मानव जब इस मायावी संसार मे जन्म लेता है तब वो सिर्फ इंसान ही पैदा होता है ना वो हिन्दू,ना मुसलमान,ना वो सिख,और ना ही वो ईसाई, होता है जन्म लेते ही वो धर्म जाती सम्प्रदाय उच्च जाति निन्म जाति में बाट दिया जाता है जैसे जैसे वो यौवन की दहलीज पर आता है उसके ऊपर परिवार का बोझ, सामाजिक जिम्मेदारी,आर्थिक जिम्मेदारी आन पड़ती है और फिर यहाँ से उसके रास्ते निकलते है कि बह ईमानदारी से कड़ी मेहनत करके अपने परिवार का पालन पोषण करे और वो यही प्रयास भी करने लगता है । सामाजिक जिम्मेदारी ईमानदारी से निभाने के बाबजूद भी परिवार की जरूरतें पूरी नही होने के कारण परिवार के लोग एवं समाजवालो के तानो से तंग आकर वो और मेहनत करने का प्रयास करता है और करता भी है पर वो परिवार की जरूरतो को पूरी नही कर पाता है बस जिंदगी यू ही तँग-हाली में गुजरने लगती है । बस सौम्य, सरल,मृदुभाषी वो युवक अचानक चिड़चिड़ा से हो जाता है बात बात पर गुस्सा करना उसकी आदत सी बनने लगती है धर्म कर्म के रास्ते मे चलने बाला ऐसे सामाजिक पारिवारिक दायित्वों के बधे युवक असभ्य होने लगते है जो उन्हें परस्तिथिया बनाती है वो खुद नही बनता है लोग कहने लगते है अभी कल ही बात है ये युवक अभी कुछ दिन कुछ महीने या कुछ साल पहले कितना मृदुभाषी,सभ्य,कोमल ह्दय बाला एवं समाज मे सभी को मान-सम्मान देने बाला हुआ करता था और आज देखो कितना जंगली हो गया है इसको किसी की इज्जत मान सम्मान भी नही है लेकिन कोई भी उसके परद्दे के पीछे की जिंदगी बुरे अनुभव की ओर देखने की कोशिश नही करता बस उसको कोसता ही रहता है चारो ओर से हर वक्त हर समय लोगो की आवाजें गूँजती है अरे उस जंगली आदमी के मुंह मत लगो उसे बात करने की तमीज नही है छोटे बड़ो का ख्याल नही है और बस वो सामाजिक, पारिवारिक,आर्थिक बोझ तले दबा हुआ इंसान जंगली बनकर रह जाता है । बस जंगली ।
#जंगली