छोड़ दे तरासना ये वक्त मुझे,
मैं मूरत नहीं बन सकता।
ठोकरें कितनी भी दे दे मुझे,
मैं चाहतों की सूरत नही बन सकता।
मैं मरहम हूँ रिश्तों का
दर्द-ए-घाव नहीं बन सकता।
तू वर्तमान तो कभी अतीत बन सकता है
पर मैं मीठा" दरिया" हूँ 'ये वक्त'
कभी खारा समन्दर नहीं बन सकता।
" दरिया "