#kavyotsav_2
##समय से जंग##
आधुनिकता की इस दौर में
सब कुछ पाने की चाह में
भागते कितने बच्चों को
समय से भी तेज यहां देखा है
पीढ़ पर बैग लिए चलते मस्ती में
आज तड़के नींद खुली है शायद
मृगमरीचिका पाने की दौड़ में
पल भर साँस मिली है शायद
कोचिंग से निकले है अब तो
करते बातों से लगते है फिलास्फर
वायु में बह रहा है ज्ञान अब
कितनो को उस पर लपकते देखा है
भागते कितने बच्चों को
समय से तेज यहाँ देखा है
डेट सीट आते ही यहां पर
बच्चों को रंग बदलते देखा है
लेकर चुस्की चाय का
देर रात तक जगते देखा है
आँखों में पलते जो सपनें
उन सपनों को जिते देखा है
आँख मिलाकर समय से यहाँ
विद्यार्थी को लड़ते देखा है
भागते कितने बच्चों को
समय से तेज यहा देखा है
उदासी से भरे इस नगर में
कम ही बच्चों को हसते देखा है
कही ग्रुप में कही अकेले बच्चों को
खुद से बाते करते देखा है
मायूसी में यहाँ बहुतों को
सिगरेट की लौ में जलते देखा है
भागते कितने बच्चों को
समय से तेज यह देखा है

Hindi Poem by Dileep Kushwaha : 111156471

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