पहेलियों का खेल
अपनी हैरानी जताते हुए विवेक ने उस हंस से पूछा...." मैं इस पानी में सांस कैसे ले पा रहा हूं...?..."
अब आगे...........
हंस उससे कहता है....." ये पानी नहीं है , केवल उसकी छाया है , , ये छाया केवल सुरक्षा के लिए बनाई गई है कोई भी मेरी इजाजत के बिना अंदर नहीं जा सकता , , अब चलो मेरे साथ...."
विवेक उस हंस के पीछे पीछे उस तालाब के आखिरी छोर तक पहुंच चुका था , जहां पर छोटी छोटी सीढियां बनी हुई थी.....विवेक चारों तरफ देखते हुए कहता है...." यहां पर खंजर कहां है...?..."
हंस जल्दी से एक सीढ़ी पर चढ़ता है तभी सब तरफ उजाला सा फ़ैल जाता है और एक सफेद सी रोशनी आने लगती है...जिस तरफ से ये रोशनी आ रही थी , उस तरफ दिखाते हुए वो हंस कहता है ....." वो रहा खंजर ...अब आगे जाकर उसे तुम खुद ले लो , ..."
विवेक हैरानी से उससे पूछता है...." तुम नहीं जाओगे..?..."
" नहीं , मैं केवल उस तालाब का रक्षक हूं , आगे तुम्हें खुद ही , जबाव देते हुए जाना होगा...."
" जबाव वो कैसा जवाब....?..."
हंस जाते हुए कहता है....." खंजर के रक्षकों की पहेली...." इतना कहकर वो वहां से वापस ऊपर की तरफ चला गया....
और विवेक आगे बढ़ता हुआ उस खंजर को लेने चल देता है.... धीरे धीरे वो करीब आठ सीढियां चढ़कर ऊपर पहुंच चुका था जहां उसके सामने एक चट्टान के चारों तरफ पानी था और हवा में झुल रही सफेद रोशनी को देखकर कहता है...." शायद यही खंजर है..."
विवेक जल्दी से उस तरफ बढ़ने लगता है.... तभी उसे आवाज आती है....
" ठहरो...!...तुम आगे नहीं जा सकते.... पहले मेरे सवालों का जवाब दो...."
विवेक इधर उधर देखते हुए कहता है....." कौन हो तुम...?... सामने आओ....."
दूसरी तरफ से आवाज़ आती है....." पहले मेरे सवालों का जबाव दो......
विवेक उस सप्त शीर्ष तारा को निकालकर देखता है जिसमें केवल एक ही रोशनी बची थी , उसे देखकर चिढ़ते हुए विवेक कहता है....." देखो मेरे पास तुम्हारे सवालों का जवाब देने का समय नहीं है , मुझे जल्दी ही वो दे दो...."
दूसरी तरफ से फिर वही आवाज आती है....." पहले मेरे सवालों का जबाव दो...."
विवेक उसकी बातों को अनसुना करते हुए आगे बढ़ने लगता है , तभी उसे पीछे की तरफ धक्का लगता है और वो नीचे गिर जाता है...
" कौन हो तुम सामने क्यूं नहीं आते...?.."
" पहले सवालों का जबाव उसके बाद...."
विवेक खड़ा होकर बेमन से कहता है....." ठीक है मैं तुम्हारे सवालों का जवाब दूंगा , पुछो ...."
" तुम्हें मेरे पांचों सवालों के सही जबाव देने होंगे तभी तुम इस खंजर को ले सकते हो , अन्यथा ये खंजर तुम्हारे हाथ नहीं लगेगा......"
" ठीक है..."
वो अदृश्य इंसान कहता है....." सुनो ....और बताओ......
"ऐसी कौन सी चीज है ..?.. जिसे हम देख सकते हैं लेकिन छु नहीं सकते...?..."
विवेक काफी सोचते हुए अपने फोन की तरफ बढ़ता है पर अफसोस उसका फोन स्विच ऑफ हो चुका था..इधर उधर सोचने के बाद वो आदिराज वाले पैंडेंट को निकालकर कर अपने आप से कहता है...." अंकल मेरी भी मदद कर दो कर आपने सबकी हेल्प की और मैं अदिति को बचाने के लिए इन पहेलियों पर आकर अटक चुका हूं.....हे भोलेनाथ मदद करो ..." इतना कहकर विवेक उस पैंडेंट को माथे से लगाकर वापस अपनी पोकेट में रख लेता है.....
