मुझे सपने आते हैं। मैं सपने नहीं देखना चाहता, फिर भी मुझे सपने आते हैं। मुझे लगता है, ये जिंदगी जिसे मैं जी रहा हूँ, यह भी एक सपना हैं। एक ऐसा सपना जिसे मैं देखना ही नहीं चाहता हूँ। जिस सपने में दु:ख ज़्यादा, सुख कम होते हैं। और फिर एक दिन यह सपना देखते-देखते मेरी नींद टूट जाएगी। तब मुझे लगेगा कि ये तो एक सपना था और मैं चैन की साँस लूँगा। जो लोग मेरी जिंदगी में होंगे उनसे कहूंगा, "अरे ये तो सपना था!" और ऐसा कहते ही मैं वापस से नींद की दुनिया में गुम हो जाऊँगा। फिर वापस से मुझे डर लगने लगेगा। मैं डरुँगा, रोऊँगा, हँसुंगा और भी बहुत कुछ करुँगा। बस इस सपने जैसी दुनिया से छुटकारा पाना चाहूँगा। इस सपने जैसी दुनिया को जीते-जीते एक दिन मैं इस सपने जैसी दुनिया के अन्त के करीब पहुँच जाऊँगा। दूसरे मायने में कहा जाए तो मृत्यु के समीप। जिन लोगों के साथ मैं इस सपने जैसी दुनिया में अभी तक जीता आ रहा हूँगा, उन लोगों को उसी सपने जैसी दुनिया में छोड़कर मैं कहीं आगे बड़ जाऊँगा। किसी नई दुनिया में। उस नई दुनिया के होने को खोजने में खुद को भूला दूँगा। भूला दूँगा उन लोगों को जो अभी तक मेरे साथ उस सपने जैसी दुनिया में जीते आ रहे थें। फिर मुझे एक दिन अचानक से याद आएगा, उस नई दुनिया में कि मैं बहुत से लोगों को पीछे छोड़ आया हूँ। फिर उन सभी लोगों का इंतजार करूँगा जिन्हें मैं पीछे छोड़ आया था। और एक दिन वह सब लोग भी इस नयी दुनिया में आ जाएंगे। किसी ना किसी को पीछे छोड़कर।