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Shubham Rawat

Shubham Rawat

@sr8715070gmail.com8381
(45)

कुछ आवाजें कानों में गुजती रहती हैं
कुछ है जो पास नहीं है
कुछ है जो खो गया है
कुछ है हमारे अंदर
जिसने प्यार को मार दिया है

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मन भर कर रो लिया हूँ
मन भर कर नहीं रोया
मन भर ज़िंदगी को देखा हैं
मन भर ज़िंदगी ने गिराया हैं
मन भर तुमको प्यार किया
तुमको ये ज़िन्दगी पा न सकी
मन भर मेरा सपना
मन मसोज कर रह गया
मन के अंदर क्या चलता हैं
मन करता है कि अब
चाँद पर झूला झूल लेना चाहिए

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जब अंदर गुस्सा और नफरत भरी पड़ी हो तो इंसान का डर चला जाता हैं

वह जब भी पास आते हैं
हम दूर चले जाते हैं
हम अपने पिता से जाने क्यूँ
घबराते हैं
ऐसा नहीं कि प्यार नहीं है
प्यार तो बहुत हैं
पिता का बच्चे से बच्चे का पिता से
बस दोनों को जताने में डर लगता हैं

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जिंदगी को जिंदगी जैसा बनने में सालों लग जाते हैं। दोस्ती, प्यार, रिश्ते, परिवार, माँ-बाप, भाई-बहन, दु:ख, सुख, हँसी, खुशी, रोना, उदास होना, खेलना कितना कुछ होता हैं, जिंदगी में। मगर जब मौत आती हैं तो जिंदगी कितनी छोटी हो जाती हैं-एकदम से। मौत आती हैं और जिंदगी को लेकर चले जाती हैं। मौत कुछ नहीं देती, जिंदगी बहुत कुछ देती हैं । मैं डर जाता हूँ जब कोई छोटी उम्र में ही जिंदगी जैसी जिंदगी को छोड़ जाते हैं।

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दु:ख, सुख, प्यार, रोना, हँसना, भावनाएँ इनका होना महसूस होता हैं। इन्हें परिभाषित नहीं किया जा सकता।

कितना दु:खद होता होगा जब बच्चा अपना बचपन खुद मरते देखता होगा

एक रात जैसी रात है
एक दिन के जैसा दिन है
एक बात की बात है
बात से पूछो
क्या बात है?

मिट्टी का घड़ा है
मिट्टी का चाँद है?
चाँद के पीछे कौन छुपा है?
हम सब के अंदर खुदा छुपा है

घास काटने वाली दराती
गला काटने वाली दराती
दराती को पकड़ने वाले हाथ
हाथ के पीछे वाले हाथ
हाथ से हाथ पकड़ो तो
मिलता हैं साथ
साथ के लिए हाथ की जरुरत तो नहीं?

नहीं-नहीं ऐसी कोई बात नहीं
मेरा बस दिमाग ठीक नहीं
मुझे याद है वक्त 'ठीक वक्त'
जब वक्त ठीक था नहीं

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बहुत बुरा हुआ था
मैंने एक कुत्ता पाला था
मैं घर का सबसे छोटा था
घरवालों को कुत्ते पसंद नहीं थे
वह उसे खाना नहीं दिया करते थे
वह भूख से मर गया
और मैं
मैं अब बड़ा हो गया हूँ
मैं खाना खा रहा हूँ

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मुझे सपने आते हैं। मैं सपने नहीं देखना चाहता, फिर भी मुझे सपने आते हैं। मुझे लगता है, ये जिंदगी जिसे मैं जी रहा हूँ, यह भी एक सपना हैं। एक ऐसा सपना जिसे मैं देखना ही नहीं चाहता हूँ। जिस सपने में दु:ख ज़्यादा, सुख कम होते हैं। और फिर एक दिन यह सपना देखते-देखते मेरी नींद टूट जाएगी। तब मुझे लगेगा कि ये तो एक सपना था और मैं चैन की साँस लूँगा। जो लोग मेरी जिंदगी में होंगे उनसे कहूंगा, "अरे ये तो सपना था!" और ऐसा कहते ही मैं वापस से नींद की दुनिया में गुम हो जाऊँगा। फिर वापस से मुझे डर लगने लगेगा। मैं डरुँगा, रोऊँगा, हँसुंगा और भी बहुत कुछ करुँगा। बस इस सपने जैसी दुनिया से छुटकारा पाना चाहूँगा। इस सपने जैसी दुनिया को जीते-जीते एक दिन मैं इस सपने जैसी दुनिया के अन्त के करीब पहुँच जाऊँगा। दूसरे मायने में कहा जाए तो मृत्यु के समीप। जिन लोगों के साथ मैं इस सपने जैसी दुनिया में अभी तक जीता आ रहा हूँगा, उन लोगों को उसी सपने जैसी दुनिया में छोड़कर मैं कहीं आगे बड़ जाऊँगा। किसी नई दुनिया में। उस नई दुनिया के होने को खोजने में खुद को भूला दूँगा। भूला दूँगा उन लोगों को जो अभी तक मेरे साथ उस सपने जैसी दुनिया में जीते आ रहे थें। फिर मुझे एक दिन अचानक से याद आएगा, उस नई दुनिया में कि मैं बहुत से लोगों को पीछे छोड़ आया हूँ। फिर उन सभी लोगों का इंतजार करूँगा जिन्हें मैं पीछे छोड़ आया था। और एक दिन वह सब लोग भी इस नयी दुनिया में आ जाएंगे। किसी ना किसी को पीछे छोड़कर।

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