क्यों बैठा है बंदे, मन अपना मार कर
माथे पे शिकन ले यूं, ज़िद अपनी हार कर।
तूने ही तो चाहा था,कुछ कर के दिखाना है
मेहनत की खेती कर, शोहरत को उगाना है।
अब ठहर गया क्यों तू, सब छोड़ छाड़ कर
क्यों बैठा है बंदे, मन अपना मार कर।।
माना कि ज़माने से, मिलती हैं कभी ठोकर भी
नहीं हो पाता है कुछ, सारा कुछ होकर भी।
तैयार तू कर खुद को, कफ़न सर पे बांध कर
क्यों बैठा है बंदे, मन अपना मार कर।