thief and policeman in Hindi Thriller by Vijay Erry books and stories PDF | चोर सिपाही

Featured Books
Categories
Share

चोर सिपाही

चोर सिपाही 
✍️ लेखक – विजय शर्मा एरी


---

रात का सन्नाटा था। अमृतसर शहर के पुराने इलाके की गलियों में हर तरफ सन्नाटा पसरा था। कहीं–कहीं कुत्तों के भौंकने की आवाज़ें आ रही थीं। लेकिन उसी सन्नाटे में एक परछाई बिजली की तरह फुर्ती से दीवार फाँदकर अंदर घुसी। हाथ में टॉर्च, कमर पर रस्सी और चेहरे पर नक़ाब — ये था राजू चोर।

राजू का नाम पुलिस रिकॉर्ड में कई बार दर्ज हो चुका था। छोटा–मोटा चोर नहीं था वह — उसका काम था अमीरों के घर में सेंध लगाना और फिर रातों–रात गायब हो जाना। पर आज की रात कुछ अलग थी।

वह धीरे–धीरे कमरे में दाख़िल हुआ, जैसे कोई बिल्ली अपने शिकार की तरफ बढ़ती है। उसने अलमारी खोली, गहनों का डिब्बा उठाया और फुसफुसाया,
“वाह राजू! आज तो लक्ष्मी खुद तेरे घर आई है।”

लेकिन तभी पीछे से आवाज़ आई —
“रुको वहीं… हाथ ऊपर करो!”

राजू चौंका। पीछे मुड़ा तो देखा एक पुलिस की वर्दी में खड़ा था सिपाही मोहन — उसका सगा छोटा भाई।


---

पहला दृश्य: बचपन की गलियाँ

राजू और मोहन दोनों भाई थे। पिता थे पोस्टमैन, मां सिलाई करती थीं। गरीबी ने उनके घर को घेर रखा था, लेकिन दोनों भाई बचपन में एक-दूसरे के बहुत करीब थे।
एक खेल था जो दोनों रोज़ खेलते — चोर–सिपाही।
राजू हमेशा “चोर” बनता और मोहन “सिपाही”।

माँ हँसकर कहती —
“अरे ओ राजू, तू तो हर बार चोरी में जीत जाता है!”
राजू शरारत से जवाब देता, “क्योंकि मैं जन्मजात चोर हूँ माँ!”

किसे पता था कि यह बचपन का मज़ाक एक दिन सच्चाई बन जाएगा।

पिता के गुजर जाने के बाद घर की हालत और खराब हो गई। मोहन ने मेहनत करके पुलिस में भर्ती ले ली। लेकिन राजू का मन पढ़ाई में नहीं लगा। दोस्तों की संगत ने उसे ग़लत राह पर डाल दिया। और कुछ ही सालों में वह पुलिस के लिए सिरदर्द बन गया।


---

दूसरा दृश्य: आमने–सामने

मोहन ने टॉर्च का फोकस राजू के चेहरे पर डाला —
“राजू… तू?”

राजू मुस्कराया, “कौन? तेरे जैसा सिपाही? हाँ भाई, मैं ही हूँ — तेरा चोर भाई!”

मोहन के होंठ काँपे, “तू जानता है मैं क्या कर सकता हूँ, राजू। कानून सबके लिए बराबर है।”

राजू ने गहनों का डिब्बा नीचे रखते हुए कहा, “कानून? वो तो अमीरों की ढाल है भाई… हमारे जैसे गरीबों के लिए तो बस डंडा है।”

मोहन ने बंदूक नीचे की, “चल घर चल, माँ तुझे रोज़ याद करती है। कहती है ‘मेरा राजू बदल जाएगा।’”

राजू ने आँखें नीचे कर लीं। “घर? वो घर जहाँ गरीबी ने हमें रुलाया था? नहीं भाई… अब तो मैं वही करता हूँ जिससे दो वक्त की रोटी मिलती है।”

मोहन की आँखों में आँसू थे। “अगर आज मैंने तुझे छोड़ दिया, तो कल मैं खुद कानून की नज़रों में अपराधी हो जाऊँगा।”

राजू ने मुस्कराते हुए कहा, “तो पकड़ ले… आज देखता हूँ कितना बड़ा सिपाही बना है तू।”

और दोनों भाई टकरा गए — एक की तरफ कानून था, दूसरी तरफ हालात।


---

तीसरा दृश्य: संघर्ष की रात

दोनों में हाथापाई होने लगी। घर की खिड़कियाँ टूट गईं, चीज़ें बिखर गईं।
राजू ने रस्सी फेंकी और मोहन की बंदूक गिरा दी। पर तभी बाहर पुलिस की जीप की आवाज़ सुनाई दी।
मोहन चिल्लाया, “भाग जा राजू! वरना मेरे साथ तुझे भी जेल जाना पड़ेगा!”

राजू हँसा, “तूने मुझे बचाने की कोशिश की, भाई… अब मैं तुझे बचाऊँगा।”

वह पिछली खिड़की से कूदकर भाग गया। लेकिन जाते–जाते वही पुराना गहनों का डिब्बा वहीं छोड़ गया।

मोहन ने डिब्बा उठाया — उस पर लिखा था “माँ के लिए।”


---

चौथा दृश्य: माँ की दुआ

सुबह का वक्त था। माँ मंदिर में बैठी थीं। उनके हाथ काँप रहे थे। मोहन ने उन्हें गले लगाया।
“माँ, राजू मिला था रात को…”

माँ की आँखों में आँसू आ गए, “क्या वो ठीक है?”

