दोस्तो....
जो सामन्य रूप से बनी मान्यताएं वो आम तौर से गलत होती है।
क्यो की मान्यता का जन्म भीड़ से होता है।
और भीड़ के पास कभी सत्य नहीं होता।
सत्य सदा एके दूके व्यक्ति मे घटता है।
और उनमे ही सत्य प्रगट होता है।
जो अपनी पात्रता निर्मित कर्ता है।
जो कोइ विरल व्यक्ति होता है।
भीड़ तो काम चलाऊ बातों को लेकर चलती है।
भीड़ मान्यता पर चलती है।
भीड़ झूठ पर भरोसा करती है।
जो सत्य खुद ने नहीं जाना वो सत्य अपना नहीं हो
"सकता"… ।।