The Risky Love - 23 in Hindi Horror Stories by Pooja Singh books and stories PDF | The Risky Love - 23

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The Risky Love - 23

चैताक्षी की चिंता...

अब आगे.............

बौनो का राजा विवेक को रोकते हुए कहता है....." तुम अपने साथ ये विषमारक पत्ते लेकर जाओ ध्यान रखना जब वो तुमपर वार करे तो तुम तुरंत इन्हें खा लेना इससे तुम पर उसका असर नहीं पड़ेगा....और इस खंजर को अपने पास रखो...."
विवेक मुस्कुरा कर कहता है...." इतने छोटे से खंजर से उसे कुछ नहीं होगा...."
बौनो का राजा उसे घूरते हुए कहता है...." ये कोई साधारण खंजर नहीं है , इसके आकार में वृद्धि होती रहती हैं , और अपनी सुगमता के लिए इसकी धार में भी परिवर्तन होता है..."
विवेक उनसे माफी मांगकर कुछ बौनो के साथ चला जाता है....
उन बौने के बताए अनुसार विवेक उसके बिल तक पहुंच चुका था , उसने अपने बौनो के जरिए मिले खंजर को हाथ में लेकर उस बड़े से बिल पर एक डंडे से वार किया , चार पांच बार ऐसे ही उस बिल पर मारने बहुत जोर की फुसकारने की आवाज हुई जिसे सुनकर विवेक थोड़ा नर्वस हो जाता है लेकिन दूसरे ही पल वो उस बिल में एक बड़ा भंयकर सांप फन उठाता हुआ बाहर आ चुका था , , 
अब विवेक और वो सांप आमने सामने आ चुके थे , , सांप विवेक को देखकर गुस्से में देखते हुए फुंफकारने लगता है , , एक दो बार बचने के बाद विवेक उसके फन पर  डंडे से एक जोरदार वार करता है जिससे वो नीचे गिर जाता है लेकिन इस बार वो दोबारा गुस्से में उसके पास आकर डसने की कोशिश करता है और इस बार वो कामयाब हो चुका था , विवेक के कंधे पर उसके दांतो के निशान बन चुके थे , उसके जहर के कारण उसके सामने अंधेरा छाने लगा था , जिससे वो बौने तुरंत विवेक से कहते हैं..." तुम जल्दी से उन पत्तों को खा लो...."
विवेक को उन पत्तों का ध्यान आता है वो तुरंत दो पत्तों को खा लेता है जिससे उसपर से जहर का असर खत्म हो चुका था....
उस सांप ने विवेक को अपने में लपेट लिया था जिससे विवेक उसकी पकड़ से छुटने की कोशिश करने लगा लेकिन उसकी मेहनत बेकार हो रही थी .....
उधर दूसरी तरफ चेताक्क्षी अपनी क्रिया से काफी हद तक  संतुष्ट दिख रही थी लेकिन फिर भी वो किसी तरह की कोई लापरवाही न हो जाए इसलिए माता काली के सामने रखी किताबों को पढ़ने लगती है लेकिन उसकी उम्मीद विवेक पर ही टिकी हुई थी , इसलिए बार बार बाहर की तरफ देख रही थी जहां अब लगभग दोपहर हो चुकी थी , , किताबों को पढ़ते हुए चेताक्क्षी की नजर एक छोटे से बक्से पर जाती है जिसे देखकर वो अमोघनाथ जी से पूछती है...." बाबा , इस बक्से में क्या है..?..."
अमोघनाथ जी उस बक्से को देखकर कहते हैं..." चेताक्क्षी इस बक्से में वो खंजर है जिसे आदिराज जी ने अदिति और अपने रक्त कणों से निर्मित किया है , ...."