मोहन चुप रहा। तभी उसने डिब्बा उनके सामने रखा।
माँ ने खोला तो उसमें गहनों के साथ एक चिट्ठी थी।

> “माँ,
मैं जानता हूँ मैंने बहुत गलतियाँ की हैं।
पर आज मैं सिर्फ तेरे लिए चोरी करने गया था, ताकि तुझे वो सोने की चूड़ियाँ दिला सकूँ जो तूने बचपन में बेची थीं।
पर अब समझ आया कि तेरी असली दौलत तेरे बेटे हैं — और मैं वो खो चुका हूँ।
तेरा राजू।”



माँ ने चिट्ठी को सीने से लगाया और बोलीं,
“भगवान, मेरे दोनों बेटों को सही राह दिखा दे।”


---

पाँचवाँ दृश्य: मोड़

कुछ दिन बाद शहर में बैंक डकैती की खबर फैली। पुलिस ने चारों तरफ नाकाबंदी कर दी।
मोहन उस टीम में था जो डकैतों का पीछा कर रही थी।
जब उन्होंने एक ट्रक को रोका, तो ड्राइवर भागने लगा।
मोहन ने चिल्लाया — “रुको वरना गोली चलाऊँगा!”

ड्राइवर ने मुड़कर देखा — वो राजू था।

दोनों की नज़रें मिलीं। वक्त जैसे थम गया।

राजू ने कहा, “भाई, इस बार मैं नहीं रुकूँगा। मेरे साथ वाले अगर पकड़े गए तो मुझे मार देंगे।”

मोहन बोला, “कानून से ऊपर कोई नहीं, राजू। तू surrender कर दे, मैं तुझे बचा लूँगा।”

राजू की आँखों में आँसू थे, “अब देर हो गई है भाई। अब मैं बस एक बात चाहता हूँ — अगर आज मेरी जान चली जाए, तो माँ से कहना, उसके दोनों बेटे ही उसके लिए लड़े थे… एक कानून के लिए, एक हालात के लिए।”

और इससे पहले कि मोहन कुछ कह पाता, पीछे से गोली चली।
गोली राजू को लगी। वह ज़मीन पर गिर पड़ा।

मोहन भागा, उसे गोद में लिया।
राजू मुस्कराया, “देखा… इस बार भी चोर जीत गया, पर सिपाही भाई भी हार नहीं माना।”

मोहन की आँखों से आँसू बह रहे थे। “नहीं भाई, आज दोनों जीत गए — क्योंकि आज तूने अपराध नहीं किया… त्याग किया।”

राजू ने अंतिम साँस लेते हुए कहा,
“माँ से कहना… अब कोई चोर नहीं बचेगा उसके घर में।”


---

छठा दृश्य: माँ की गोद में अमरता

अगले दिन अख़बार की सुर्खी थी —

> “कुख्यात चोर राजू की मौत, लेकिन उसने पुलिस को बचाने के लिए खुद गोली खाई।”



माँ को जब पता चला, तो वो मोहन के कंधे पर सिर रखकर रो पड़ीं।
“मेरा राजू भी शहीद हो गया बेटा… बस उसका यूनिफॉर्म अलग था।”

मोहन ने माँ के आँसू पोंछे। “हाँ माँ, वो भी देश की सेवा कर गया — अपने अंदाज़ में।”

माँ ने भगवान के आगे हाथ जोड़ दिए,
“हे प्रभु, अगर अगला जन्म मिले तो मेरे दोनों बेटे फिर भाई–भाई बनकर आएँ… लेकिन इस बार चोर–सिपाही नहीं, बस इंसान–इंसान बनकर।”


---

अंतिम दृश्य: दीपावली की रात

कुछ महीने बाद दीपावली थी। मोहन ने माँ को मंदिर ले जाकर दिया जलाया।
माँ ने आसमान की तरफ देखा — जैसे किसी को ढूँढ़ रही हों।
एक हवा का झोंका आया, और दीपक की लौ झिलमिलाई।

मोहन मुस्कराया, “देखो माँ, लगता है राजू आया है — अपने हिस्से की रोशनी लेने।”

माँ ने कहा —
“हाँ बेटा, अब तो हर दीपावली पर ये दिया जलाया कर, ताकि सबको याद रहे —
कि कभी एक चोर और एक सिपाही थे…
जो असल में थे भाई–भाई।”


---

🎵 पृष्ठभूमि में बजता गीत:

> “तेरे भाई जैसा कोई नहीं,
तेरे बिना जिंदगी अधूरी सी लगे…”



धीरे–धीरे कैमरा आसमान की तरफ उठता है, जहाँ तारों के बीच दो दीये जलते हुए दिखाई देते हैं —
एक पर लिखा है राजू, और दूसरे पर मोहन।

और कहानी का आख़िरी संवाद माँ की आवाज़ में —
“कानून और हालात भले अलग हों बेटा,
लेकिन खून तो एक ही होता है…”


---

समाप्त
✍️ लेखक – विजय शर्मा एरी
(कहानी – 1500 शब्द, विषय: चोर–सिपाही भाई–भाई)


---