The Risky Love - 26 in Hindi Horror Stories by Pooja Singh books and stories PDF | The Risky Love - 26

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The Risky Love - 26

कांकली जंगल में विवेक 

अब आगे.............

विवेक के इस सवाल पर सुहानी मुस्कुराते हुए कहती हैं...." हम छलावी कन्या है , , हमारा रुप कभी नहीं मुरझाता , , हम इस मायावी नगरी की अप्सराएं है , , हमारा कर्तव्य मनुष्य को भ्रमित करना है , , जैसे हमने तुम्हें करना चाहा , किंतु तुम्हारे प्रेम के आगे हमारी शक्तियां कम पड़ गई ,  , तुम हमारी परिक्षा में सफल हुए हो इसलिए ये  जाओ , अपने गंतव्य पथ पर....
विवेक उसकी बात सुनकर वहां से चला जाता है....
इधर चेताक्क्षी यज्ञ कुंड के पास बैठी उस लाल पोटली को खोलकर मिट्टी को चौकोर के आकार में बिछाती हैं , फिर उसमें चारों तरफ मौली में लिपटी हुई सुपारी को रखती है , फिर उसके बीचों बीच उस छोटी सी मूर्ति को रखती है जिसे अदिति के प्रतिरूप में बनाया था..... उसके ऐसा करने से आदित्य गुस्से में कहता है...." इन सबसे क्या होगा चेताक्क्षी ...?... मुझे तो अब बस एक ही रास्ता दिखाई दे रहा है वो है हमें उसके पुराने किले पर जाकर , वहां से अदिति को वापस लाना...."
चेताक्क्षी उसे समझाते हुए कहती हैं....." शांत रहो आदित्य , तुम बिल्कुल भी ऐसा नहीं कर पाओगे , , काकी ने तुम्हें बताया होगा न , काका उस पिशाच को रोकते हुए ही , हमेशा के लिए यहां से चले गए... तो तुम खुद सोचो तुम उसका सामना कैसे करोगे ... इससे तुम अदिति को भी खो लोगों... इसलिए शांत रहो जबतक विवेक खंजर लेकर नहीं आ जाता...."
आदित्य परेशान सा कहता है...." लेकिन इन सबसे क्या होगा..?... क्या मेरी बहन को कुछ नहीं होगा...?...तुम इतना विश्वास से कैसे कह सकती हो....??.." 
" आदित्य , अब इस क्रिया को कोई नहीं रोक सकता और इससे अदिति सुरक्षित रहेगी , थोड़ा रुको अभी तुम्हे पता चल जाएगा...."
आदित्य उसकी बात सुनकर चुपचाप वहीं बैठ जाता है......वहीं कुछ ही देर में उस मूर्ति में अचानक तेज रोशनी होने लगती है , इस रोशनी के निकलते ही दूसरी तरफ गामाक्ष को एक तेज झटका लगता है और उस यज्ञ वेदी की आग बुझ जाती है , , जिससे उस भयानक मूर्ति से निकलती रोशनी जो अदिति को तकलीफ़ पहुंचा रही थी अचानक खत्म हो जाती है , , जिसे देखकर गामाक्ष बौखला जाता है , और गुस्से में चिल्लाता है...." ये सब कैसे हो रहा है...?...उस अमोघनाथ के पास इतनी शक्ति इतनी ऊर्जा कहां से आई...?.." 
उबांक उसे शांत कराते हुए कहता है...."दानव राज , , ये सब कोई और ही कर रहा है , उस अमोघनाथ ने ये क्रिया नहीं की और ही कर सकता है , जरुर कोई और ही तांत्रिक है जो उसकी सहायता कर रहा है...."
" लेकिन कौन है उबांक ....?..."
उबांक कुछ सोचते हुए कहता है....." ये सब चेताक्क्षी कर रही है.... बेताल की बेटी...."
गामाक्ष हैरानी से पूछता है....." लेकिन वो इतनी बड़ी क्रिया कैसे कर सकती हैं...?..."
" आप भूल रहे हैं , , चेताक्क्षी कोई साधारण सी कन्या नहीं है और उसकी मां भी खुद तंत्र विद्या को जानती थी , उसके पास भी कई ऐसे उपाय है , जिनका तोड़ आपके पास भी नहीं है....." 
