The Risky Love - 29 in Hindi Horror Stories by Pooja Singh books and stories PDF | The Risky Love - 29

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The Risky Love - 29

चैताक्षी क्या करने वाली है 

विवेक उतावला सा जल्दी जल्दी मंदिर की तरफ जा रहा था , , , वो उस मंदिर के तोरण द्वार तक पहुंच चुका था , जहां वो हाथ जोड़कर आगे बढ़ता है तभी एक आवाज आती है....

." रूको....तुम अंदर नहीं आ सकते...."
अब आगे.........
उस तोरण द्वार पर दो आधे नाग और आधे इंसान ने विवेक को रोकते हुए कहा है....." कोई भी इस तोरणद्वार से आगे नहीं जा सकता...."
विवेक उसे देखते हुए कहता है...." क्यूं नहीं जा  सकता...?..."
दूसरी तरफ फिर एक बार रौबदार आवाज आती है......" ये कोई साधारण जगह नहीं है , नागप्रदेश है , और तुम साधारण से मानव यहां नहीं आ सकते....."
विवेक पोलाइटली कहता है....." मेरा महाकाल के मंदिर में जाना बहुत जरूरी है , इसलिए मुझे जाने दो..."
" बड़े अजीब इंसान हो जब हमने कहा यहां से आगे कोई इंसान नहीं जा सकता तो तुम जिद्द क्यूं कर रहे हो , , वो महाकाल का मंदिर किसी साधारण मानव के लिए नहीं बना है , वहां केवल हम जैसे सर्प ही पूजा पाठ करने जाते हैं , तुम वहां नहीं जा सकते...."
विवेक दोबारा कहता है....." देखो मेरा जाना बहुत जरूरी है इसलिए मुझे मत रोको , ..."
वो सर्प सिपाही विवेक को आगे नहीं जाने देते हैं , तब विवेक और उसकी बहस शुरू हो जाती है.....
इधर अमोघनाथ जी चेताक्क्षी के अचानक जाने से परेशान होकर उससे पूछते हैं...." चेताक्क्षी तुम इतनी देर से बाहर क्या कर रही थी...?... यहां की विधि अधूरी छोड़कर क्यूं चली गई.....?..." 
" बाबा आप इतने परेशान मत हो, हम किसी काम से बाहर गए थे और वो आधा पूरा हो गया है और आधा बाकी है....."
" मैं कुछ समझा नहीं चेताक्क्षी...?..."
चेताक्क्षी उस पंख को दिखाते हुए कहती हैं...." बाबा ये हमें मिल चुका है...."
अमोघनाथ जी चेताक्क्षी  के हाथ में पकड़े हुए उस काले पंख को देखते हुए पूछते हैं...." इस पंख से क्या होगा चेताक्क्षी...?..."
" बाबा ये कोई साधारण पक्षी का पंख नहीं है , ये उस गामाक्ष के चमगादड़ का पंख है...."
अमोघनाध जी उसे लेने की कोशिश करते हैं लेकिन चेताक्क्षी उन्हें रोकते हुए कहती हैं...." बाबा , आप इस पंख को मत छुना , ये आपको नुकसान पहुंचा सकता है...."
" इस पंख को तुमने कैसे लिया...?..."
चेताक्क्षी अमोघनाथ जी को बीती रात की घटना बताते हुए कहती हैं....." तो बाबा , हमने उसका ये पंख इस लिए लिया है ताकि हम जान सके उसकी शक्तियों को जान सके और शायद हमें ये भी पता चल जाए कि बेताल की आत्मा कहां है..." इतना कहकर चेताक्क्षी यज्ञ वेदी के पास जाने लगी...
" ठीक है चेताक्क्षी तुम्हें जैसा ठीक लगे करो , , मैं तुम्हारी मदद करूंगा...."
दूसरी तरफ उबांक झटपटाते हुए गामाक्ष के पास पहुंचता है , उसे तड़पते हुए देख गामाक्ष हैरानी से पूछता है...." क्या हुआ उबांक इस तरह क्यूं मचल रहे हो...?..."