" ये खंजर क्यूं बनाया है बाबा....?.." चेताक्क्षी  उस बक्से को खोलने के लिए जैसे ही हाथ बढ़ाती है तभी अमोघनाथ जी उसे रोकते हुए कहते हैं..." चेताक्क्षी , इसे मत खोलना , ये केवल अदिति के हाथों ही खुल सकता है , इस खंजर को आदिराज जी ने उस बेताल को खत्म करने के लिए बनाया था लेकिन...." इतना कहकर रूक जाते हैं , 
" लेकिन क्या बाबा...?.."
अमोघनाथ जी उदासी भरे शब्दों में कहते हैं..." लेकिन उसकी आत्मा कहां गई पता नहीं चला ...?..."
इधर विवेक काफी कोशिश करने के बाद भी उस सांप की पकड़ से छुटने में नाकामयाब रहे जाता है , लेकिन उसने हार नहीं मानी थी , इसलिए वो खंजर निकालकर उसपर मारना शुरू कर देता है , जिससे एक दो वार में ही उसकी पकड़ ढीली हो जाती है , जिससे विवेक उससे बच जाता है , ...
इस बार उस सांप पर‌ विवेक ने की सारे वार कर दिए थे जिससे वो बुरी तरह जख्मी हो चुका था , , अब विवेक ने अपनी पूरी ताकत से उसके मुंह पर वार किया था जिसके कारण वो बेसुध सा पड़ जाता है , , ..
इस सांप के मर जाने से सभी बौने बहुत खुश हो जाते हैं , , आखिर में बौनो का राजा उसे बधाई देकर कहता है..." हमारी जान बचाने के लिए धन्यवाद , , अब तुम जाओ सकते हो लेकिन ध्यान रखना अगले पड़ाव में तुम्हें हमारी तरह साधारण जीव नहीं मिलेंगे , , आगे तुम्हारे लिए खतरा है उन छलावी कन्या से , जो तुम्हारे मार्गं को अवरोध करेंगी , , उनसे बचकर निकलने के लिए तुम्हें अपने दिल को मजबूत करना होगा , , अब तुम जाओ सकते हो..."
विवेक वहां से चला जाता है , , , उसकी नज़र अपने सप्त शीर्ष तारा पर पड़ती है जिसमें केवल तीन ही चमक बची थी विवेक जल्दी जल्दी आगे बढ़ने लगता है , , 
बौनो का जंगल पार करने के बाद अब वो एक बहुत ही सुंदर से जंगल में पहुंच चुका था जहां केवल फूलो से लदे पेड़ ही पेड़ थे , नदियों में फूलों के डह जाने से काफी खुशबू फैल रही थी , इस वातावरण में विवेक काफि को चुका था , , और प्यास के कारण वो नदी के किनारे पहुंच चुका था....
वो जैसे ही नदी में पानी पीने के लिए बढ़ता है तभी उसे पायल की झनकार की आवाज सुनाई पड़ती है जिसे सुनकर वो पीछे मुड़कर देखता है तो एक सुंदर सी कन्या हाथ में मटका लिए उसके सामने खड़ी मुसृकुराते हुए पूछती है...." मुसाफिर हो...?... क्या तुम्हें प्यास लगी है...?.."
विवेक उसे देखते हुए हां में सिर हिला देता है जिससे वो लड़की उसे पानी पिलाने लगती है...
विवेक जैसे ही वो पानी पीकर हटता है , कुछ ही दूर में वो बेहोश होकर नीचे गिर जाता है. ‌‌...।
उधर चेताक्क्षी अमोघनाथ जी से पूछती है..." बाबा हम उस बेताल को नहीं ढूंढ पाएंगे...?.."
अमोघनाथ जी कुछ सोचने लगते हैं तभी आदित्य चिल्लाता है...." चेताक्क्षी ये रोशनी ख़त्म क्यूं हो रही है..?.."
चेताक्क्षी जल्दी से उस मूर्ति के पास जाकर देखकर हैरान रह जाती है.....
" नहीं ऐसा नहीं होना चाहिए...?..."
 
............ to be continued.........