आदमी कितना मजबुर है
अपनी ही बनाई जंजीरों में
छूटना चाहता है मगर खुद
के ही बंधनों की ओर बंधा
चला जाता है पता ही नहीं
चलता...
क्यों हो जाता है मजबुर
अपने ही विचारो से कि
छूटना चाहकर भी नहीं
छूट पाता...
क्योंकि प्यार छुपा होता है
अपनो के लिए, एक पनाह
देना चाहता है अपनो को...