उबांक बैचेनी से उड़ते हुए कहता है....." दानव राज , चेताक्क्षी ने अपनी बुद्धिमत्ता से जान लिया कि आप उसको चेतावनी देने के लिए जरूर भेजोगे , और इसी बात को मैं समझ नहीं पाया कि वो भी एक प्रेत का अंश है जोकि हमारी गतिविधियों को जान सकती है और मैं उसके पीछे पीछे खाली मैदान में पहुंच गया जहां उसने आपको चेतावनी देते हुए मुझपर अभिमंत्रित भभूत डाल दी और मैं इस हाल में आ गया....."
गामाक्ष उसे शांत करने के लिए उसपर खून की बूंदें डालता है जिससे वो‌ शांत हो जाता है.......
उधर विवेक और उस नागपुरुष की बहस काफी बढ़ चुकी थी , , जिसकी आवाज सुनकर उन नागो का सेनापति आकर दोनों को अलग करते हुए अपने सिपाही से पूछता है....." क्या हुआ क्यूं इतना शोर मचा रखा है....?...."
वो सिपाही चुपचाप सिर झुकाए खड़े होकर कहते हैं....." सेनापति जी , ये साधारण सा मानव महाकाल के मंदिर में जाने की जिद्द कर रहा है....."
सेनापति विवेक को ऊपर से नीचे तक देखते हुए कहता है....." तुम्हें साधारण मानव लग रहा है , जो इस मायानगरी में और चार जंगल पार करके जिंदा यहां तक पहुंच जाए वो साधारण मानव नहीं है जरूर इसपर महाकाल की कृपा है...." सेनापति विवेक के पास जाकर कहता है...." तुम यहां क्यूं आए हो...?...."
" मुझे आपके नागदेव से मिलना है..." 
उनका सेनापति सहमति जताते हुए विवेक को अपने साथ उस मंदिर की तरफ ले जाता है , ... बहुत अपनी मंजिल के बहुत करीब पहुंच चुका था , इसलिए उसकी बैचेनी और चिंता भी बढ़ने लगी थी......
इधर चेताक्क्षी उस पंख को जमीन पर रखकर उसके आसपास अक्षत से सितारा की आकृति बनाने लगी , , आदित्य और अमोघनाथ जी चेताक्क्षी के पास बैठे उसकी इस क्रिया को देख रहे थे , , 
चेताक्क्षी सितारा बनाने के बाद अमोघनाथ जी से कहती हैं....." बाबा , अब आप अपनी प्राकट्य शक्ति का उपयोग करके इस पंख से जुड़े उस गामाक्ष की कमजोरी का पता करो..... जहां पर हम उस खंजर से उसपर वार कर सके..."
अमोघनाथ जी हां में सिर हिलाते हुए अपनी आंखें बंद करके मंत्रों को उच्चारित करने लगते हैं , ....तो वहीं आदित्य चेताक्क्षी से कहता है......" सुबह काफी हो चुकी है और विवेक का कुछ पता नहीं तो क्या उस खंजर के अलावा दूसरा कोई रास्ता नहीं है.....?..."
" आदित्य तुम्हें अपनी बहन के प्यार पर भरोसा नहीं है , तुम उसे अच्छे से जानते हो , ..."
आदित्य टेंस्ड होकर कहता है....." जानता हूं चेताक्क्षी लेकिन, , हम ये भी नहीं जान पा रहे हैं कहीं विवेक तो किसी मुसिबत में नहीं फंस गया , अगर हां तो हम उसकी मदद तो कर सकते है...."
चेताक्क्षी उसे समझाते हुए कहती हैं...." हम उसके बारे में नहीं जान सकते , बस उसका इंतजार करो वो शाम होने से पहले लौट आए.... नहीं तो सिर्फ एक ही उपाय है....."
" वो क्या चेताक्क्षी...?..."
इधर नागसेनापति विवेक को लेकर मंदिर के अंदर पहुंच चुका था जहां नागदेव शिवजी की पूजा करके उठ ही रहे थे , अचानक अपने पीछे खड़े विवेक को देखकर सेनापति से पूछते हैं....." ये कौन है प्राजिल...??.."
" महाराज ये मानव आपसे मिलने के लिए जिद्द कर रहा था इसलिए हम इसे यहां ले आए...."
नागदेव सेनापति की बात सुनकर बहुत गुस्से में कहते हैं.....
 
..............to be continued.............