शायद प्रकृती हमसे कुछ कहना चाहती हो
*अपनो से आप से, मुलाकात "करो ना"* !
मानो या ना मानो, कोई तो दिव्यशक्ती है,
जो आपसे, मुझसे, हम सबसे ज्यादा बड़ी है! जो आपसे और मुझसे कहीं ज्यादा समझती और समझा सकती है!
क्या पता इस तेज *वायरस* के भय में ज़िन्दगी का कोई ऐसा सच़ छुपा हो, जो आप और मैं, अब तक नकार रहे थे ?
शायदप्रकृति हम से कुछ कहना चाह रही थी पर जीवन की पागल आपा-धापी में हमें वक्त ही नहीं मिलता की हम उसकी या किसी की, कुछ भी सुने।
हो सकता है कि, ये *वायरस*
हमें फिर जोड़ने आया है - अपनी धरा से, अपनों से और अपने आप से!
शायद हवाई जहाज का कार्बन कम हो तो आकाश भी अपने फेफड़ों में ऑक्सीजन भर पाएगा।
शॉपिंग मॉल, सिनेमा घरों में कुछ दिन के लिए ताले लगे तो शायद दिल के ताले स्वतः ही खुल जाएंगे।
*हो सकता है किताब के पन्नों में सिनेमा से अधिक रस मिले। बच्चों को अपने जीवन के किस्से सुनाने का और उनसे उनकी मासूम कहानियां सुनने का आपको वक्त मिले!*
*लूड़ो की बाज़ी या कैरम की गोटियां आपको अपनो के करीब ला दे।*
शायद पता चल जाए, घर के खाने में रेस्टोरेंट के खाने से ज्यादा स्वाद है।
हो सकता है जो हो रहा है उस में एक अद्भुत सत्य छुपा है।
ये *वायरस* शायद हमसे कुछ कहने आया है, कुछ करवाने आया है।
*कुछ दिनों के लिए ही सही, बेबस होकर ही सही, भयभीत होकर ही सही, हम अपनी प्रकृति से,
अपनो से, अपने से, एक बार मुलाकात तो करेंगे
यह वायरस भी सीख दे रहा है समय के आगे किसी की नहीं चलती समय अनुसार सबको चलना पड़ता है और यह भी सीख दे रहा है के स्वयं के लिए, अपने के लिए और परमपित परमात्मा की याद के लिए समय निकालना है उनकी याद ही काम आएगी।