गामाक्ष उबांक की बात से काफी परेशान हो जाता है....." कुछ तो करना पड़ेगा उबांक , अगर तुम भी ऐसे ही नहीं रहना चाहते तो जाओ , उसके काम में बाधा उत्पन्न करो..."
उबांक गुस्से में कहता है....." मैं ऐसा नहीं होने दूंगा , मैं चेताक्क्षी को वनदेवी की सुरक्षा नहीं करने दूंगा..." इतना कहकर उबांक वहां से चला जाता है.......
 , , इधर उस रोशनी को देखकर चेताक्क्षी चहकती हुई कहती हैं...." देखो आदित्य , ये क्रिया सफल रही , , अब इस सुरक्षा कवच को वो गामाक्ष नहीं तोड़ सकता है....."
आदित्य सवालिया नज़रों से उसे देखते हुए कहता है....." मुझे कुछ समझ नहीं आया चेताक्क्षी , ऐसी रोशनी तो कई बार निकलती है और फिर खत्म हो जाती है....तो इसमें नया क्या है...?..."
चेताक्क्षी उसकी निराशा भरी बातों को समझाते हुए कहती हैं....." नहीं आदित्य इस बार ये रोशनी ख़त्म नहीं होगी , , उस मिट्टी की सकारात्मक शक्तियो ने अदिति के चारों तरफ एक अभेद सुरक्षा कवच बनाया है , जिससे वो गामाक्ष अब अदिति को नहीं छू सकता.... लेकिन ऐसा नहीं है की ये स्थाई है , कल शाम के बाद इसकी ऊर्जा खत्म हो जाएगी और फिर अदिति को कोई नहीं बचा सकता , ब उम्मीद करो विवेक कल तक वो खंजर लेकर आ जाए..." 
आदित्य झरोखे में से देखते हुए कहता है ...." शाम हो चुकी है , पता नहीं विवेक कबतक लौटेगा....?..."
चेताक्क्षी उससे बताती है...." आदित्य जितना सरल तुम समझ रहे हो उस खंजर को लाना , उतना सरल है नहीं , वो बहुत ही दिव्य खंजर है , जिसे बहुत ही गुप्त तरीके से रखा होगा , जिसे पाना इतना पाना सरल नहीं है , बस हम उम्मीद करते हैं विवेक हर परेशानी से निकलकर उस खंजर को हासिल कर लें....
उधर विवेक सुहानी के महल से निकल चुका था , , जोकि अब कंकाली जंगल पहुंच चुका था , , जहां का माहौल काफी डरावना था , जैसा कि नाम से ही पता चल रहा था , कंकाली जंगल , , वहां हर जगह मानवीय , पशु पक्षीयो के कंकाल फैले पड़े थे , , जिसे देखकर विवेक को घबराहट होने लगती है.....
" ओह , ये जंगल है या कब्रिस्तान , हर‌ जगह खोपड़ियां ही पड़ी है , , हे भोलेनाथ , जैसे हर बार मुझे बचाने में आपने मदद की ही बस एक बार इस जंगल से भी निकलने में कर दे...., इस तारे की लाइट भी बस दो ही बची है....बस जल्दी से वो खंजर लेकर पहुंच जाऊं , फिर मेरी अदिति को मैं उस पिशाच से छुड़ा लूंगा...."
विवेक संभलते हुए उस जंगल से गुजर रहा था , , उसके कदम कंकालों की वजह से लड़खड़ा रहे थे , , फिर भी चलते चलते वो एक तालाब के किनारे पहुंच चुका था , , मौसम ने भी अपना रुख बदल लिया था , आसमान में घने काले बादल छा चुके थे , , जोकि उस भयानक जगह को और भी डरावना बनाने लगे थे , ...बादल में तेज गर्जन के साथ जोरों से बारिश पड़ने लगी , , जिसकी वजह से विवेक उस बारिश से बचने के लिए एक पेड़ के नीचे चला जाता है , , लेकिन तभी उसके पेड़ से सटने की वजह से किसी ने उसे पेड़ से जकड़ लिया था , ....
 
............... to be continued.............