💕💕💕 अनुबंध – एपिसोड 8 (पहली चिंगारी) 💕💕💕
सुबह का सूरज खिड़कियों से सुनहरी किरणें बिखेर रहा था।
विराट कार ड्राइव कर रहा था—चेहरे पर वही सख़्ती, पर आज कुछ हल्का-सा अलग। जैसे कोई बोझ ज़रा-सा कम हुआ हो।
अनाया साइड सीट पर बैठी थी, खामोश, लेकिन उसकी नज़रें बार-बार साइड मिरर में जाकर उससे टकरा जातीं।
वो सोच रही थी—
"क्या ये वही आदमी है जो हर बात में ग़ुस्से से भरा रहता था? या फिर… मेरे साथ रहने के बाद बदल रहा है?"
ऑफिस पहुँचे।
कॉरिडोर से गुजरते हुए सब स्टाफ ने झुककर कहा—
“गुड मॉर्निंग मैम।”
उसने हल्के से स्माइल किया, लेकिन अंदर से अब भी उसे ये “मैम” सुनकर अटपटा लगता था।
विराट अपने केबिन की तरफ चला गया।
अनाया अपने डेस्क पर बैठ गई।
लेकिन बार-बार शीशे की दीवार से उसकी नज़रें उठतीं… और हर बार उसे महसूस होता कि विराट भी उसी को देख रहा है।
वो नज़रें चुराकर फाइलों में गुम हो जाती, लेकिन दिल की धड़कन तेज़ हो जाती।
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लंच ब्रेक में नया अकाउंट डिपार्टमेंट वाला लड़का, करण, उसके पास आया।
“मैम, ये इनवॉइस क्लियर कराने का प्रोसीजर…”
वो फाइल्स समझाने लगी।
करण की बातों पर वो हल्की-सी हंसी भी हंसी—
ठीक उसी वक्त दरवाज़े पर एक परछाईं पड़ी।
वो विराट था।
आंखों में वही ठंडा गुस्सा, जो सिर्फ़ उसके लिए था।
“फाइल्स तुम मीटिंग रूम में डिस्कस करो, अनाया।”
उसका लहजा सख़्त, आदेश भरा।
करण हैरानी से बोला—“जी सर।” और चला गया।
अनाया ने भौंहें चढ़ाकर पूछा—
“ये क्या था?”
“क्या?”
“अभी-अभी जो आपने किया।”
“कुछ भी तो नहीं किया।”
“अच्छा? तो ये आपकी नज़रें क्यों कह रही थीं कि आप ग़ुस्से में हैं?”
वो थोड़ी देर चुप रहा, फिर हल्के से मुस्कुराया।
“मिसेज़ सिंघानिया… आपको गलतफ़हमी हो रही है।”
“सच?”
“सच।”
वो बिना उसकी तरफ देखे बैठ गई, लेकिन होंठों पर हल्की मुस्कान आ गई।
उसे पता था—ये पज़ेसिवनेस अजीब है… लेकिन दिल के किसी कोने में ये अच्छा भी लग रहा था।
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रात क़रीब 12 बजे।
विराट अपने स्टडी में काम कर रहा था।
नींद नहीं आ रही थी, तो वो किचन की तरफ गया।
और वहाँ…
अनाया थी।
गुलाबी नाइटसूट में, खुले बिखरे बालों के साथ, होंठों पर पानी की हल्की चमक।
वो फ्रिज से दूध निकालकर चॉकलेट पाउडर डाल रही थी।
वो ठिठक गया।
हर हरकत उसे स्लो मोशन में दिख रही थी।
“कुछ लोग दूध पीकर सोते हैं…”
वो पास आया।
“और कुछ… दूसरों की नींद उड़ा देते हैं।”
अनाया पलटी—
“आप… यहाँ?”
“तुम… यहाँ?”