उसके थोड़ी देर बाद सोचते हुए कहता है...." सपना.... जिसे हम देख सकते है लेकिन छु नहीं सकते......"
उस अदृश्य इंसान की आवाज आती है....." बिल्कुल सही ...अब बताओ दूसरा....."
" ऐसी कौन सी चीज है...?... जिसे हम दिन में कई बार उठाते हैं और कई बार रखते हैं....?..."
विवेक कुछ ही मिनटों में उसका जवाब देते हुए कहता है..." कदम ... जिसे मैं हर रोज उठाता और रखता हूं....."
" ऐसी कौन सा फल है...?...जो होता तो मीठा है लेकिन उसे खा नहीं सकते...?..."
विवेक काफी सोचने लगता है और अपने आप पर चिढ़ते हुए कहता है......" ये जमाना कोई पहेलियों का है , , मैं यहां किसी से हेल्प भी नहीं ले सकता .... बड़ी मां सही कहती थी , थोड़ा पढ़ लिया कर , अब इसका जबाव क्या होगा... ऐसा कौन सा फल है......?...." तभी सोचेते हुए कहता है....
" मेहनत का फल..... मां हमेशा कहती हैं बेटा मेहनत कर उसका फल बहुत मीठा होता है...." विवेक ने ये बात मजाकिया अंदाज में कहीं थी.....
वो अदृश्य इंसान कहता है......" बिल्कुल सही जबाव है...अब बताओ अगला..."
" ऐसा क्या है..?..जो होता तो बहुत किमती है लेकिन मिलता बहुत सरलता से है , और उसे सहेज पाना उतना ही कठिन है....?...."
इसका जबाव विवेक कुछ ही सेकंड में देते हुए कहता है...." प्यार......." आगे अपने आप से कहता है...."वो बहुत किमती होता है... जिसे मैं सहेज नहीं पाया और वो उस पिशाच की कैद में है..."
" सही जबाव...अब ये आखिरी सवाल है उसके बाद ये दिव्य खंजर तुम्हारा...."
विवेक अपने सप्त शीर्ष तारा पर नजर डालता है जिसमें एक आखिर रोशनी भी कम होने लगी थी.... विवेक उससे घबराते हुए कहता है...." जल्दी पूछो..."
" ऐसी कौन सी चीज है...?... जिसे तोड़ने पर आवाज नहीं आती....?..."
विवेक उसके सवालों से काफी परेशान हो चुका था ,
इधर चेताक्क्षी आदित्य और बाकी सब भी अब मंदिर के बाहर आ चुके थे जहां वो सब विवेक के आने का वेट कर रहे थे , तो अमोघनाथ जी , अभी भी अपने मंत्रों की क्रिया में लगे हुए थे.......
सूरज बस ढलने ही वाला था..... आसामान में अजीब सी हलचल शुरू होने लगी थी.... जिसे देखकर गांव वाले काफी सहम गए थे , , चेताक्क्षी आसमान की तरफ देखते हुए कहती हैं....." विवेक जल्दी वापस आ जाओ...."
इशान काफी घबराया हुआ उसके पास आकर पूछता है....." तुम तो एक ज्योतिषी हो तो बताओ न विवेक कहां है इस टाइम...?..."
चेताक्क्षी मायुसी भरी नजरों से उसकी तरफ देखते हुए कहती हैं....." अफसोस हमारे पास ये विद्या नहीं है , ये केवल आदिराज काका के पास थी और बाबा के पास भी केवल सीमित शक्तियां हैं , वो उस खंजर के स्थान के बारे में नहीं जान सकते.... इसलिए केवल प्रतिक्षा ही करनी पड़ेगी..."
आदित्य डरते हुए कहता है....." चेताक्क्षी हम ऐसे हाथ पर हाथ रखकर नहीं बैठ सकते , हमें भी कुछ करना चाहिए, , पता नहीं मेरी बहन किस हाल में होगी.....?...."
तभी अमोघनाथ जी हड़बड़ाते हुए उनके पास आते हैं......
.............to be continued..........