतूँगा, लेकिन मेहनत और निरंतरता ने मुझे हरा दिया।”
उस दिन के बाद खरगोश ने कभी घमंड नहीं किया और कछुए से दोस्ती कर ली। दोनों मिलकर अक्सर जंगल में घूमते और सबको यही संदेश देते –
“तेज़ होने से ज़्यादा ज़रूरी है धैर्य, मेहनत और निरंतरता।”
कहानी से सीख (Moral of the Story)
1. लगातार प्रयास ही सफलता दिलाता है।
2. घमंड हमेशा हार की वजह बनता है।
3. धैर्य और अनुशासन सबसे बड़ी ताकत हैं।