उसने वही सवाल दोहराया, लेकिन नज़रें उसके चेहरे पर ही अटकी थीं।
उसने मग पकड़ा—
उसकी उंगलियाँ, उसकी उंगलियों से छू गईं।
बस एक सेकंड का स्पर्श, लेकिन हवा भारी हो गई।
वो झुककर बहुत पास आया।
“तुम्हें पता है… ये नज़दीकियां कॉन्ट्रैक्ट में नहीं हैं।”
उसकी धड़कन तेज़ थी, लेकिन होंठों पर हल्की मुस्कान आई।
“तो बदल दीजिए… क़ायदे भी।”
उसकी आंखें चौड़ी हो गईं।
दोनों के बीच बस सांसों की आवाज़ थी।
वो चुपचाप मग वापस उसकी हथेली में रखकर चला गया।
लेकिन अनाया जानती थी—आज एक नई चिंगारी जल चुकी है।
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सुबह की हल्की रोशनी पर्दों से छनकर आई।
अनाया ने आंखें खोलीं और सबसे पहले देखा—वो तकिया, हमेशा की तरह फ़र्श पर पड़ा था।
उसका दूसरा झटका—
विराट का हाथ उसकी कमर पर था, उसकी कुर्ती के अंदर तक।
उसका चेहरा एकदम पास… उसकी सांसें उसकी गर्दन पर।
वो लाल हो गई।
धीरे से उसका हाथ हटाकर उठ गई।
ड्रेसिंग टेबल के सामने खड़े होकर अपने गालों की लाली को छुपाने लगी।
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डाइनिंग टेबल पर उसने हल्की-सी सिल्क साड़ी पहनी थी।
माथे पर छोटी-सी बिंदी, हाथों में पतली चूड़ियां।
वो सर्व कर रही थी, तभी विराट आया—काले सूट में, बाल सधे हुए, आँखों में वही ठंडापन और आकर्षण।
आरव मुस्कुराया—
“वाह भाभी, आज तो क्या ही लग रही हो।”
विराट ने उसे घूरा।
“खाना खा, आरव।”
नाश्ते के बाद विराट जाने लगा, लेकिन अचानक रुक गया और कहा—
“टाई बांध दो।”
वो पास आई, टाई पकड़कर उसके कॉलर के पास खड़ी हो गई।
उसने थोड़ा झुककर अपनी नज़रें उसकी आँखों के बराबर कर दीं।
उसकी उंगलियाँ नॉट पर थीं… और नज़रें उसकी आँखों में अटक गईं।
वो हल्के से मुस्कुराया और उसकी कमर पर हाथ रख दिया।
“मिसिज़ सिंघानिया… क्या आप आज ऑफिस जा रही हैं?”
उसका गला सूख गया।
“जी… हाँ।”
“तो मेरे साथ चलिए।”
उसका लहजा आदेश था, पर आँखों में नरमी।
उसने धीमे से सिर हिलाया—“ठीक है।”
उस दिन ऑफिस से लौटते वक्त, कार की खिड़की से बारिश की हल्की फुहारें गिर रही थीं।
कार रुक गई—ट्रैफ़िक सिग्नल पर।
उसने देखा, अनाया की कलाई पर हल्की-सी खरोंच थी।
“ये कब हुआ?”
“कुछ नहीं… कल फाइल उठाते वक्त लग गई।”
उसका हाथ पकड़ लिया।
वो चौंकी—“विराट!”
उसने धीरे से उसकी कलाई को होंठों के पास ले जाकर हल्का-सा चुंबन दिया।
उसका दिल जैसे कानों में धड़क रहा था।
“अब ठीक है।”
उसका लहजा बहुत धीमा, पर बहुत गहरा था।
अनाया स्तब्ध उसे देखती रह गई।
वो चाहकर भी कुछ बोल न पाई।
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उस रात डिनर के बाद दोनों अकेले छत पर बैठे थे।
बारिश रुक चुकी थी, लेकिन फिज़ा में नमी और ठंडक थी।
वो चुपचाप उसके पास आई, हाथों में कॉफी के कप लेकर।
उसने कप लिया, लेकिन उसका हाथ थोड़ी देर तक थामे रखा।
“अनाया…” उसकी आवाज़ भारी और मुलायम थी।
उसने उसकी हथेली को अपनी हथेली में लेकर धीरे-से उसके हाथ पर चुंबन दिया।
उसके होंठों की गरमी उसकी त्वचा पर उतर आई।
अनाया की आँखें बंद हो गईं।
उस पल में जैसे सब रुक गया—हवा, समय, और उनकी दूरी भी।
वो एक-दूसरे को बस देख रहे थे।
कोई शब्द नहीं, बस आँखों की गहराई।
पलकों पर जैसे अनकहा भार था, और दिलों में हजार सवाल।
कहीं से हल्की-सी आवाज़ आई—
🎶 “तुम ही हो… अब तुम ही हो, ज़िंदगी अब तुम ही हो…” 🎶
ये गाना जैसे दोनों की चुप्पी को शब्द दे रहा था।
वो उसकी आँखों में देखता रहा, मानो कह रहा हो—
“मैं डरता हूँ, लेकिन तुम्हारे बिना रह भी नहीं सकता।”
और उसकी आँखें जवाब दे रही थीं—
“मैं समझती हूँ… और शायद… तुम्हें चाहती भी हूँ।”
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समय गुज़रता रहा।
हर सुबह वही टाई बांधने की रूटीन।
हर नाश्ते पर छोटी-छोटी झुंझलाहटें और मुस्कानें।
कभी कॉफ़ी का कप आधा-आधा, कभी फाइल्स पर छोटी बहसें।
कभी खामोश ड्राइव, कभी अचानक हंसी।
बाहर से कोई देखता, तो कहता—“परफेक्ट कपल।”
लेकिन दोनों जानते थे—ये कहानी परफेक्ट नहीं है।
फिर भी… अब ये कहानी सिर्फ़ कॉन्ट्रैक्ट नहीं रही थी।
अब इसमें पहली चिंगारी जल चुकी थी… और शायद वो चिंगारी ही आगे आग बनने वाली थी।
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कॉन्ट्रैक्ट ने हमें करीब रखा, लेकिन इन अनकहे इशारों ने हमें बाँधना शुरू कर दिया था। ✨
©Diksha
जारी(....)
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